- राम अवतार साचान
हमें आजादी मिली सन् 1947 में और हमने आजाद हिन्दुस्तान में सांस ली। हमारा संविधान बना और लागू किया गया 26 जनवरी 1950 को। यहीं हमारे लोकतंत्र दिवस की स्थापना हुई वैसे इतिहासकारों के अनुसार हम 30 जनवरी 1930 में भी गणतंत्र की अनौपचारिक घोषणा कर चुके थे।
हमारा लोकतंत्र तो लोक चेतना और सामाजिक आजादी का शंखनाद था लेकिन ऐसा हुआ नहीं यहां पर केवल अंग्रेजों को हटाने मात्र से आजादी मान ली गई और सामाजिक व्यवस्था अलग रखकर केवल आर्थिक विकास को ही मूल लक्ष्य मान लिया गया। जिससे हुआ कुछ ऐसा कि समाज की सभी विसंगतियां जीवित रहीं, जिसकी वजह वही आज वोट बैंक, क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्मवाद, भाषावाद और न जाने किस किस तरह के समीकरणों को जन्म दिया। इसी वजह से कई नए राज्य बने जिसमें कई तरह की विसंगतियां थी।
क्योंकि जिस समय लोकतंत्र बना और आजादी मिली उस समय के तमाम राष्ट्रीय नेता या तो मारे गए या उन्होंने सत्ता की भागीदारी से साफ मना कर दिया। क्योंकि वे सामाजिक विसंगतियों को नष्ट करने की क्षमता रखते थे और जो जनतंत्र उनके साथ था वह नहीं रहा।
देश के अंदर सन् 1952 में पहला चुनाव हुआ तब जनता में बड़ा ही उत्साह था कि हमारी सरकार होगी हम स्वयं उसके कर्णधार होंगे। जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं 'जनता की सरकार, जनता द्वारा जनता के लिएÓ यह उस समय के लोकतंत्र का नारा था। लेकिन समय के साथ ही साथ इसमें भी जल्दी गिरावट आई और उसके मायने ही बदल गए। आज एक सांसद के चुनाव में लगभग दस करोड़ खर्च होते हैं। यही नहीं गांव के पंचायत चुनाव में भी धन, बल और सत्ता का खुलकर दुरुपयोग किया जा रहा है। अत: मुझे कहने में कोई संकोच नहीं होगा कि आज के लोकतंत्र की व्यवस्था- 'अमीरों की सरकार, अमीरों द्वारा अमीरों के लिए' है।
इसमें जनता कहां बैठती है- आज का नेता अपने को संबल कदापि नहीं समझता वह शासक की भूमिका में रहता है और जनता प्रजा की स्थिति में। वह सारे अपराध (अपहरण, भ्रष्टाचार वित्तीय घोटाला इत्यादि) कार्य खुलकर करता है। जो पहले के शासक किया करते थे। ऐसे में कहां गया हमारा तुम्हारा प्यारा लोकतंत्र।
संपर्क: 93/9 बलरामपुर हाउस, मम्फोर्डगंज,
इलाहाबाद- 211002, मो. 9628216646
हमारा लोकतंत्र तो लोक चेतना और सामाजिक आजादी का शंखनाद था लेकिन ऐसा हुआ नहीं यहां पर केवल अंग्रेजों को हटाने मात्र से आजादी मान ली गई और सामाजिक व्यवस्था अलग रखकर केवल आर्थिक विकास को ही मूल लक्ष्य मान लिया गया। जिससे हुआ कुछ ऐसा कि समाज की सभी विसंगतियां जीवित रही।
हमारा लोकतंत्र तो लोक चेतना और सामाजिक आजादी का शंखनाद था लेकिन ऐसा हुआ नहीं यहां पर केवल अंग्रेजों को हटाने मात्र से आजादी मान ली गई और सामाजिक व्यवस्था अलग रखकर केवल आर्थिक विकास को ही मूल लक्ष्य मान लिया गया। जिससे हुआ कुछ ऐसा कि समाज की सभी विसंगतियां जीवित रहीं, जिसकी वजह वही आज वोट बैंक, क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्मवाद, भाषावाद और न जाने किस किस तरह के समीकरणों को जन्म दिया। इसी वजह से कई नए राज्य बने जिसमें कई तरह की विसंगतियां थी।
क्योंकि जिस समय लोकतंत्र बना और आजादी मिली उस समय के तमाम राष्ट्रीय नेता या तो मारे गए या उन्होंने सत्ता की भागीदारी से साफ मना कर दिया। क्योंकि वे सामाजिक विसंगतियों को नष्ट करने की क्षमता रखते थे और जो जनतंत्र उनके साथ था वह नहीं रहा।
देश के अंदर सन् 1952 में पहला चुनाव हुआ तब जनता में बड़ा ही उत्साह था कि हमारी सरकार होगी हम स्वयं उसके कर्णधार होंगे। जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं 'जनता की सरकार, जनता द्वारा जनता के लिएÓ यह उस समय के लोकतंत्र का नारा था। लेकिन समय के साथ ही साथ इसमें भी जल्दी गिरावट आई और उसके मायने ही बदल गए। आज एक सांसद के चुनाव में लगभग दस करोड़ खर्च होते हैं। यही नहीं गांव के पंचायत चुनाव में भी धन, बल और सत्ता का खुलकर दुरुपयोग किया जा रहा है। अत: मुझे कहने में कोई संकोच नहीं होगा कि आज के लोकतंत्र की व्यवस्था- 'अमीरों की सरकार, अमीरों द्वारा अमीरों के लिए' है।
इसमें जनता कहां बैठती है- आज का नेता अपने को संबल कदापि नहीं समझता वह शासक की भूमिका में रहता है और जनता प्रजा की स्थिति में। वह सारे अपराध (अपहरण, भ्रष्टाचार वित्तीय घोटाला इत्यादि) कार्य खुलकर करता है। जो पहले के शासक किया करते थे। ऐसे में कहां गया हमारा तुम्हारा प्यारा लोकतंत्र।
संपर्क: 93/9 बलरामपुर हाउस, मम्फोर्डगंज,
इलाहाबाद- 211002, मो. 9628216646
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