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Jun 1, 2022

कविताः मैं वही पेड़ हूँ

- डॉ. विभा रंजन (कनक)

मैं वही पेड़ हूँ..

जब तुम्हारी माँ को..

सवारी नहीं मिली..

यहीं ठहर..

आगे बढ़ी थी..

आज तुम मुझे..

काटने आए हो..

मेरी बाहों को पकड़..

झूला-झुला था तुमने..


यौवन की दहलीज पर..

घने छाँव तले..

मेरे हरित प्रागंण में निर्बाध..

अपनी प्रेयसी से..

प्रेमालाप किया करते थे..

तुम दोनों को मैंने..

हाथों में डाले हाथ..

घंटो बैठे देखा है..

मेरे मोटे तने को छील..

एक दूजे का नाम लिखा था..

 

अब मैं विस्तृत हो गया हूँ..

मुझे काट कदाचित..

निर्माण कार्य चलेगा..

मेरी इन टूटती शाखाओं से..

तुम एक शाख ले जाना..

उम्र के पड़ाव पर..

तन थकने लगे..

पाँव चलने से ठिठके..

तब मेरे शाख से..

एक छड़ी र्निमित कर लेना..

जीवन संध्या के उस पल भी..

मैं काम आ जाऊँगा...

सम्पर्कः B/37 Ground floor, Soami nager, South Delhi. New Delhi 110017, mo. 911809003

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