हर विधा का संतुलित रूप
कुछ समय से हिन्दी पत्रिका उदंती को ऑनलाइन पढ़ता आ रहा हूं। इसमें प्रकाशित उत्कृष्ट आलेख, कहानी, कविता, लघुकथा आदि को पढ़ा और पाया कि यह पत्रिका हर विधा को संतुलित रूप में सामने रखने वाली कुछेक पत्रिकाओं में से एक है। पढऩे के साथ- साथ मन में कहीं अपनी रचना भी इसमें प्रकाशित होते देखने की इच्छा बलवती हुई। चूंकि मैं भारत से बाहर यहां यू.के. में अनुसन्धानरत हूं तो क्या डाक के बजाए ई-मेल द्वारा रचनाएं भेजने का प्रावधान है? यदि उनमें से कोई रचना आपको पत्रिका के स्तर के अनुरूप लगे तो स्थान देने की कृपा करें।
पिकासो के संस्मरण पढ़ कर यह कहना पड़ता है कि कितने जिंदादिल लोग थे जो विषम परिस्थियों में भी अपना सेंस आफ ह्यूमर नहीं खोते थे।
उदंती में सभी कुछ तो समेट लिया है आपने.. एक संपूर्ण अंक निकालने के लिए बधाई।
उदंती का जवनरी अंक मुझे दो दिन पहले ही प्राप्त हुआ है। यह अंक बेहद आकर्षक संग्रहनीय एवं सार्थक है। उदंती में एक जिजीविषा तिरती नजर आती है। इसमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह है। उदंती के भविष्य के प्रति मंै आशावान हूं। पत्रिका सम्पादकीय गरिमा के अनुरूप है।
अनुभवों का शंखनाद
नए अंक की सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं पर इन पंक्तियों में जो बात है वो अभिभूत करती है ...
एक नया साल
नई उम्मीदों के संग
लिपटा है तेरी टहनियों से
नए सपनों की सरसराहट है पत्तों में
तुम्हारे जड़ों की मजबूती
सपनों का हौसला ... रश्मि प्रभा जी की इस रचना प्रस्तुति के लिये आपका आभार।
पहली दोनों कविता बहुत सुन्दर है... और फिर हाइकु की लड़ी भी अनुपम है...
रश्मिदी की कविता अनुभवों का शंखनाद मुझे बहुत अच्छी लगी... परंपरा के साथ नए जमाने की बात करती हुई...
नए वर्ष पर रश्मि प्रभा, आशा भाटी और भावना कुँअर की रचनाएं बहुत प्रभावशाली हैं। तीनों कविताओं में सजीव चित्रण किया गया है.
वो सुबह कभी तो आएगी... इस मुद्दे को उठाकर आपने बहुत अच्छा किया। पर क्या जनता ये तय कर पाएगी की ईमानदार कौन है? अक्सर ऐसा भी होता है कि गुरबत को खरीदने के लिए अमीरी तत्पर रहती है। हां जनता ईमानदार और निष्ठावान हो तो बात बन सकती है। अशोक भाटिया जी की लघुकथाओं में लघुत्तम तत्व के साथ और भी बारीकियां शामिल हैं जो काहानी को लघुकथा बनाने में सफल होती हैं।
कुछ समय से हिन्दी पत्रिका उदंती को ऑनलाइन पढ़ता आ रहा हूं। इसमें प्रकाशित उत्कृष्ट आलेख, कहानी, कविता, लघुकथा आदि को पढ़ा और पाया कि यह पत्रिका हर विधा को संतुलित रूप में सामने रखने वाली कुछेक पत्रिकाओं में से एक है। पढऩे के साथ- साथ मन में कहीं अपनी रचना भी इसमें प्रकाशित होते देखने की इच्छा बलवती हुई। चूंकि मैं भारत से बाहर यहां यू.के. में अनुसन्धानरत हूं तो क्या डाक के बजाए ई-मेल द्वारा रचनाएं भेजने का प्रावधान है? यदि उनमें से कोई रचना आपको पत्रिका के स्तर के अनुरूप लगे तो स्थान देने की कृपा करें।
- दीपक चौरसिया 'मशाल', उत्तरी आयरलैंड (यू.के.)
mashal.com@gmail.com
नहीं, ये तुम्हारा काम हैmashal.com@gmail.com
पिकासो के संस्मरण पढ़ कर यह कहना पड़ता है कि कितने जिंदादिल लोग थे जो विषम परिस्थियों में भी अपना सेंस आफ ह्यूमर नहीं खोते थे।
उदंती में सभी कुछ तो समेट लिया है आपने.. एक संपूर्ण अंक निकालने के लिए बधाई।
- cmpershad
cmpershad@gmail.com
जिजीविषा तिरती नजर आती हैcmpershad@gmail.com
उदंती का जवनरी अंक मुझे दो दिन पहले ही प्राप्त हुआ है। यह अंक बेहद आकर्षक संग्रहनीय एवं सार्थक है। उदंती में एक जिजीविषा तिरती नजर आती है। इसमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह है। उदंती के भविष्य के प्रति मंै आशावान हूं। पत्रिका सम्पादकीय गरिमा के अनुरूप है।
-राम किशन भंवर
R.K.Singh, ram_kishans@rediffmail.com
Mobile:9450003746
R.K.Singh, ram_kishans@rediffmail.com
Mobile:9450003746
अनुभवों का शंखनाद
नए अंक की सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं पर इन पंक्तियों में जो बात है वो अभिभूत करती है ...
एक नया साल
नई उम्मीदों के संग
लिपटा है तेरी टहनियों से
नए सपनों की सरसराहट है पत्तों में
तुम्हारे जड़ों की मजबूती
सपनों का हौसला ... रश्मि प्रभा जी की इस रचना प्रस्तुति के लिये आपका आभार।
- sadalikhna.blogpost.com
नए जमाने की बातपहली दोनों कविता बहुत सुन्दर है... और फिर हाइकु की लड़ी भी अनुपम है...
रश्मिदी की कविता अनुभवों का शंखनाद मुझे बहुत अच्छी लगी... परंपरा के साथ नए जमाने की बात करती हुई...
- Indranil Bhattacharjee
सजीव चित्रणनए वर्ष पर रश्मि प्रभा, आशा भाटी और भावना कुँअर की रचनाएं बहुत प्रभावशाली हैं। तीनों कविताओं में सजीव चित्रण किया गया है.
- सहज साहित्य, rdkamboj@gmail.com
ईमानदार कौनवो सुबह कभी तो आएगी... इस मुद्दे को उठाकर आपने बहुत अच्छा किया। पर क्या जनता ये तय कर पाएगी की ईमानदार कौन है? अक्सर ऐसा भी होता है कि गुरबत को खरीदने के लिए अमीरी तत्पर रहती है। हां जनता ईमानदार और निष्ठावान हो तो बात बन सकती है। अशोक भाटिया जी की लघुकथाओं में लघुत्तम तत्व के साथ और भी बारीकियां शामिल हैं जो काहानी को लघुकथा बनाने में सफल होती हैं।
- देवी नागरानी, न्यूजर्सी, यूके
1 comment:
उदंती का यह अंक भी गरिमा पूर्ण है .बहु आयामी रचनाओं ने जहाँ सार्थक साहित्य को विस्तार दिया है वहीँ सजगता पूर्ण और निष्पक्ष चयन इसे महत्वपूर्ण बनाया है .समूचे उदंती परिवार तथा रचनाकारों को इस अंक के लिए बधाई .
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