दामिनी
कह गई अब सोना नहीं
-लोकेन्द्र
सिंह
दु:खद, बेहद दु:खद 2013 का आखिरी
शनिवार। दामिनी चली गई। हमेशा के लिए इस बेदर्द दिल्ली से। बेहया दुनिया से,
जहाँ उसे सिर्फ माँस की तरह देखा गया। भेडिय़ों ने नोंचा था,
13 दिन पहले उसका जिस्म। 13 दिन बाद मौत हो गई
भारत की अस्मिता की। घनघोर शर्मनाक दिन था 16 दिसंबर,
जब भारत के दिल में महज रात 10 बजे, चलती बस में दामिनी की आत्मा का बलात्कार किया 6
हरामखोर भेडिय़ों ने। 17 दिसंबर की सुबह लज्जा से सिकुड़ गया
था सारा देश (युवा), जमा हो गया राजपथ पर, इंडियागेट पर और संसद के माथे पर। आक्रोशित, उद्वेलित,
बेबस देश अपनी ही सरकार से पूछ रहा था- नारी को पूजने वाले देश में
अब नारी कहाँ सुरक्षित रह गई है? सरकार आखिर करती क्या है?
कब तक यूँ ही तार-तार होती रहेगी मर्यादा, आजादी
और दामिनी?
शर्मनाक आँकड़ा है- भारत में हर 20 मिनट में एक दामिनी के साथ बलात्कार होता है और हवस
का शिकार बनाया जाता है। हर 25 मिनट में किसी न किसी
सार्वजनिक जगह, बस, ट्रेन, चौराहा, मॉल, स्कूल-कॉलेज या
बाजार में दामिनी को छेड़ा जाता है। उस पर अश्लील फब्तियाँ कसी जाती हैं। ये इस हद
तक अश्लील और अमर्यादित होती हैं कि कई दामिनी घर जाकर जिंदगी ही खत्म कर लेती
हैं। वर्ष 2009 में 23 हजार 996,
वर्ष 2010 में 25 हजार 215,
वर्ष 2011 में 26 हजार 436 और वर्ष 2012 में भी लगभग बीते वर्ष के बराबर
दामिनी भूखे जानवरों का ग्रास बनीं। लेकिन, देश अब जागा। देर
से ही सही जागा तो सही वरना और देर हो जाती। ये मामले ऐसे हैं, जिनमें चार्जशीट दाखिल हुई। इसके इतर कई मामले तो थाने ही नहीं पहुँच पाते
तो कई मामले थाने में ही समझौते के बाद खत्म हो जाते हैं। इतना ही नहीं उक्त
मामलों में महज 22 फीसदी बलात्कारियों को ही सजा हुई। जबकि
बलात्कार की शिकार प्रत्येक दामिनी रोज सजा पा रही है। जिंदगीभर भेड़िये की हरकत
उसे भीतर ही भीतर खाये जाती है।
देश इस बार जागा था कि अपराधियों को फाँसी से
कम सजा पर नहीं मानेगा, चुप
नहीं बैठेगा। देश की यह स्वस्फूर्त जाग्रति है। सोशल मीडिया की इसमें अहम भूमिका
है। निरुत्तर सरकार देश को जवाब देने की जगह पुलिस को देश पर लाठियाँ भाँजने का
हुक्म देती है। लेकिन, इस बार गुस्सा पानी का बुलबुला नहीं
था। युवा राजपथ पर डट गए, सह गए पानी की तेज धार। आँसू गैस
के गोले क्या रूलाते आँखें तक 16 दिसंबर को ही सूख गईं थी।
युवा जोश के सामने बेकार साबित हुए पुलिस के अश्रु गोले। पीठ, पैर और सीने पर लाठी खाकर भी मुँह से उफ नहीं निकली, निकली तो बस एक आवाज- वी वाँट जस्टिस। बलात्कारियों को फाँसी दो। देश की
अस्मित की सुरक्षा की गारँटी दो..... सरकार फिर भी खामोश रही। सोनिया के
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चुप्पी आज भी कायम रही। युवराज हमेशा की तरह लापता
थे। मंत्री फितरत के मुताबिक आज भी देश को टरकाने के मूड में दिखा। दिल्ली की
महारानी एक बार भी पीड़ित के हाल जानने नहीं पहुँची। सब दूर से निराश युवा इंसाफ की
आस लिए नए नवेले राष्ट्रपति प्रणव दा के पास भी गया था लेकिन वहाँ भी सन्नाटा ही
पसरा था। न्याय नहीं मिलता देख आखिर युवा मन उखड़ गया। लेकिन, हारा नहीं। अब तो मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल....
मुंबई यानी सारा देश साथ खड़ा हो गया दामिनी के हक के लिए। आधी आबादी के लिए।
सृष्टि के शक्ति केन्द्र के सम्मान में सब दूर आवाज बुलँद हो उठी। जज्बा, उत्साह, उमंग, हौसला, गुस्सा और आक्रोश ऐसा दिखा कि सरकार से आर-पास की लड़ाई हो ही जाए। नारा
बुलंद हुआ- कितना दम है दमन में तेरे, देखा है और देखेंगे।
गूँजी माँग- जब तक इंसाफ नहीं होता ये आक्रोश ठंडा नहीं पड़ेगा। कानून कड़े बनाए।
सुधार लाओ। सुरक्षा पुख्ता करो। बलात्कारियों को फाँसी दो। 13 दिन से आक्रोश बरकरार था। अब अलविदा कह गई दामिनी। तो क्या गुस्से को
ठंडा होने दिया जाए। सरकार तो यही चाहती है। लेकिन, आज फिर
युवा देश ने कह दिया- अभी न्याय बाकी है, गुस्सा बाकी है,
लड़ाई जारी है और जारी रहेगी इंसाफ होने तक। 29 दिसंबर को दामिनी चली गई हमें बेशर्म व्यवस्था से अपने अधिकार के लिए लड़ना
सिखाकर । उसकी सीख जाया नहीं होने देना है, गुस्सा खत्म नहीं
होने देना है। कभी नहीं जागने वाली नींद में जाने से पहले कह गई वो- अब और कोई
दामिनी नहीं बननी चाहिए। न्याय चाहिए। मेरे हक में उठे हाथ, आवाज
अब खामोश नहीं होने चाहिए। युवा मन में जो उबाल आया है वह ठंडा नहीं होना चाहिए।
नींम बेहोशी से जो देश जागा है तो अब सोना नहीं चाहिए।
इन 13 दिन में राजनीति के पतन का चरम भी दिखा तो हड़बड़ाए नेताओं का मानसिक
दिवालियापन भी सामने आया। लोमहर्षक, बीभत्स, नृशंस अपराध के बाद भी नेता जुबान सँभालकर बात नहीं कर पाते। प्रणव दा के
बेटे अभिजीत कहते हैं कि कैंडल मार्च फैशन हो गया है। दिन में प्रदर्शन, शाम को कैंडल जलाने के बाद ये रंगी-पुती युवतियाँ पब में मौज उड़ाती हैं।
एक महिला नेता कहती है कि जब छह लोगों ने घेर लिया था तो उसे वीरता दिखाने की क्या
जरूरत थी, सरेंडर कर देना चाहिए था। महिला अधिकारी की हितैषी
एक अन्य महिला कहती है कि इतनी रात फिल्म देखने जाएँगी तो यही होगा। घोर आपत्तिजनक
हैं ये बयान। चाय की गुमटी और चौराहे पर पान की पीक थूकते लोग भी शायद इस समय ऐसी
बात कर रहे हों। दूसरे नेता कहते हैं कि देश में अराजक स्थितियाँ हैं। सवाल उठता
है कि इन स्थितियों के लिए कौन जिम्मेदार है? कौन सँभालेगा
देश? एक ने कहा कि माहौल ऐसा है कि मेरी बेटियाँ भी सुरक्षित
नहीं। महोदय यह सफेद झूठ है। आपकी बेटियाँ जिस दिन असुरक्षित हो जाएँगी तो झट से
कड़े कानून आ जाएँगे। तब दरिंदे 13 दिन तक जीवित नहीं
रहेंगे। शर्म करो... संसद और विधानसभा में बैठकर काम करने की जगह अश्लील फिल्म
देखते हो, दामिनी पर बहस होती है तो खीसें निपोरकर हँसते हो।
कुछ काम करो ताकि आम आदमी की बेटी, पत्नी, बहू घर से बिना संकोच निकले, शान से सिर उठाकर सड़क
पर चले और बिना किसी अपमानजनक स्थिति का सामना किए खुशी मन से घर लौट सके। कानून
में सुधार लाओ। वैज्ञानिक तरीके से सबूत जुटाए जाएँ। पुलिस को संवेदनशील बनाओ।
गवाहों को सरँक्षण दो। फास्ट ट्रैक कोर्ट पर सुनवाई हो ताकि अपराधी बचकर न निकल
सकें। उनमें खौफ पैदा हो। गलत काम की कीमत उन्हें चुकानी पड़े।
आखिर में लंबी नींद से जागे हुए देश से अपील
है। जिंदगी की जंग हारने से पहले दामिनी जगा गई है देश को। 13 दिन देश सोया नहीं, थका नहीं,
डरा नहीं सरकार के वार से। इस जज्बे को बनाए रखना होगा वरना फिर
किसी चलती बस में, होटल में, पब में या
फिर किसी चाहरदीवारी के भीतर तार-तार कर दी जाएगी दामिनी।
संपर्क: गली नंबर-1 किरार कालोनी, एस.ए.एफ. रोड, कम्पू,
लश्कर, ग्वालियर (म.प्र.) 474001, मो.- 9893072930
Email- lokendra singh
777 @gmail.com
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