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Jun 1, 2022

पाँच कविताएँ


- लिली मित्रा



1. धूल

कितनी बार जाती हैं

उँगलियाँ बंद साँकलों तक

हटती है उतनी ही बार

थोड़ी -सी धूल

पर उसी गति से

      लौट आते हैं हाथ

पोर पर लगी धूल

आँचल से पोंछकर

अपनी धुरी पर

यह सोचते हुए-

धूल साँकलों की

हटाने से क्या होगा!

2. अनकही

मन की जो बातें

कही ना जा सकीं वो

या तो आँसू बन गईं

या हँसी बन हवा में घुल गईं,

'शब्दों' से बस वे ही लिपटीं

जो 'दुनियादारी' की माँग रही

3. नदी

बहाव के भी कुछ नियम होते हैं

कुछ अल्प विराम,

कुछ विराम ,

एक नई शुरूआत

और

इन तीनों पड़ावों के

बीच का अंतराल

खूबसूरती से पाटकर

जिसने सतत

प्रवाह का दृश्य

खींच दिया

वही जीवन

'नदी' बन गया

4.  छलावा

स्लेटी फाहों से

ढककर

मन का गगन

ज़मीन को सावन का

छलावा ना दो

5. धूप

ज़रा -ज़रा सा छनकर

आ जाया करो

घने जंगलों से

इतनी -सी धूप बहुत है

ज़मीन का बदन

सुखाने के लिए

3 comments:

Sonneteer Anima Das said...

अति सुंदर... उत्कृष्ट रचनाएँ मेरी कवयित्री जी 🌹❤️

Dr.Mahima Shrivastava said...

Wah

Anonymous said...

बहुत सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर