वसन्त
प्रेम
-डॉ. सुधा गुप्ता
1
फूलों की पाग
बाँधी पेड़-पौधों ने
सजी बारात।
2
तपे लोहे-से
आम के नए पत्ते
उकसा गए।
3
किशोरी डाल
किसलय लपेटे
शर्म से लाल।
4
फूलों की टोपी
हरियाली का कुर्ता
वसन्त दूल्हा।
5
दहक उठी
बुरूँश- पोरों पर
चिनगारियाँ।
6
चिनार- पत्ते
कहाँ पाई ये आग
बता तो भला।
7
नीचे घाटी में
डैफ़ोडिल खिले हैं
दीये जले हैं।
8
बोगनबिला
किसने मसले गाल
कौन है मिला?
9
नाचती हवा
डफली बजाता है
प्रेमी महुआ।
10
बाँसों के वन
मनचली हवा ने
बजाई सीटी।
11
फूलों की राखी
सजाके कलाई में
घूमे वसन्त।
12
कूकी जो पिकी
'छन्न’ दोपहरिया
काँच-सी टूटी।
13
कोयल गाती
हरी आम की शाख़
आग लगाती।
14
मुस्काती घाटी
करती द्वाराचार
दूब-धान से।
15
झरोखे बैठी
फुलकारी काढ़ती।
प्रकृति-वधू।
16
छठी पूजती
पीला-हरा उपर्ना
ओढ़े धरती।
17
सगुन-पंछी
टिहुकता डाल पे
वसन्त आया।
18
फूलों के द्वीप
रंगारंग परियाँ
तिरती फिरें।
19
पतझर के
काँटों पर चलके
आया वसन्त।
20
आया है दूल्हा
ऋतुराज वसन्त
फूलों का मौर।
21
'पियरी’ ओढ़
नवप्रसूता धरा
देहरी पूजे।
22
फूलों का ताज
पहनकर बैठा
है ऋतुराज।
23
ठसक बैठी
पीला घाघरा फैला
सरसों रानी।
24
धूप वधूटी
धीरे चली लजाई
गौने से आई।
संपर्क: 120 बी / 2 साकेत मेरठ -252003
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