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Oct 1, 2022

किताबें- मल्हार गाते हुए सेदोका

रमेश कुमार सोनी

पुस्तकः मन मल्हार गाए- सेदोका संग्रह, सुदर्शन रत्नाकर, अयन प्रकाशन- जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली 110059, सन- 2022,  भूमिका- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, ISBN: 978-93-91378-12-7, मूल्य- 300/- पृष्ठ- 136

जापानी साहित्य की विधाओं में हाइकु, ताँका, सेदोका एवं चोका की प्रमुखता है, इन विधाओं को हिंदी साहित्य ने, इसका भारतीयकरण करते हुए अपनाया है। इन्हीं विधाओं के जरिए ही हिंदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। इन विधाओं में लोकप्रियता तथा रचनाकर्म की दृष्टि से सेदोका को ज्यादा महत्त्व नहीं मिल पाया है। सेदोका की पुस्तक का (प्रथम साझा एवं स्वतंत्र- संग्रह- अलसाई चाँदनी) प्रकाशन सन-2012 से देखने को मिलता है। इस दृष्टि से यह विधा हिंदी में कोई एक दशक पुरानी मानी जानी चाहिए यद्यपि इसका लेखन इससे पूर्व हुआ तथापि उसका मान्य (हिंदी में)इतिहास यहीं से आरम्भ हुआ। इस विधा की लेखन प्रक्रिया को इस संग्रह की भूमिका में विस्तार से पढ़ा जा सकता है, जिसे रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ने लिखा है; तथापि यह छह पंक्तियों में क्रमशः 5,7,7,5,7,7=38 वर्णीय पूर्ण कविता है, जो दो अपूर्ण कतौता से मिलकर पूर्ण होती है।

सेदोका विधा को अपनाने और विस्तार देने में ‘त्रिवेणी’ की भूमिका की प्रशंसा करनी होगी, जिसमें सेदोका प्रकाशित होते रहे हैं। सुदर्शन रत्नाकर जी का सद्यः प्रकाशित सेदोका संग्रह-‘मन मल्हार गाए’ है, जिसे पढ़ते हुए यह कहा जा सकता है कि इस संग्रह से सेदोका विधा को पंख लग जाएँगे। इस संग्रह में कुल-456 सेदोका हैं जो इन उपशीर्षकों के तहत प्रकाशित हुए हैं- प्रकृति के रंग, रिश्तों के रंग और विविध।

वर्तमान समय में किसी भी कविता में मानवीय संवेदनाओं को बचाया जाना निहायत ही ज़रूरी है, बिना किसी जीवन दृष्टि के विचारधाराओं का कोई ख़ास महत्त्व नहीं रह जाता। इस संग्रह के सेदोका, रचनाकार के परिवेश की अनुभवी दृष्टि से अनुभूत होकर शब्दांकित हुई हैं, जिनमें गहराई से उसके सौन्दर्य को महसूस किया जा सकता है। ये सेदोका अपनी उपस्थिति से हमें रोमांचित कर रहे हैं, जिनमे हैं सागर, चाँद-सूर्य, मौसम तथा भोर और साँझ।

 ‘प्रकृति के रंग’ खंड के अंतर्गत इसके विविध भाव एवं दृश्यों के साथ पर्याप्त न्याय देखने को मिलता है। इन सेदोका में सागर की लहरों की अठखेलियों का सुन्दर मानवीयकरण है-लहरों का चूड़ियाँ बजाना, चाँद-सितारों की शीतलता भरी जुगलबंदी है और तारों के झुण्ड का अमावस में महफ़िल जमाना सुन्दर प्रयोग है। कुल मिलाकर यहाँ प्रकृति के उज्ज्वल पक्ष की तरफदारी है, जो सूर्य की रोशनी से उपजी उजियारे की सम्पदा है। इस तरह के और भी कई रंग आपको इस खंड में पढ़ने को मिलेंगे आइए अभी इनके सौन्दर्य को निहारा जाए-

सिसकारियाँ/ भरता है सागर/ सुनसान रात में/ अकेलापन/ सहा नहीं है जाता/ चाँद जो नहीं आता।

सुस्ताए तारे/ हँसा नील गगन/ खिला जब कमल/ नभ-झील में/ लाल चूनर ओढ़े/ उषा शर्माती आई।

 भोर-साँझ के दृश्य के शब्दांकन में भी आपने कोई कंजूसी नहीं की है बाकायदा भोर की स्फूर्ति और साँझ की प्रतीक्षा को सेदोका के फ्रेम में उतारा है। इस खंड में आपने किसी बच्चे की सी तुलना सूर्य की किरणों से की है जो पेड़ों से छनकर धरा पर उतरती हैं और खेलकूद के अपने घर को लौट जाती है।

नहाने आईं/ सागर के जल में/ दिनकर रश्मियाँ/ डुबकी लगा/ रंग दिया सागर/ अपने ही रंग में।

सिन्धु- वक्ष पे/ दूध-केसर घुली/ नाचती हैं लहरें/ सुबह-शाम/ माथे पर लगाता/ नभ जब बिंदिया।

ऋतुओं की अठखेलियों के अंतर्गत कुछ सुन्दर बिम्ब उकेरे गए हैं-वर्षा बूँदों का झाँझर बजाते धरा पर उतरना, बूँद -नन्ही परी हैं जो पैंजनियाँ बजाते उतर रही हैं, हर ठौर झाँकती हवा जो पाँव-पाँव चल रही है, मेघों की धमाचौकड़ी, बसंत के नखरे, महकती है फूलों की बगिया,बारिश में भीगी काँपती गौरैया, झींगुरों का शहनाई वादन एवं ओस के कणों का हमारा पाँव पखारना-अद्भुत दृश्यांकन है। इनकी प्रशंसा की जानी चाहिए-

नन्ही परियाँ/ हवा संग गा रहीं/ उतरी गगन से/ भरी ख़ुशी से/ बजातीं पैजनियाँ/ नाच रहीं धरा पे।

धुँध का राज/ कँपकँपाती हवा/ ठिठुरती है रात/ चाँद अकेला/ लुका-छिपी खेलता/ माँग रहा लिहाफ।

फूलों की होली/खेल रही प्रकृति/पवन पिचकारी/रंगों का पानी/अँजुरी भर-भर/खुश्बू संग लाई है।

आपके इन सेदोका में वृक्षों और वन संपदा को बचाने का पुण्य भाव भी स्पष्ट दिखता है जो यह इंगित करता है कि अभी भी हममें मानवता एवं करुणा ज़िन्दा है,यह इस संग्रह की थाती है-   

मत काटना/ हरी शाख ने कहा/ ‘परिंदों का नीड़ है/ टूट जाएगा/ नन्हे-नन्हे बच्चों में/ पड़े अभी प्राण हैं।

आकर गिरी/ पकड़ लिये पाँव/ स्पर्श से काँप, देखा/ गिलहरी थी/ आँसुओं में प्रश्न था/ बोल, जाऊँ मैं कहाँ।

 ‘रिश्तों के रंग’ खंड में हमें रिश्तों के इन्द्रधनुषी रंग देखने को मिलते हैं जिनमे सबसे ऊपर माँ का दर्जा है फिर एक सुन्दर से घर को संवारती नारी सम्बन्धी रिश्ते हैं। किसी मकान को वाकई एक घर बनाने में जितनी भूमिका माँ की होती है उतनी ही मेहनत पिताजी की भी होती है। आज से बीस वर्ष पहले इन रिश्तों के मायने कुछ और थे जो आज कहीं गुम से हो गए हैं; प्रेम-प्यार में अपेक्षाओं का दीमक लगा हुआ है, रिश्तों में जरूरतों से उपजी दीवार और उपेक्षा का दर्द हर किसी के पास है। इन सबके पीछे कोई किसी के त्याग और समर्पण को उनके कर्त्तव्य का नाम देकर छोटा करने का प्रयास करता है। प्रेम, स्नेह, रिश्तों के ताने-बाने में उलझी इस दुनिया में भी आपने अपने सेदोका के रूप में पिरोया है; यहाँ इसके दोनों रूप के दर्शन होते हैं, जहाँ आप लिखती हैं -‘तपाने होते हैं विश्वास के आवाँ में रिश्ते’, ‘आज के रिश्ते,बोनसाई से हैं -गमले में सिमटे हुए अभिशप्त से। आपके बिम्ब और प्रतीक यहाँ पर निखर उठे हैं जो इन सेदोका को सशक्त बना रहे हैं-

हँसती बेटी/ बजती ज्यों घंटियाँ/ भोर में मंदिर की/ पावन वह/ नक्षत्र की बूँद-सी/ बरसी है घर में।

तपाने होते/ विश्वास के आवाँ में/ तो निखरते रिश्ते/ बिन भरोसे/ काँच की दीवार-से/ टूट जाते हैं रिश्ते।

आज के रिश्ते/ बोनसाई हैं बने/ गमले में सिमटे/ हैं अभिशप्त/ अपने में ही व्यस्त/अपनों से वे दूर।

 ‘विविध’ खंड में आपके सेदोका अपने वर्तमान समाज और आसपास के दुनिया की ताँक-झाँक करते हुए सबकी खबर ले रहे हैं। यहाँ हमें पढ़ने को मिलेगा- वक्त की बेरहमी के किस्से, रंग बदलती दुनिया और सुनहरे हर्फों में लिखी हुई यादों की इबारत, सच-झूठ के साथ सुख-दुःख के हिंडोले का हिचकोले खाना, विकास की राह में क्या खोया-पाया का हिसाब-किताब के साथ प्रश्न पूछती है कि-चार दिन की ज़िंदगी में घमंड कैसा? और चेताते हुए भी दिखते हैं- सत्य कर्मों का ही लेखा-जोखा साथ जाएगा। इस खंड के ज्यादातर सेदोका सीख देते हुए दिखते हैं अर्थात इनमे विचार और भाव की प्रधानता है,शुभकामनाएँ हैं जबकि कुछेक बिम्ब अच्छे हैं जैसे-

साँप-नेवला/एक घर-आँगन/मरना-जीना एक/जग की बात/जो समझ जाएगा/वो प्राण बचाएगा।

कैसे भूलूँ मैं/बचपन की रातें/जब बतियाते थे/चाँद और मैं/बैठ मुँडेर पर/जागते रात भर।

इस संग्रह ‘मन मल्हार गाए’ के सेदोका में आपकी जीवनदृष्टि स्पष्ट रूप से सकारात्मक है,जीवन की विविधताओं का सम्मान है तथा लोक सौन्दर्य की रमणीयता का सुन्दर शब्दांकन है। आज के इस दुष्कर दौर में जब कविता से मानवीयता और लोक जीवन का लगातार क्षरण हो रहा है तब के दौर में ऐसे संग्रहों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस भाव को भविष्य के लिए सहेज सकें। इस पठनीय संग्रह के लिए मेरी अशेष शुभकामनाएँ एवं बधाई-

खिलते रहें/ कामनाओं के फूल/ जीवन में तुम्हारे/ दुआ है मेरी/ सपने साकार हों/ निर्विघ्न डगर हो।  

1 comment:

Ramesh Kumar Soni said...

इस सुंदर संग्रह की मेरे द्वारा की गयी समीक्षा को आपने प्रकाशित किया-आपका आभार।