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Jun 18, 2012

लू के थपेड़े

- डॉ. सुधा गुप्ता
1
तन्दूर तपा
धरती- रोटी सिंकी
दहक लाल

2
आग का गोला
फट गया सुबह
बिखरे शोले
3
लपटों घिरा
अगिया बैताल-सा
लू का थपेड़ा
4
आग की गु$फा
भटक गई हवा
जली निकली
5
धूप से तपा
देह पर फफोले
ले, दिन फिरा
6
धूप- दरोगा
गश्त पर निकला
आग- बबूला
7
फटा पड़ा है
हजार टुकड़ों में
पोखर- दिल
8
जेठ की आँच
हवाएँ खौल रहीं
औटते जीव
9
कुपिता धरा
अगन- महल में
आसन- पाटी
10
धधक रही
लाल- पीली कनेर,
सड़कों पर
11
हत शोभा श्री
निर्जला उपासी है
जेठ की धरा
12
उबल रहे
ब्रहाण्ड के देग में
चर- अचर
13
वन- अरण्य
जाले रूई मानिन्द
लपटें, धुँआ
14
अंगारे बिछा
सोने चली धरती
लपटें ओढ़
15
लू के थपेड़े
बिखेरता अंगार
जेठ गुस्साया
16
लाल छाता ले
घूमती वन- कन्या
जेठ धूप में

संपर्क-  'काकली', 120/2, साकेत मेरठ- 250 003 (उ प्र)
          मो. 09410029500

4 comments:

Anant Alok said...

धूप दरोगा
गश्त पर ......बहुत सुंदर

उमेश महादोषी said...

सभी हाइकु बहुत सुन्दर हैं भाव, शिल्प, सौन्दर्य सभी स्तरों पर. नए रचनाकारों के सीखने के लिए श्रद्धेया सुधा जी जैसी महान कवयित्री की रचनाएँ हमेशा प्रेरणादायी होती हैं.

सुभाष नीरव said...

हिंदी हाइकु में डा सुधा गुप्ता का नाम बहुत आदर से लिया जाता है। हिंदी हाइकु पर उन्होंने बहुत काम किया है और श्रेष्ठ हाइकु हिंदी साहित्य को दिये हैं। यहाँ प्रस्तुत उनके हाइकु इसका प्रमाण हैं…

डॉ. जेन्नी शबनम said...

सुधा जी के हाइकु के बिम्ब सदैव बहुत अनोखे होते हैं. रोजमर्रा में प्रयोग होते सहज सुन्दर शब्द और भाव

लपटों घिरा
अगिया बैताल-सा
लू का थपेड़ा

धूप-दरोगा
गश्त पर निकला
आग-बबूला

जेठ की आँच
हवाएँ खौल रहीं
औटते जीव

सुधा जी को बहुत बधाई.