
(इन्दौर में लता मंगेशकर अलंकरण के अवसर पर 18 फरवरी, 2001 को व्यक्त भूपेन हजारिका के विचार)
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सुर के पंछी
- भूपेन हजारिका
एक सुर
दो सुर, सुर के पंछियों का झुण्ड
झुण्ड के झुण्ड सुर बसेरे बनाते हैं
मन- शिविर में
आवाजाही जारी रहती है
शब्द का पताका तूफान
कुछ लोग गीतों के जरिए
सामने आते हैं
कण्ठरुद्घ प्रकाश
कण्ठहीन कण्ठ से
अनगिनत अन्तराएं
आबद्घ होता है नाद ब्रह्म
एक सुर दो सुर
सुर के पंछियों का झुण्ड
शून्य में उड़ता है
विसर्जन की प्रतिमा की तरह
गीत- संगीत का जादूगर
भूपेन हजारिका के गायन की शुरूआत कैसे हुई इसका एक दिलचस्प वाक्या है घटना तब की है जब वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे। गीत- संगीत का शौक तो था ही एक दिन वे अपने हॉस्टल के कमरे में बैठे भजन गुनगुना रहे थे। तभी सेठ घनश्याम दास बिड़ला वहां से गुजरे उन्होंने उनका भजन सुना और वे ठिठक गए। भजन खत्म होने पर वे उनके पास गए और पहले तो उनके बारे में उनसे पूछताछ की फिर 50 रुपये के कड़कड़ाते हुए नोट उन्हें देते हुए उनके भजन की प्रसंशा की और आशीर्वाद दिया कि खूब रियाज़ करो और बढिय़ा गाओ, देखना तुम एक दिन महान गायक बनोगे, दुनिया में तुम्हारा नाम होगा। घनश्याम दास जी के वचन सत्य सिद्ध हुए। कॉलेज में अपने शौक पूरा करने के लिए भजन गुनगुनाने वाला युवक भूपेन आगे चलकर महान गायक और संगीतकार बना। और दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया।
भूपेन की गायकी से जुड़ा एक और मजेदार वाक्या है। एक बार उन्हें कॉलेज में आए नए विद्यार्थियों के लिए रखे गए स्वागत समारोह में एक भाषण पढऩा था। भूपेन के पिता ने उन्हें वो भाषण लिख कर भी दिया था। लेकिन स्टेज पर आते ही भूपेन वह भाषण भूल गए और वहां उन्होंने एक गाना सुनाया। वहां उपस्थित सभी लोगों को भूपेन ने अपने गाने से मंत्रमुग्ध कर दिया और वो अपने कॉलेज में लोकप्रिय हो गए। फिर भूपेन ने संगीत से जुड़ी कई पुस्तकों का अध्ययन किया। धीरे- धीरे संगीत के क्षेत्र में खुद को स्थापित किया इसके बाद तो उनके गीत- संगीत का जादू ऐसे गूंजा कि पूरी दुनिया में उनकी आवाज गूंजने लगी।
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सुर के पंछी
- भूपेन हजारिका
एक सुर
दो सुर, सुर के पंछियों का झुण्ड
झुण्ड के झुण्ड सुर बसेरे बनाते हैं
मन- शिविर में

आवाजाही जारी रहती है
शब्द का पताका तूफान
कुछ लोग गीतों के जरिए
सामने आते हैं
कण्ठरुद्घ प्रकाश
कण्ठहीन कण्ठ से
अनगिनत अन्तराएं
आबद्घ होता है नाद ब्रह्म
एक सुर दो सुर
सुर के पंछियों का झुण्ड
शून्य में उड़ता है
विसर्जन की प्रतिमा की तरह
गीत- संगीत का जादूगर
भूपेन हजारिका के गायन की शुरूआत कैसे हुई इसका एक दिलचस्प वाक्या है घटना तब की है जब वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे। गीत- संगीत का शौक तो था ही एक दिन वे अपने हॉस्टल के कमरे में बैठे भजन गुनगुना रहे थे। तभी सेठ घनश्याम दास बिड़ला वहां से गुजरे उन्होंने उनका भजन सुना और वे ठिठक गए। भजन खत्म होने पर वे उनके पास गए और पहले तो उनके बारे में उनसे पूछताछ की फिर 50 रुपये के कड़कड़ाते हुए नोट उन्हें देते हुए उनके भजन की प्रसंशा की और आशीर्वाद दिया कि खूब रियाज़ करो और बढिय़ा गाओ, देखना तुम एक दिन महान गायक बनोगे, दुनिया में तुम्हारा नाम होगा। घनश्याम दास जी के वचन सत्य सिद्ध हुए। कॉलेज में अपने शौक पूरा करने के लिए भजन गुनगुनाने वाला युवक भूपेन आगे चलकर महान गायक और संगीतकार बना। और दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया।
भूपेन की गायकी से जुड़ा एक और मजेदार वाक्या है। एक बार उन्हें कॉलेज में आए नए विद्यार्थियों के लिए रखे गए स्वागत समारोह में एक भाषण पढऩा था। भूपेन के पिता ने उन्हें वो भाषण लिख कर भी दिया था। लेकिन स्टेज पर आते ही भूपेन वह भाषण भूल गए और वहां उन्होंने एक गाना सुनाया। वहां उपस्थित सभी लोगों को भूपेन ने अपने गाने से मंत्रमुग्ध कर दिया और वो अपने कॉलेज में लोकप्रिय हो गए। फिर भूपेन ने संगीत से जुड़ी कई पुस्तकों का अध्ययन किया। धीरे- धीरे संगीत के क्षेत्र में खुद को स्थापित किया इसके बाद तो उनके गीत- संगीत का जादू ऐसे गूंजा कि पूरी दुनिया में उनकी आवाज गूंजने लगी।
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