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Sep 1, 2023

व्यंग्यः ऐसी बानी बोलिए, जमकर झगड़ा होय

  - बी. एल. आच्छा

चुनावी सभा में खाली कुर्सियाँ देखकर उम्मीदवार जी दुखी हो गये। हथेली में दूसरे हाथ की मुट्ठी ठोकते हुए कहे जा रहे थे-"क्या करूँ ? कैसे भीड़ बटोरूँ?" उदास चेहरे और एकान्त को देखकर पेड़ से लटका बेताल उनकी लोकतंत्रिया पीठ पर आकर चिपक गया। उम्मीदवार जी भौंचक । मुस्कुराते  हुए बेताल बोला -"तुम्हारे उदास चेहरे को देखकर मन भर आया। मैं तुमसे न सवाल पूछूँगा, न सिर काटने की शर्त । इस बार सवाल तुम करो, उत्तर मै दूँगा।"     

 उम्मीदवार ने पूछा - "ऐसा क्या बोलूं कि वोटर मेरा कायल हो जाए !" बेताल ने कहा-" अरे यह तो पहले से ही कहा हुआ है- ऐसी बिनी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को सीतल करे आपहुँ सीतल होय।"

 उम्मीदवार जी को खुन्नाट हुई। बोले-  इतनी ठंडी बानी से तो वोटर की उँगली पर बर्फ ही जम जाएगी। ठंडी फिल्म, ठंडे बोल । बॉक्स ऑफिस और बेलट बॉक्स दोनों जम जाएँगे। अगरचे वोटर शीतल हुआ तो अपुन तो माइनस टेंपरेचर में।" बेताल ने कहा-" समझदार हो गये हो। जमाने की रंगत में पगे हुए। इस जमाने के शब्दों की टकसाल में उल्टा-पुल्टा, गड्डमगड्डा लट्ठमलठ्ठा ही बजते हैं। तो सुनो, इस शीतल वाणी को  प्रेशर कूकर या माइक्रोवेव डाल दो - " ऐसी बानी बोलिए जमकर झगड़ा होय ।"

 उम्मीदवार की बाँछें खिल गयी । बोला 'मन तो मेरा भी होता है कि अपनी जबान निकालकर सिर पर लगा दूँ।" बेताल ने कहा-'अरे तुम तो शब्दों को ऐसा फेंको जैसे भाड़ में सिककर चना फटकर उछल जाता है। फिर  बोलकर चुप कर जाओ । काँव -काँव  चलती रहेगी। चल छैंया छैंया की तरह चल चैन लिया- चैन लिया फर्राटे भरते हुए। अखबार- अखबार सुर्ख़ियाँ बन जाएँगी। "

"मगर कभी ये आड़े- तिरछे शब्द पत्थर की तरह मुझ पर आने लगे, तो  नोटिस आने लगे तो ?" उम्मीदवार ने कहा। बेताल बोला- औरों को गर्माते अपने को गर्म करो।  अभिव्यक्ति की आजादी में अपने रंग भरो ।फिर भी कुछ रह जाए तो माफी दर्ज करो।" उम्मीदवार ने कहा "वाह बेताल ! कितनी माकूल सलाह । इन दिनों विडियो, ऑडियो, म्यूजिक और नारे भी जबरदस्त-चलन में हैं। क्या करूँ ?" बेताल बोला- हाँ, जमाने को समझो। तुम्हारी जबान से बड़ी ऑनलाइन जबान है। एक बार जबान हिला दो, फिर वह लॉरी में लगे माइक ही तरह बोलती- दिखती रहेगी। तुम भी गाने बनवाओ-" का.. बा.. ।" उत्तर में " का.. का... बा"। दर्जनों विडियो चलवाओ। फिर भी न बने तो राग मुफ्तिया को सप्तम सुर में बजवाओ।"

  उम्मीदवार ने पूछा-"ये राग मुफ्तिया क्या है?" बेताल हँस पड़ा।बोला- "एजेण्डा बनाओ, जो मुफ्त में दिया जा सकता है। फिर देखो, मुफ्त लाइनिया होइ। अब उनको  मिसाइल- सुपर मिसाइल मत गिनाओ। न गलवान घाटी।  शब्दोस मिसाइल से ही इतना धुआँ फैल जाए कि सामने वाला धुआँ- धुआँ हो जाए। शब्दवेधी बाण तन्नाट।गीतों की कजरिया वोट की लय साधने लगे।नारे खनकने लगें।तुम तो पूँछ पर पैर रख दो। बैठे हुए जबानी घोड़े दौड़ने लगेंगे। छुकछुकिया जबानों की बकरोली खुदबखुद पस्त हो जाएगी।" बेताल ने फिर कहा-"अभी इतना ही। लोकतंत्र का नया चेहरा आएगा,तो नए पाठ समझने आ जाना।" और बेताल फिर डाल पर लटक गया।

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