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आतंकवाद! चोला बदल रहा है
-डॉ. महेश परिमल
...आतंकवादियों के बुलंद हौसलों ने एक बार फिर देश की कानून व्यवस्था पर एक सवालिया निशान लगा दिया है। इस बार आतंकवादियों ने समुद्री मार्ग से आकर देश की आर्थिक राजधानी पर हमला बोला है। इस बार हमारे सामने आतंक का जो चेहरा हम सबके सामने आया है, उससे यही कहा जा सकता है कि आतंकवाद ने अब अपनी दिशा बदली है। अब उसके पास न केवल अत्याधुनिक शस्त्र हैं, बल्कि उसके पीछे एक गहरी सोच भी है। अब वे अपनी मौत से खौफ नहीं खाते, बल्कि अपने सर पर कफन बांधकर निकलते हैं और देश की सुरक्षा एजेंसियों को धता बताते हैं। आतंकवादी बार-बार हमला करके हमेशा हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों की तमाम सुरक्षा पर सेंध लगा रहे हैं। हम केवल आतंकवादियों की आलोचना कर, उनकी भत्र्सना करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। हमें आतंकवाद के बदलते चेहरे को पढऩा होगा, तभी समझ पाएंगे कि वास्तव में आतंकवाद का चेहरा इतना कू्रर कैसे हो गया? इस क्रूर चेहरे के पीछे छिपी साजिश को नाकाम करने का अब समय आ गया है, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी।
पूरे विश्व में आतंकवाद की परिभाषा बदल रही है। अब तक हमारा देश दाऊद इब्राहीम और अबू सलेम को ही सबसे बड़ा आतंकवादी मानता था। अब हमें दुनिया भर के उन शिक्षित युवा आतंकवादियों से जूझना होगा, जो संगठित होकर पूरी दुनिया में अराजकता फैला रहे हैं। इन युवाओं की यही प्रवृत्ति है कि देश में अधिक से अधिक बम विस्फोट कर जान-माल का नुकसान पहुंचाया जाए। अब तक के आंकड़ों के अनुसार विश्व के सभी आतंकवादी संगठनों में एक बात की समानता रही है कि उनका निशाना आम आदमी और सरकारी सम्पत्ति हुआ करता था। इन युवाओं को उनके आका यही कहते हैं कि हमेशा आम आदमी को ही निशाना बनाओ, किसी बड़े आदमी को निशाना बनाओगे, तो पुलिस हाथ-धोकर पीछे पड़ जाएगी। आम आदमी के मरने पर केवल जांच आयोग ही बैठाए जाएंगे और उन आयोग की रिपोर्ट कब आती है और उस पर कितना अमल होता है, यह सभी जानते हैं। लेकिन अब मुंबई में ताज होटल के ताजा हमले ने तो इस धारणा को भी धाराशाई कर दिया है। जाहिर है कि इस तरह के सुनियोजित हमले करने वाला कोई साधारण बुद्धि का इंसान नहीं है। उसकी बुद्धि कब कौन सा खेल खेलेगी यह कोई नहीं जानता। ताज होटल में हमला करने के पीछे उसकी मंशा हिन्दुस्तान के सो रहे आकाओं के गाल पर तमाचा मारना तो है ही साथ ही वे पूरे विश्व का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित करना चाहते थे और ऐसा उन्होंने कर भी दिखाया।
क्या आप जानते हैं कि अल कायदा का नेता ओसामा बिन लादेन सिविल इंजीनियर है, अल जवाहीरी इजिप्त का कुशल सर्जन है। ट्वीन टॉवर की जमींदोज करने की योजना बनाने वाला मोहम्मद अट्टा आर्किटेक्चर इंजीनियर में स्नातक था। इन तमाम आतंकवादियों ने पूरे होश-हवास में अपने काम को अंजाम दिया था। ये सभी टीम वर्क में काम करते हैं और सदैव अपने साथियों से घिरे हुए होते हैं। वैसे ये आतंकवादी जब अकेले होते हैं, तब वे बिलकुल घातक नहीं होते, पर जब वे संगठित हो जाते हैं, तब उनका मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है।![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9kYTRDUEh-aRFBIu4PcxvtNKOBcb3HuRFxC1df2E5r_rZlKWrmMNlkkfLnZTv4xHKJXmELJseoXxJON0RziqgSX2xVT4qleB90RfVdcTU4X0N4shsW32ZE4n6OWrx5nmlByDUJrD1mpHY/s200/taj-7-edt.jpg)
आज राजनीतिक हालात बदलते जा रहे हैं, ऐसे में ये युवा पीढ़ी अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रही है। आज के युवाओं की मानसिक स्थिति का वर्णन करते हुए जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवेर्सिटी के वाइस चांसलर मुशीरुल हसन कहते हैं कि - आज की परिस्थिति में मुस्लिम युवा खुद को लाचार और असहाय समझ रहे हैं। यह लाचारी उन्हें विद्रोह के लिए पे्ररित कर रही है। यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, इसे हमें हलके ढंग से नहीं लेना चाहिए।
पिछले एक- दो वर्षों में गुजरात, हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई आदि कई बड़े शहरों में जिस तरह से दंगे हुए और हत्याएं हुईं, ऐसे ही दंगे यदि और होते रहे, तो युवाओं में विद्रोह की आग और भडक़ेगी। आज के युवाओं में घर कर रही इसी असुरक्षा की भावना का कुछ लोग गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। आतंकवादियों की इस नई खेप में उच्च शिक्षा प्राप्त युवा हैं। आतंकवादी बन जाने में मेडिकल और इंजीनियर युवा सबसे अधिक हैं।
पिछले दिनों देश भर में हुए बम विस्फोट में जिन आतंकवादियों के नाम सामने आए हैं, उनमें से प्रमुख हैं मुफ्ती अबू बशीर, अब्दुल सुभान कुरैशी, साहिल अहमद, मुबीन शेख, मोहम्मद असगर, आसिफ बशीर शेख ये सभी आतंकवादी अपने फन में माहिर हैं, इन्होंने ये सारा ज्ञान बरसों की ट्रेनिंग से प्राप्त किया है। खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश ने तकनीकी शिक्षा प्राप्त की है। जिस तरह से शिक्षा हासिल करने में ये पारंगत रहे, उसी तरह अपनी जिम्मेदारी को निभाने में भी ये अव्वल रहे। इन्हें आतंकवाद की ओर धकेलने के लिए इनकी मानसिकता ही जवाबदार है। जाने-माने शिक्षाशास्त्री और समाजशास्त्री यह मानते हैं कि
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आजकल समाज में जातिवाद का जहर फैलाया जा रहा है। इसका सीधा असर विद्यार्थियों और युवाओं पर पड़ रहा है। भुलावे में डालने वाली इस करतूत का असर युवाओं में कट्टरवाद के रूप में हो रहा है। कट्टरवाद के बीज रोपने में उन्हें दी जाने वाली जातिवाद की शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसीलिए ये युवा अपना विवेक खो रहे हैं। अपना नाम न बताने की शर्त पर इंटेलिजेंस ब्यूरो के भूतपूर्व अधिकारी अभी की स्थिति की समीक्षा करते हुए कहते हैं कि आतंकवादियों की मनोदशा देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा और मानसिकता के बीच कोई संबंध नहीं है।
60 और 70 के दशक में प्रेसीडेंसी और सेंट स्टिफंस जैसी प्रतिष्ठित कॉलेज के विद्यार्थियों का रुझान नक्सलवाद की ओर बढऩे की खबर आई थी। उसी तरह आज के शिक्षित युवा सम्मानजनक वेतन की नौकरी छोडक़र आतंकवाद को अपनाने लगे हैं। आतंकवाद के प्रति इन युवाओं के आकर्षण के पीछे किसी वस्तु का अभाव नहीं है, किंतु एक निश्चित विचारधारा इसके लिए जवाबदार है। इस तरह की स्थिति केवल भारत में ही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। आज विश्व स्तर पर जो आतंकवादी पकड़े जा रहे हैं, उसमें से अधिकांश युवा उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। पिछले वर्ष ब्रिटेन के ग्लास्को एयरपोर्ट में हुए बम विस्फोट का जो आरोपी पकड़ा गया था, वह साबिल था, जो ब्रिटेन के एक अस्पताल में डॉक्टर था। इस विस्फोट में साबिल के भाई काफिल की मौत हो गई थी, यह इंजीनियरिंग में पीएचडी था। साबिल ने बेंगलोर के बी.आर. अंबेडकर कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई की थी।
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कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि आतंकवाद को देखने का नजरिया बदलना आवश्यक हो गया है। इसे अब लाचार और बेबस लोग नहीं अपनाते। पहले इन लाचारों की विवशता का लाभ उठाकर कुछ लोग अपना उल्लू सीधा कर लेते थे, पर अब ऐसी बात नहीं है। अब तो उच्च शिक्षा प्राप्त युवा पूरे होश-हवास के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं। ऐसे लोग टीम वर्क से अपना काम करते हैं, जिसका परिणाम हमेशा खतरनाक रहा है। हाल ही में भारत में हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले को इसी नजरिए से देखा जा सकता है। यदि अब भी सरकार ने अपना रवैया नहीं बदला, तो संभव है कोई सिरफिरा 'ए वेडनेस डे' जैसी हरकत फिर कर बैठे। सरकार को इसके लिए भी सचेत रहना होगा। ....और लीजिए यह हरकत तो हो ही गई।
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