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Jul 1, 2022

अनकहीः क्या हम भ्रष्टाचार रोक पाएँगे...

 डॉ. रत्ना वर्मा
भारत में कोई सरकार अपने ही मंत्री को भ्रष्टाचार या कमीशनखोरी के लिए बर्खास्त करे या गिरफ्तार करवाए, तो चौंकने वाली खबर तो बनती है। हाल ही में पंजाब सरकार ने अपने ही मंत्री को कमीशनखोरी के आरोप में जेल भेजकर एक ईमानदार पहल की है। काश ऐसी पहल सभी प्रदेश के मुख्यमंत्री करने लगें, तो देश में तरक्की के रास्ते खुल जाएँपर ऐसा सोचना तो फिलहाल स्वप्न जैसा ही है।  वैसे पंजाब सरकार ने जनता से किए वादे के अनुसार भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने के अपने वादे को पूरा किया है, विरोधी दल भले ही इसे राजनीतिक पब्लिसिटी स्टंट बता रहे होंपरंतु लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार को देखते हुए जनता के लिए यह खुशी की बात है और देश के लिए भीक्योंकि चुनाव में प्रत्येक पार्टी भ्रष्टाचार- मुक्त सरकार देने का वादा तो करती है, परंतु जैसे ही सत्ता में आती है, सब भूलकर स्वयं भी उसी व्यवस्था में लिप्त हो जाती है।

हमारे देश के लिए भ्रष्टाचार कोई नई समस्या नहीं है, आजादी के बाद से ही भ्रष्टाचार ने देश में अपनी जड़े जमानी शुरू कर दी थीं, यही वजह हैं कि भ्रष्टाचार को लोगों ने जीवन में ऐसे स्वीकार कर लिया है, जैसे चाय में चीनी या दाल में नमक। इतना ही नहीं इसे भ्रष्टाचार नहीं, शिष्टाचार का नाम तक दे डाला है; क्योंकि चाहे कितना भी बड़ा काम हो या कितना भी छोटा, बगैर रिश्वत दिए आपका काम होगा ही नहीं। यहाँ तक कि अपने वाजिब अधिकार के लिए भी आपको हर कदम पर रिश्वत देनी पड़ती है। जो इस व्यवस्था के खिलाफ बात करते हैं, उन्हें भी कुछ ले- देकर मामला खतम करना ही बेहतर उपाय लगता है। सच भी है, यदि आप ईमानदारी की लड़ाई लड़ने जाएँगे, तो वहाँ भी न्याय कब मिलेगा, नहीं कह सकते। जब सरकार, व्यवस्था, पुलिस और कानून सब इसमें लिप्त हैं, तो कौन भला इससे अछूता रह सकता है।

रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी चोरी, डकैती जैसे छोटे- बड़े सभी अपराधों के लिए नियम कानून बने हैं। सजा भी होती है, तो लोग बरी भी हो जाते है।  सब कुछ होने के बाद भी आखिर चोरी, हत्या, लूटमार सब कुछ तो जीवन में होता है, उन्हें जेल होती है, मुकदमा चलता है, वैसे ही भ्रष्टाचार भी अबाध गति से जारी है। हम सोचते हैं कि आज एक चपरासी भी रिश्वत के बिना अंदर नहीं जाने देता, तो अंदर बैठा बाबू और अधिकारी, तो हाथ में बगैर कुछ रखे बात भी नहीं करेगा; इसीलिए जब किसी भी सरकारी काम-काज के लिए निकलते हैं, तो पहले व्यक्ति अपनी जेब टटोलता है कि देने के लायक उनके पास पैसे हैं या नहीं।

इस तरह के विचार हमारे जीवन में इतने रच-बस गए हैं कि भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे को गंभीर चिंतन के रूप में हम लोगों ने देखना ही बंद कर दिया है। यही सब कारण है कि लोगों ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाना, तो बहुत दूर की बात है बात करना भी लोगों ने बंद कर दिया है। हम सोचते हैं कि एक बाबू और अधिकारी को रिश्वत लेते पकड़वाकर क्या हम भ्रष्टाचार को खत्म कर सकते हैं? जहाँ ऊपर तक भ्रष्टाचार की जड़ें जमी हों वहाँ भला एक अदना से बाबू को रिश्वत लेते पकड़वाने से क्या हो जाएगा। बड़े बड़े घोटालों में जैसे- आइपीएल घोटाला, 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श घोटाला आदि -आदि... अफसोस इस बात पर है कि जनता में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो जनाक्रोश होना चाहिए, वह कहीं दिखाई नहीं देता। सरकारें आती हैं, चली जाती हैं; पर भ्रष्टाचार है कि पंख पसारे पूरी व्यवस्था को अपनी गिरफ्त में लिए चले जा रहा है।

अब देखा जाए कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए बने कानून कितने कारगर है। 2018 में सरकार ने दोनों सदनों में प्रिवेंशन ऑफ करप्शन अमेंडमेंट एक्ट पास तो करा लिया, यह कहते हुए कि यह कानून भ्रष्टाचार रोकने में कारगर साबित होगा। परंतु दिग्गज कानून विशेषज्ञ ही इस कानून में कई खामियाँ निकाल रहे हैं जैसे- नए कानून के अनुसार पहले सबूत देना होगा, फिर सरकार जाँच की अनुमति देगी।  इससे भ्रष्टाचार में निवारण तो दूर बल्कि बढ़ावा ही मिलेगा। बिना जाँच के कोई सबूत कहाँ से लाएगा। इसी तरह आय से अधिक संपत्ति को लेकर बनाए गए संशोधित कानून पर भी सवाल उठ रहे हैं. संशोधित कानून में यह साबित करना होगा कि आय से अधिक संपत्ति गलत नीयत से, गलत तरीके से बनाई गई है। इतना ही नहीं रिश्वत देने वाले पर रिश्वत लेने वालों के बराबर मुकदमा चलाए जाने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। पहले तो लोग सरकारी गवाह के तौर पर सरकारी एजेंसियों की जाँच में सहायक होते थे।; लेकिन नए कानून में 7 दिन के बाद दोनों समान रूप से जिम्मेदार माने जाएँगे। ऐसे में रिश्वत लेने और देने वाले कभी भी एक दूसरे का भंडाफोड़ करने से हिचकिचाएँगे,

क्योंकि कानून की नजर में दोनों समान रूप से दोषी करार दिए जाएँगे। सजा का जो प्रावधान है, उसे भी सही नहीं माना जा रहा है। भ्रष्टाचार चाहे छोटा हो या बड़ा, दोनों समान रूप से सजा के भागीदार होंगे। तो बड़ा भ्रष्टाचार करो और गलत तरीके से कमाए पैसे देकर थोड़ी- सी सजा पाकर छूट जाओ।, तो सबसे पहले कानून को सख्त करना होगा।

 साथ ही सबसे ज्यादा जरूरी है शीर्ष पर बैठे राजनेता ईमानदार हों। यदि सरकारें आरंभ में ही इसपर लगाम लगाने को दृढ़संकल्पित होतीं, तो आज देश इस दलदल में नहीं फँसा होता। इसकी शुरूआत तो ऊपर से नीचे की ओर करनी होगी। जिस दिन शीर्ष स्तर का नेतृत्व भ्रष्टाचार से मुक्त होगा, तभी वह अपने से नीचे की व्यवस्था और नौकरशाही पर लगाम लगा सकेगा। अब यदि इसकी शुरूआत पंजाब से हो चुकी है, तो इसे एक दिन की खबर बनाकर समाप्त नहीं करना चाहिए। मीडिया के भी अपने फायदे- नुकसान हैं। वह भी उन्हीं खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित करता हैं, जिनसे उन्हें फायदा होता है । यहाँ तक कि बड़े- बड़े घोटाला करने वाले राजनेता और व्यापारी, जो आज जेल की हवा खा रहे हैं, उनकी सजा की खबर को भी एक छोटे से कॉलम में छापकर अपनी जिम्मेदारी से बरी हो जाते हैं। जैसे अभी हाल ही में यह खबर समाचार- पत्र के भीतर के पेज में एक कोने में सिंगल कॉलम में छपी थी– ‘सीबीआई की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति जमा के लिए चार साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने 50 लाख का जुर्माना लगाया और पूर्व सीएम की चार संपत्तियों को भी जब्त कर लिया।’ कहने का तात्पर्य है कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए देश के प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक और समूचे समाज को आगे आ कर आवाज उठानी होगी। चुप बैठे रहने से तो जैसे आजादी के 75 साल गुजर गए ; आगे कई 75 साल और गुजर जाएँगे। भ्रष्ट नौकरशाहों और भ्रष्ट राजनेताओं के बीच घिरी जनता बस तमाशबीन बनकर रह जाएगी। जनता चाहे तो अपनी ताकत दिखा सकती है, वह उसे ही अपने प्रदेश का मुखिया चुने, जो अपनी जनता को भ्रष्टाचार मुक्त राज्य देने का वादा करे।

4 comments:

विजय जोशी said...

आदरणीया,
बहुत ही ज्वलंत विषय को छुआ है आपने। हमारे देश के सामने दो विकट चुनौतियां हैं। पहली देशभक्ति और दूसरी ईमानदारी, जिनसे किसी भी देश के Value System का आकलन होता है।
मुगलकाल से चला नज़राना भ्रष्टाचार का परिष्कृत स्वरूप था, जो शनैः शनैः शिष्टाचार,व्यवहार के मार्ग से गुज़र कर अत्याचार तक की सीमा लांघ चुका है। विदेशों में तो यह शब्द अनाम है।
भ्रष्ट व्यवस्था सारी प्रगति, संवेदनाएं निगल गई। हम नई पीढ़ी को जो देकर जा रहे है, वह शर्म का विषय है। कुल मिलाकर उत्तिष्ठ भारत।
इतने ज्वलंत विषय को छूने के आपके साहस को प्रणाम। सादर

भीकम सिंह said...

बेहतरीन लेख, हार्दिक शुभकामनाएँ, मेरा मानना है कि हम खुद ही सुधर जाये अर्थात भ्रष्टाचार का हिस्सा ना बने (ना देने में ना लेने में ),जो मुश्किल तो है परन्तु कर सकते हैं ।

Bharati Babbar said...

विषय ज्वलंत है और हर काल में समसामयिक रहने वाला।कभी इसका उन्मूलन होगा ऐसी उम्मीद करना बुरा नहीं लेकिन स्वयं को इसकी ज़िम्मेदारी से असम्पृक्त रखते हुए उम्मीद करते रहना दिवास्वप्न हो सकता है।

Sonneteer Anima Das said...

सार्थक सृजन.... 🙏 इस रोग का कोई औषधि तो नहीं.. क्योंकि समाज में कई ऐसे वर्ग हैं जो अपने स्वार्थ के लिए इसे रोकेंगे भी नहीं.... परंतु हम यही प्रयास करें कि हम स्वयं यह काम न करे... 🙏