- वन्दना गुप्ता
आज जागरूकता के क्षेत्र में इन साइट्स ने एक ऐसा स्थान हासिल किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता। और इसका ताजा उदाहरण मिस्र और लीबिया है उसके बाद हमारा अपना देश भारत। किसी भी क्रांति को परवान चढ़ाने में इन साइट्स का खासा योगदान रहा है। सबने अपनी- अपनी तरह से बदलाव लाने के लिए योगदान दिया।
आज वैचारिक क्रांति को सोशल साइट्स ने एक ऐसा मंच प्रदान किया है जिसने बौद्धिक जगत में एक तहलका मचा दिया है। कोई इन्सान, कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। इंटरनेट सूचना और संचार का एक ऐसा साधन बन गया है जिसमें कहीं कोई प्रतीक्षा नहीं, मिनटों में समाचार सारी दुनिया में इस तरह फैलता है कि हर खास-ओ-आम इससे जुडऩा चाहता है।
फेसबुक, ट्विटर, ऑरकुट या ब्लॉग सभी ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है और अपना खास योगदान दिया है। आज जब इन सोशल साइट्स का दबदबा इतना बढ़ गया है तब हमारी सरकार इन पर प्रतिबन्ध लगाना चाहती है। ये तो सीधे- सीधे इंसान के मौलिक अधिकारों का हनन है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाना तो गलत है यह तो वैसा ही हुआ जैसे स्वतंत्रता को हथकड़ी पहना कर कटघरे में खड़ा करना। आखिर क्यों? ये प्रश्न उठना जायज है। इस सन्दर्भ में हमें इसके पक्ष और विपक्ष के दोनों पहलू देखने होंगे तभी हम सही आकलन कर पाएंगे।
आज जागरूकता के क्षेत्र में इन साइट्स ने एक ऐसा स्थान हासिल किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता। और इसका ताजा उदाहरण मिस्र और लीबिया है उसके बाद हमारा अपना देश भारत। किसी भी क्रांति को परवान चढ़ाने में इन साइट्स का खासा योगदान रहा है। सबने अपनी- अपनी तरह से बदलाव लाने के लिए योगदान दिया।
आज जैसे ही कोई भी नयी जानकारी या कोई राजनैतिक या सामाजिक हलचल होती है उसके बारे में सबसे पहले इन साइट्स के माध्यम से सूचना मिल जाती है। सरकारी, गैर सरकारी सब क्षेत्र इनसे जुड़े हैं इसका एक ताजा उदाहरण देखिये- हमारी सरकार ने ट्रैफिक पुलिस द्वारा किये गए चालान, या किसी व्यक्ति द्वारा किए गए नियम भंग की ताजा जानकारी, ताजा अपडेट्स यहाँ डाले हैं। ताकि नियम भंग करने वाला चाहे वह कोई नेता हो, मंत्री या संत्री सबको एक समान आँका जाये और उनके खिलाफ उचित कार्यवाही की जा सके। इसका व्यापक असर भी देखने को मिला। इसी प्रकार पुलिस ने भी अपनी साईट बनाई है जिस पर जब चाहे कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है। कहने का तात्पर्य यह कि ये ऐसे उचित माध्यम हैं जो सबकी जरूरत को पूरा करते हैं। फिर क्यों चाहती है सरकार, कि इन पर प्रतिबन्ध लगे। प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
लेकिन हमें देखना होगा कि बेशक इन साइट्स ने लोकप्रियता हासिल कर ली है और खरी भी उतर रही हैं मगर जिस तरह सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं उसी तरह यहाँ भी हैं। हर अच्छाई के साथ बुराई का चोली दामन का साथ होता है। ऐसे में यहाँ कई बार अश्लील सामग्री मिल जाती है या कई बार कुछ नेताओं के बारे में आपत्तिजनक तथ्य डाल दिए जाते हैं या उन्हें अपमानित कर दिया जाता है कहने का तात्पर्य यह कि इससे सरकार घबरा गयी है क्योंकि उनके खिलाफ इसका प्रयोग इस तरह हो जाएगा ऐसा तो उन्होंने सोचा भी नहीं था। तब जब उन्हें इसका कोई और हल नजर नहीं आया तो उन्होंने इन पर प्रतिबन्ध लगना ही उचित समझा। इसके साथ ही एंटी सोशल एलिमंट्स भी सक्रिय हो जाते हैं जिससे सूचनाओं का गलत प्रयोग होने लगता है तब घबराहट बढऩे लगती है मगर जब अंतरजाल के अथाह सागर में आप उतरे हैं तो छोटे- मोटे हिलोर तो आयेंगे ही लेकिन उनसे घबरा कर वापस मुडऩा एक तैराक के लिए तो संभव नहीं है वो तो हर हाल में उसे पार करना चाहेगा बस उसे अपना ध्यान अपने लक्ष्य की तरफ रखना होगा।
सरकार चाहती है अश्लीलता पर प्रतिबन्ध लगे... ये बेशक सही बात है मगर क्या इतना करने से सब सही हो जायेगा? अंतर्जाल की दुनिया तो इन सबसे भरी पड़ी है और कहाँ तक आप किस- किस को बचायेंगे और कैसे? सब काम ये साइट्स तो नहीं कर सकते? जिसे ऐसी साइट्स पर जाना होगा वह अंतर्जाल के माध्यम से जायेगा और जो कहना होगा वह कहेगा। ऐसे में क्या फायदा सिर्फ इन साइट्सों पर ही प्रतिबन्ध लगाने का। उचित है कि हम खुद में बदलाव लायें और समझें कि इन साइट्स की क्या उपयोगिता है और उन्हें सकारात्मक उद्देश्य से प्रयोग करें। अपने बच्चों को इनकी उपयोगिता के बारे में समझाएं ना कि इस तरह के प्रतिबन्ध लगायें। क्योंकि आने वाला वक्त इन्हीं सबका है। जहाँ ना जाने कितना जहान बिखरा पड़ा है। तो आखिर कब तक और कहाँ तक रोक लगायी जा सकेगी। एक न एक दिन इन सबका सामना तो करना ही पड़ेगा। वैसे भी इन साइट्स के संचालकों का कहना सही है यदि हमारे पास कोई सूचना आती है तो हम उस खाते को बंद कर देते हैं मगर पूरी तरह निगरानी करना तो संभव नहीं है। आप ही सोचिये जरा जब हम अपने 2-3 बच्चों पर निगरानी नहीं रख पाते और उन्हें ऐसी साइट्स देखने से रोक नहीं पाते तो कैसे संभव है कि इस महासागर में कौन क्या लिख रहा है या क्या लगा रहा है पता लगाना कैसे संभव है?
आपसी समझ और सही दिशा बोध से ही हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं। मगर आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना किसी भी तरह उचित नहीं है क्योंकि आने वाला कल इन्ही उपयोगिताओं का है जिनसे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। बदलाव को स्वीकारना ही होगा मगर एक स्वस्थ सोच के साथ। आत्म-नियंत्रण और स्वस्थ मानसिकता ही एक स्वस्थ और उज्ज्वल समाज को बनाने में सहायक हो सकती है ना की आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध।
संपर्क- डी-19, राना प्रताप रोड, आदर्श नगर, दिल्ली - 110033,
मो. 09868077896, vandana-zindagi.blogspot.com
फेसबुक, ट्विटर, ऑरकुट या ब्लॉग सभी ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है और अपना खास योगदान दिया है। आज जब इन सोशल साइट्स का दबदबा इतना बढ़ गया है तब हमारी सरकार इन पर प्रतिबन्ध लगाना चाहती है। ये तो सीधे- सीधे इंसान के मौलिक अधिकारों का हनन है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाना तो गलत है यह तो वैसा ही हुआ जैसे स्वतंत्रता को हथकड़ी पहना कर कटघरे में खड़ा करना। आखिर क्यों? ये प्रश्न उठना जायज है। इस सन्दर्भ में हमें इसके पक्ष और विपक्ष के दोनों पहलू देखने होंगे तभी हम सही आकलन कर पाएंगे।
आज जागरूकता के क्षेत्र में इन साइट्स ने एक ऐसा स्थान हासिल किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता। और इसका ताजा उदाहरण मिस्र और लीबिया है उसके बाद हमारा अपना देश भारत। किसी भी क्रांति को परवान चढ़ाने में इन साइट्स का खासा योगदान रहा है। सबने अपनी- अपनी तरह से बदलाव लाने के लिए योगदान दिया।
आज जैसे ही कोई भी नयी जानकारी या कोई राजनैतिक या सामाजिक हलचल होती है उसके बारे में सबसे पहले इन साइट्स के माध्यम से सूचना मिल जाती है। सरकारी, गैर सरकारी सब क्षेत्र इनसे जुड़े हैं इसका एक ताजा उदाहरण देखिये- हमारी सरकार ने ट्रैफिक पुलिस द्वारा किये गए चालान, या किसी व्यक्ति द्वारा किए गए नियम भंग की ताजा जानकारी, ताजा अपडेट्स यहाँ डाले हैं। ताकि नियम भंग करने वाला चाहे वह कोई नेता हो, मंत्री या संत्री सबको एक समान आँका जाये और उनके खिलाफ उचित कार्यवाही की जा सके। इसका व्यापक असर भी देखने को मिला। इसी प्रकार पुलिस ने भी अपनी साईट बनाई है जिस पर जब चाहे कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है। कहने का तात्पर्य यह कि ये ऐसे उचित माध्यम हैं जो सबकी जरूरत को पूरा करते हैं। फिर क्यों चाहती है सरकार, कि इन पर प्रतिबन्ध लगे। प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
लेकिन हमें देखना होगा कि बेशक इन साइट्स ने लोकप्रियता हासिल कर ली है और खरी भी उतर रही हैं मगर जिस तरह सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं उसी तरह यहाँ भी हैं। हर अच्छाई के साथ बुराई का चोली दामन का साथ होता है। ऐसे में यहाँ कई बार अश्लील सामग्री मिल जाती है या कई बार कुछ नेताओं के बारे में आपत्तिजनक तथ्य डाल दिए जाते हैं या उन्हें अपमानित कर दिया जाता है कहने का तात्पर्य यह कि इससे सरकार घबरा गयी है क्योंकि उनके खिलाफ इसका प्रयोग इस तरह हो जाएगा ऐसा तो उन्होंने सोचा भी नहीं था। तब जब उन्हें इसका कोई और हल नजर नहीं आया तो उन्होंने इन पर प्रतिबन्ध लगना ही उचित समझा। इसके साथ ही एंटी सोशल एलिमंट्स भी सक्रिय हो जाते हैं जिससे सूचनाओं का गलत प्रयोग होने लगता है तब घबराहट बढऩे लगती है मगर जब अंतरजाल के अथाह सागर में आप उतरे हैं तो छोटे- मोटे हिलोर तो आयेंगे ही लेकिन उनसे घबरा कर वापस मुडऩा एक तैराक के लिए तो संभव नहीं है वो तो हर हाल में उसे पार करना चाहेगा बस उसे अपना ध्यान अपने लक्ष्य की तरफ रखना होगा।
सरकार चाहती है अश्लीलता पर प्रतिबन्ध लगे... ये बेशक सही बात है मगर क्या इतना करने से सब सही हो जायेगा? अंतर्जाल की दुनिया तो इन सबसे भरी पड़ी है और कहाँ तक आप किस- किस को बचायेंगे और कैसे? सब काम ये साइट्स तो नहीं कर सकते? जिसे ऐसी साइट्स पर जाना होगा वह अंतर्जाल के माध्यम से जायेगा और जो कहना होगा वह कहेगा। ऐसे में क्या फायदा सिर्फ इन साइट्सों पर ही प्रतिबन्ध लगाने का। उचित है कि हम खुद में बदलाव लायें और समझें कि इन साइट्स की क्या उपयोगिता है और उन्हें सकारात्मक उद्देश्य से प्रयोग करें। अपने बच्चों को इनकी उपयोगिता के बारे में समझाएं ना कि इस तरह के प्रतिबन्ध लगायें। क्योंकि आने वाला वक्त इन्हीं सबका है। जहाँ ना जाने कितना जहान बिखरा पड़ा है। तो आखिर कब तक और कहाँ तक रोक लगायी जा सकेगी। एक न एक दिन इन सबका सामना तो करना ही पड़ेगा। वैसे भी इन साइट्स के संचालकों का कहना सही है यदि हमारे पास कोई सूचना आती है तो हम उस खाते को बंद कर देते हैं मगर पूरी तरह निगरानी करना तो संभव नहीं है। आप ही सोचिये जरा जब हम अपने 2-3 बच्चों पर निगरानी नहीं रख पाते और उन्हें ऐसी साइट्स देखने से रोक नहीं पाते तो कैसे संभव है कि इस महासागर में कौन क्या लिख रहा है या क्या लगा रहा है पता लगाना कैसे संभव है?
आपसी समझ और सही दिशा बोध से ही हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं। मगर आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना किसी भी तरह उचित नहीं है क्योंकि आने वाला कल इन्ही उपयोगिताओं का है जिनसे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। बदलाव को स्वीकारना ही होगा मगर एक स्वस्थ सोच के साथ। आत्म-नियंत्रण और स्वस्थ मानसिकता ही एक स्वस्थ और उज्ज्वल समाज को बनाने में सहायक हो सकती है ना की आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध।
संपर्क- डी-19, राना प्रताप रोड, आदर्श नगर, दिल्ली - 110033,
मो. 09868077896, vandana-zindagi.blogspot.com
1 comment:
पूरी तरह से सहमत !
Post a Comment