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Oct 1, 2022

जिउतिया पर्व पर कविताएँ ...

- सारिका भूषण

ओठंगनी

शुद्ध घी से

भरी कड़ाही

आटे में गुड़ और घी का मोयन

निर्जला उपवास रखी

अम्मा के हाथों की

प्यार भरी थपकियों से बनी रोटी

और

कड़ाही में डालते ही

फैल जाती थी

खुशबू ओठंगन की

दादी ने बताया था

जितने बेटे होते हैं

बनते हैं उतने ही ओठंगन

चौखट पर खड़ी

हम बहनें ताकती रहती थीं

और अम्मा

कनखियों से

हमें देखा करती थीं

और इंतज़ार करती थीं

पापा के आने का

जो बनाते थे

अपनी बेटियों के लिए

ओठंगनी ।

जिउतिया पर्व

अम्मा आज

बहुत खुश दिख रही है

लाल चुनरी और

लाल चूड़ियों की चमक

हमें भी अच्छी लग रही है।

पांवों में लगे

आलता के चटख रंग ही बता रहे

कुछ तो खास है

महुआ के आटे की रोटी

सतपूतिया की तरकारी

अम्मा खाकर

हमें भी खिला रही

ममता के बड़े - बड़े कौर ।

फिर

अम्मा की आँखें

भर जाती हैं

पल्लू से आँखों की कोर पोंछकर

हमारे सिर पर हाथ फेरती है

और उसके होंठ हिलते हैं

और ईश्वर से माँग लेती है

दुनिया भर के आशीष

और

बटोर लेती है ताकत

निर्जला उपवास करने की

अपने बच्चों के लिए ।

रचनाकार के बारे मेंः एक काव्य-संग्रह , एक लघुकथा-संग्रह , तीन साझा कहानी संग्रहें एवं विभिन्न विधाओं में चालीस से अधिक साझा-संग्रह प्रकाशित। कई राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रचनाएँ । कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में रचनाएँ पुरस्कृत एवं सम्मानित । सम्पर्कः W/O जस्टिस दीपक रौशन, बंगला नम्बर- 4. न्यू जज कॉलोनी, डोरंडा , राँची - 834002. मो. 9334717449

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