सतरंगी
रंग
-प्रो. सरोज मिश्र
जिस रोज तुम्हारी गागर
से
सतरंगी रंग छलक जाये
उस रोज समझना धरती पर
फिर से फागुन आने वाला
है।
जब कलियों की कंचुकी
स्वयं
हो जाय बिलग उसके तन
से,
जब चंपा जूही की
कलियाँ
शरमायें भृग के नर्तन
से
उस रोज समझना उपवन में
ऋतुराज समाने वाला है।
जब अनचाहे कंगना खनके
कागा बोले जब आँगन में
जब मुरझाये मनकुसुम
खिले
अनगिन उमंग हो जीवन
में
उस रोज समझना परदेशी
प्रीतम घर आने वाला
है।
जब सर से घूंघट खिसक
खिसक
ढल जाये तेरे मुखड़े
से
तुम मुह मे अंगुली
तनिक दबा
मुस्काओ हौले हौले से
उस रोज समझना पूनम का
चंदा मुस्काने वाला
है।
संपर्क: सेवानिवृत्त प्राचार्य, 9/690 अन्चिता, भारतीय नगर, बिलासपुर
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