हाइकु- पतझड़
- डॉ. महिमा श्रीवास्तव
1.
झरते पात
पतझड़- सा मन
रूठे साजन।
2.
मंद बयार
शरद सुहावना
मन कसके।
3.
धवल आभा
चाँद ने पसराई
याद वे आए।
4.
सांझ की बेला
चौखट से चिपकी
उदास आँखें।
5.
तमस छँटे
भोर का तारा हँसे
आशा भी जगे।
6.
शेफाली झरे
आँगन सुरभित
निराशा हरे।
7
.
कंपित बाती
हवा से सहमती
जलती रही।
8.
मन वीरान
बजे दूर बांसुरी
हरती पीड़ा।
Labels: डॉ. महिमा श्रीवास्तव, हाइकु
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