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Jun 1, 2023

प्रेरकः ... बंजर जमीन को उसने जंगल में बदल दिया


 मणिपुर 
(पश्चिम इम्फाल) के 47 वर्षीय मोइरंगथेम लोइया ने ऐसी मिसाल कायम की है, जिन्होंने लगी-लगाई जॉब छोड़कर ग्लोबल वॉर्मिंग के खिलाफ़ लगभग दो दशक लंबा संघर्ष करते हुए तीन सौ एकड़ बंजर ज़मीन को जंगल में बदल डाला। इस जंगल में अब हज़ारों तरह के पौधों की कई प्रजातियां हैं। जिसे दुनिया भर के पर्यटक देखने आते हैं।

मोइरंगथेम लोइया ने  बीस साल पहले इस अद्भूत काम की शुरुआत की थी।  दो दशक पहले इम्फाल शहर के बाहरी इलाके लंगोल हिल रेंज में पेड़ लगाना शुरू किया। उरीपोक खैदेम लीकाई इलाके के रहने वाले लोइया बचपन से ही प्रकृति प्रेमी हैं। साल 2000 की शुरुआत में चेन्नई से कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोबरू पर्वत पर गए तो बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ। 

वह कहते हैं, “मुझे प्रकृति माँ को वो सब लौटाने की इच्छा महसूस हुई, जो हम इंसानों ने आधुनिकता के नाम पर नष्ट कर दिया है।”  वहाँ की स्थिति देखकर उनने सोचा कि बंजर ज़मीन को भी समय और समर्पण के साथ घने हरे-भरे जंगल में बदला जा सकता है। बस फिर क्याथा उसी दिन लोइया ने अपनी नौकरी छोड़ दी और वहीं पुनशिलोक में एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहने लगे और पेड़ लगाना शुरू कर दिया। अकेले ही पेड़ लगाते लगाते छह साल गुज़र गए।  उन्होंने  वहाँ मगोलिया, ओक, बांस, टीक, फिकस आदि के पेड़ उगा दिए। 

लोइया के काम को देखकर उनके कुछ दोस्तों ने भी उनका साथ दिया। 2003 में लोइया और उनके साथियों ने वाइल्डलाइफ ऐंड हैबिटैट प्रोटेक्शन सोसायटी (WAHPS) बनाई। इस संस्था के वॉलंटियर्स भी वृक्षारोपण में जुट गए। इसके बाद तो वन विभाग भी उनके समर्थन में आ गया और मदद करने लगा। आज उनकी संस्था पुनशिलोक वन के संरक्षण, अवैध शिकार और जंगल की आग से लड़ने के लिए समर्पित है। 

अपनी पहल के दो दशक बाद, आज लोइया के जुनून और मेहनत का ही नतीजा है कि लगभग तीन सौ एकड़ का इलाका हरियाली से लहलहा रहा है। उनके बसाये हुए जंगल में इस समय बांस की दो दर्जन से ज़्यादा प्रजातियों के अलावा दो से ढाई सौ औषधीय पेड़-पौधे भी हैं। जंगल बस गया तो उसमें चीता, हिरण, भालू, तेंदुआ, साही जैसी कई वन्य प्रजातियाँ भी रहने लगी हैं। देखते देखते पूरा जंगल अब पक्षियों की आवाज़ से गूंजने लगा है।  इतना ही नहीं, हज़ारों पेड़-पौधों से क्षेत्र के तापमान में भी गिरावट आई है।

उनके तीन सौ एकड़ में फैले पुनशिलोक जंगल में अब देश-विदेशों से पर्यटक भी घूमने आते हैं। अपनी कड़ी मेहनत से मोइरंगथेम लोइया ने इस वीरान जगह को हरा-भरा बना दिया है। उनको इस काम में राज्य सरकार से भी पूरा प्रोत्साहन मिला है। लोइया का मानना है कि एक जंगल को उगाना और उसका पालन-पोषण करना ज़िंदगी भर का काम है। 

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