आपका नंबर भी आएगा
- प्रो. डॉ. मधुसूदन पुरोहित
- प्रो. डॉ. मधुसूदन पुरोहित
अपने भाग्य के साथ कार्यक्षमता पर भी विचार करना पड़ता है। सारे विचार जब स्थिर हो जाने हैं तब कहीं जाकर वह लाइन में खड़े होता है, जहां पहले से ही अपनी- अपनी चाहत को पूरा करने वाले लाइन लगाकर खड़े होते हैं।
प्रत्येक आदमी जिंदगी में कुछ करना चाहता है, कुछ पाना चाहता है, परंतु कुछ भी पाने की चाहत रखने का मतलब है उस मंजिल लिए प्रयत्न करना। और मंजिल तक पहुंचने के लिए पढऩा, लिखना जरूरी है। पढऩे- लिखने के लिए विद्यार्जन आवश्यक है। लेकिन यह सब भी तभी संभव है जब उसे यह पता हो कि उसकी रूचि क्या है, कौन सी इच्छा उसके मन में, दिमाग में है। इसके साथ साथ उसे परिवार में माता- पिता की इच्छा का भी अवलोकन करना पड़ता है।
इस प्रकार अपने रहन सहन व आस- पास की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, इन सभी बातों का मंथन करके आदमी विचार करता है कि उसे क्या करना है। जब वह इस निर्णय तक पहुंच जाता है कि उसे क्या करना है तब फिर उसे इसके लिए कही खड़े होना पड़ता है। या कहीं लाईन लगाना पड़ता है।
इस प्रकार अपने रहन सहन व आस- पास की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, इन सभी बातों का मंथन करके आदमी विचार करता है कि उसे क्या करना है। जब वह इस निर्णय तक पहुंच जाता है कि उसे क्या करना है तब फिर उसे इसके लिए कही खड़े होना पड़ता है। या कहीं लाईन लगाना पड़ता है।
भारत की जनसंख्या इतनी अधिक बढ़ गई है कि व्यक्ति को अपनी पसंद का कुछ पाने के लिए हर क्षेत्र में इंतजार करना पड़ता है। फिर आरक्षण की नीति भी उसके सामने मुंह खोले खड़ी हुई हैं, जिसे देखते हुए सोचना पड़ता है कि वहां उसका नम्बर कभी लगेगा भी या नहीं।
इन सबके साथ उसे अपने भाग्य के साथ कार्यक्षमता पर भी विचार करना पड़ता है। सारे विचार जब स्थिर हो जाने हैं तब कहीं जाकर वह लाइन में खड़े होता है, जहां पहले से ही अपनी- अपनी चाहत को पूरा करने वाले लाइन लगाकर खड़े होते हैं।
अपने गंतव्य तक जाने के लिए जिस चौराहे पर सब खड़े हैं वहां से पंगडंडी, बैलगाड़ी, साइकिल, तांगा और रिक्शा से उसे बस स्टैंड, रेल्वे स्टेशन, एयरपोर्ट आदि तक जाना होता है। वहां पंहुच कर वह देखता है कि कौन सा वाहन सबसे पहले छूट रहा है। उसकी आंखों के सामने जो वाहन सबसे पहले छूट रहा होता है उस ओर वह दौडऩा शुरु करता है। दौड़ते- हांफते हुए वह शारीरिक क्षमता कमजोर होने पर गंतव्य स्थान तक पहुंच नहीं पाता और इस तरह वह बस छूट जाती है।
वहां से निराश लौटकर वह रेलवे स्टेशन रेल पकडऩे के लिए दौड़ता है परंतु वहां पंहुचने में भी देरी होती है और वह दौड़कर भी रेल के डिब्बे में चढ़ नहीं पाता। लेकिन उसकी चाहत तब भी बनी रहती है और वह हवाई जहाज की ओर बढ़ता है, परंतु वहां भी उसे निराशा ही हाथ लगती है।
इस प्रकार गन्तव्य स्थान पर अपनी इच्छानुसार कार्य करने पहुंच नहीं पाता। काश वह एक ही लाइन में धैर्य पूर्वक खड़ा होता और अपना नम्बर आने का इंतजार करता तो उसे जीवन में सफलता जरूर मिलती।
इन सबके साथ उसे अपने भाग्य के साथ कार्यक्षमता पर भी विचार करना पड़ता है। सारे विचार जब स्थिर हो जाने हैं तब कहीं जाकर वह लाइन में खड़े होता है, जहां पहले से ही अपनी- अपनी चाहत को पूरा करने वाले लाइन लगाकर खड़े होते हैं।
अपने गंतव्य तक जाने के लिए जिस चौराहे पर सब खड़े हैं वहां से पंगडंडी, बैलगाड़ी, साइकिल, तांगा और रिक्शा से उसे बस स्टैंड, रेल्वे स्टेशन, एयरपोर्ट आदि तक जाना होता है। वहां पंहुच कर वह देखता है कि कौन सा वाहन सबसे पहले छूट रहा है। उसकी आंखों के सामने जो वाहन सबसे पहले छूट रहा होता है उस ओर वह दौडऩा शुरु करता है। दौड़ते- हांफते हुए वह शारीरिक क्षमता कमजोर होने पर गंतव्य स्थान तक पहुंच नहीं पाता और इस तरह वह बस छूट जाती है।
वहां से निराश लौटकर वह रेलवे स्टेशन रेल पकडऩे के लिए दौड़ता है परंतु वहां पंहुचने में भी देरी होती है और वह दौड़कर भी रेल के डिब्बे में चढ़ नहीं पाता। लेकिन उसकी चाहत तब भी बनी रहती है और वह हवाई जहाज की ओर बढ़ता है, परंतु वहां भी उसे निराशा ही हाथ लगती है।
इस प्रकार गन्तव्य स्थान पर अपनी इच्छानुसार कार्य करने पहुंच नहीं पाता। काश वह एक ही लाइन में धैर्य पूर्वक खड़ा होता और अपना नम्बर आने का इंतजार करता तो उसे जीवन में सफलता जरूर मिलती।
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