अपनी
शक्ति को पहचानो
* विश्व की समस्त शक्तियाँ हमारी हैं। हमने अपने हाथ अपनी आँखों पर रख लिये
हैं और चिल्लाते हैं कि चारो ओर अँधेरा है। जान लो कि हमारे चारों ओर अँधेरा नहीं
है, अपने हाथ अलग करो,
तुम्हे प्रकाश दिखाई देने लगेगा, जो पहले भी
था। अँधेरा नहीं था, कमजोरी कभी नहीं थी। हम सब मूर्ख हैं जो
चिल्लाते हैं कि हम कमजोर हैं, अपवित्र हैं।
स्वामी विवेकानंद
देश की महान और महत्त्वपूर्ण विभूतियों में से हैं। जब देश शारीरिक और मानसिक रूप
से भयंकर दासता में जकड़ा था उस समय स्वामीजी ने 'उतिष्ठ जाग्रत’ का आह्वान किया। जन-जन को जाग्रत
करने का बीड़ा उठाया। एक नई बौद्धिक, सांस्कृतिक और
आध्यात्मिक चेतना पैदा की। विश्वभर में जब भारत को किसी प्रकार भी सम्मान की
दृष्टि से नहीं देखा जाता था, ऐसे में उन्होंने अपने को सभ्य
और सुशिक्षित समझने वाले पाश्चात्य देशों को आईना दिखाया। भारत की सोच, उसके दर्शन, उसकी सभ्यता-संस्कृति और आध्यात्मिक
महानता का संदेश दिया। देश के भीतर घूम-घूमकर भी उन्होंने सभी युवकों और
नर-नारियों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया कि उनमें अदम्य शक्ति है। और यदि
वह अपनी धरोहर व सामर्थ्य को पहचानें तो वह एक बार फिर विश्वगुरु के आसन पर बैठ
सकते हैं। आज स्वामी विवेकानंद के आने के 150 वर्ष बाद भी
उनके संदेश की उतनी ही आवश्यकता महसूस होती है जितनी तब थी। स्वाधीनता के बाद आज
हम जिस दुर्दशा और दिशाहीनता का अनुभव कर रहे हैं, उसमें
स्वामी विवेकानंद, उनके विचार, उनके आह्वान
और उद्घोष का व्यापक प्रचार-प्रसार ही संभवत: हमें पुनर्जीवित कर सकेगा। इसी को
ध्यान में रखते हुए 'स्वामी विवेकानंद सार्द्धशती समारोह
समिति’ ने स्वामी विवेकानंद की 150वीं
जयंती वर्षभर मनाने का निर्णय किया है। आयोजन का उद्देश्य है कि देशवासी स्वामी
विवेकानंद के जीवन और उनके विचारों से प्रेरणा लेकर समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारी
समझें और देश के लिए कुछ करने का संकल्प लें। वर्षभर समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों
के लिए आयोजित होने वाले कार्यक्रमों का उद्देश्य समाज को जागरूक करना ही है और
जागरूक समाज को किसी राजनीतिक दल में कार्य करने के लिए नहीं लगाया जाएगा, बल्कि वे समाज के प्रति अपना कुछ दायित्व समझकर देश के लिए कुछ कार्य करें
इसलिए यह समारोह आयोजित किया जा रहा है।
-डा. सुभाष चंद्र कश्यप, मानद अध्यक्ष, स्वामी विवेकानंद सार्द्धशती समारोह समिति
-स्वामी
विवेकानंद
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQa1_kssKyDNEVrZ7drRxPQ1tUMIveeyUKZLUMZ1RpaVOlm-sHE3ZN4kzKoYRoNVgq9F6LufLjdW2glEN_ZMvyAKQ20YLZ0WSJsdUgDfzKTP7bbG7-KzlL0VW0OTw17za2gVQJXb8KT8Y/s200/Swami_Vivekananda+01.jpg)
* कमजोरी
का इलाज कमजोरी का विचार करना नहीं, पर शक्ति का विचार करना
है। मनुष्यों को शक्ति की शिक्षा दो, जो पहले से ही उनमें
हैं।
* अपने
आप में विश्वास रखने का आदर्श ही हमारा सबसे बड़ा सहायक है। सभी क्षेत्रों में यदि
अपने आप में विश्वास करना हमें सिखया जाता और उसका अभ्यास कराया जाता, तो निश्चिय है कि हमारी बुराइयों तथा दु:खों का बहुत बड़ा भाग तक मिट गया
होता।
* कर्म
करना बहुत अच्छा है, पर वह विचारों से आता है...इसलिए अपने
मस्तिष्क को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शों से भर लो, उन्हें
रात-दिन अपने सामने रखो; उन्हीं में से महान कार्यों का जन्म
होगा।
* संसार
की क्रूरता और पापों की बात मत करो। इसी बात पर खेद करो कि तुम अभी भी क्रूरता
देखने को विवश हो। इसी का तुमको दु:ख होना चाहिए कि तुम अपने चारों ओर केवल पाप
देखने के लिए बाध्य हो। यदि तुम संसार की सहायता करना आवश्यक समझते हो, तो उसकी निन्दा मत करो। उसे और अधिक कमजोर मत बनाओ। पाप, दु:ख आदि सब क्या है ? कुछ भी नहीं, वे कमजोरी के ही परिणाम हैं। इसी प्रकार के उपदेशों से संसार दिन-प्रतिदिन
अधिकाधिक कमजोर बनाया जा रहा है।
* बाल्यकाल
से ही अपने मस्तिष्क में निश्चित, दृढ़ और सहायक विचारों को
प्रवेश करने दो। अपने आपको इन विचारों के प्रति उन्मुक्त रखो, न कि कमजोर तथा अकर्मण्य बनाने वाले विचारों के प्रति।
* यदि
मानव जाति के आज तक के इतिहास में महान पुरुषों और स्त्रियों के जीवन में सब से
बड़ी प्रवर्तक शक्ति कोई है, तो वह आत्मविश्वास ही है। जन्म
से ही यह विश्वास रहने के कारण कि वे महान होने के लिए ही पैदा हुए हैं, वे महान बने।
* मनुष्य
को, वह जितना नीचे जाता है जाने दो; एक
समय ऐसा अवश्य आएगा, जब वह ऊपर उठने का सहारा पाएगा और अपने
आप में विश्वास करना सीखेगा। पर हमारे लिए यही अच्छा है कि हम इसे पहले से ही जान
लें। अपने आप में विश्वास करना सीखने के लिए हम इस प्रकार के कटु अनुभव क्यो करे?
हम देख सकते हैं
कि एक और दूसरे मनुष्य के बीच अन्तर होने के कारण उसका अपने आप में विश्वास होना
और न होना ही है। अपने आप में विश्वास होने से सब कुछ हो सकता है। मैंने अपने जीवन
में इसका अनुभव किया है अब भी कर रहा हूँ और जैसे-जैसे मैं बड़ा होता जा रहा हूँ
मेरा विश्वास और दृढ़ होता जा रहा है।
* असफलता
की चिन्ता मत करो; ये बिल्कुल स्वाभाविक है, ये असफलताएँ जीवन का सौन्दर्य हैं। उनके बिना जीवन क्या होता ? जीवन का काव्य। संघर्ष और त्रुटियों की परवाह मत करो। मैंने किसी गाय को
झूठ बोलते नहीं सुना, पर वह केवल गाय है, मनुष्य कभी नहीं। इसलिए इन असफलताओं पर ध्यान मत दो, ये छोटी-छोटी फिसलनें हैं। आदर्श को सामने रखकर हजार बार आगे बढ़ऩे का
प्रत्यन करो। यदि तुम हजार बार भी असफल होते हो, तो एक बार
फिर प्रयत्न करो।
* तुम
अपने जीवाणुकोष की अवस्था से लेकर इस मनुष्य-शरीर तक की अवस्था का निरीक्षण करो;
यह सब किसने किया, तुम्हारी अपनी इच्छाशक्ति
ने। यह इच्छाशक्ति सर्वशक्तिमान है, क्या यह तुम अस्वीकार कर
सकते हो ? जो तुम्हें यहाँ तक लाई वही अब भी तुम्हें और ऊँचाई
पर ले जा सकती है। तुम्हें केवल चरित्रवान् होनो और अपनी इच्छाशक्ति को अधिक बलवती
बनाने की आवश्यकता है।
* क्या
तुम जानते हो, तुम्हारे भीतर अभी भी कितना तेज, कितनी शक्तियाँ छिपी हुई हैं ?
क्या कोई वैज्ञानिक भी इन्हें जान सका है? मनुष्य
का जन्म हुए लाखों वर्ष हो गये, पर अभी तक उसकी असीम शक्ति
का केवल एक अत्यन्त क्षुद्र भाग ही अभिव्यक्त हुआ है। इसलिए तुम्हें यह नहीं कहना
चाहिए कि तुम शक्तिहीन हो। तुम क्या जानों कि ऊपर दिखाई देने वाले पतन की ओट में
शक्ति की कितनी सम्भावनाएँ हैं ? जो शक्ति तुममें है, उसके बहुत ही कम भाग को तुम
जानते हो। तुम्हारे पीछे अनन्त शक्ति और शान्ति का सागर है।
* 'जड़’
यदि शक्तिशाली है, तो 'विचार’
सर्वशक्तिमान है। इस विचार को अपने जीवन में उतारों और अपने आपको
सर्वशक्तिमान, महिमान्वित और गौरवसम्पन्न अनुभव करो। ईश्वर
करे तुम्हारे मस्तिष्क में किसी कुसंस्कार को स्थान न मिले। ईश्वर करे, हम जन्म से ही कुसंस्कार डालने वाले वातावरण में न रहें और कमजोरी तथा
बुराई के विचारों से बचें।
देश के लिए कुछ
करने का संकल्प लें
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-डा. सुभाष चंद्र कश्यप, मानद अध्यक्ष, स्वामी विवेकानंद सार्द्धशती समारोह समिति
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