Apr 16, 2019
फिर मिलूँ मैं न मिलूँ दीदार तो कर लो
एक बच्चे की जिम्मेदारी आप भी लें
अभिनव प्रयास- माटी समाज सेवी संस्था, जागरुकता अभियान के क्षेत्र में काम करती रही है। इसी कड़ी में गत कई वर्षों से यह संस्था बस्तर के जरुरतमंद बच्चों की शिक्षा के लिए धन एकत्रित करने का अभिनव प्रयास कर रही है। बस्तर कोण्डागाँव जिले के कुम्हारपारा ग्राम में बरसों से आदिवासियों के बीच काम रही 'साथी समाज सेवी संस्था' द्वारा संचालित स्कूल 'साथी राऊंड टेबल गुरूकुल' में ऐसे आदिवासी बच्चों को शिक्षा दी जाती है जिनके माता-पिता उन्हें पढ़ाने में असमर्थ होते हैं। इस स्कूल में पढऩे वाले बच्चों को आधुनिक तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ परंपरागत कारीगरी की नि:शुल्क शिक्षा भी दी जाती है। प्रति वर्ष एक बच्चे की शिक्षा में लगभग चार हजार रुपये तक खर्च आता है। शिक्षा सबको मिले इस विचार से सहमत अनेक जागरुक सदस्य पिछले कई सालों से माटी समाज सेवी संस्था के माध्यम से 'साथी राऊंड टेबल गुरूकुल' के बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी लेते आ रहे हैं। प्रसन्नता की बात है कि नये साल से एक और सदस्य हमारे परिवार में शामिल हो गए हैं- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' नई दिल्ली, नोएडा से। पिछले कई वर्षों से अनुदान देने वाले अन्य सदस्यों के नाम हैं- प्रियंका-गगन सयाल, मेनचेस्टर (यू.के.), डॉ. प्रतिमा-अशोक चंद्राकर रायपुर, सुमन-शिवकुमार परगनिहा, रायपुर, अरुणा-नरेन्द्र तिवारी रायपुर, डॉ. रत्ना वर्मा रायपुर, राजेश चंद्रवंशी, रायपुर (पिता श्री अनुज चंद्रवंशी की स्मृति में), क्षितिज चंद्रवंशी, बैंगलोर (पिता श्री राकेश चंद्रवंशी की स्मृति में)। इस प्रयास में यदि आप भी शामिल होना चाहते हैं तो आपका तहे दिल से स्वागत है। आपके इस अल्प सहयोग से एक बच्चा शिक्षित होकर राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल तो होगा ही साथ ही देश के विकास में भागीदार भी बनेगा। तो आइए देश को शिक्षित बनाने में एक कदम हम भी बढ़ाएँ। सम्पर्क- माटी समाज सेवी संस्था, रायपुर (छ. ग.) 492 004, मोबा. 94255 24044, Email- drvermar@gmail.com
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लेखकों सेः उदंती.com एक सामाजिक- सांस्कृतिक वेब पत्रिका है। पत्रिका में सम- सामयिक लेखों के साथ पर्यावरण, पर्यटन, लोक संस्कृति, ऐतिहासिक- सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े लेखों और साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे कहानी, व्यंग्य, लघुकथाएँ, कविता, गीत, ग़ज़ल, यात्रा, संस्मरण आदि का भी समावेश किया गया है। आपकी मौलिक, अप्रकाशित रचनाओं का स्वागत है। रचनाएँ कृपया Email-udanti.com@gmail.com पर प्रेषित करें।

20 comments:
हमे भी ये पूरा गीत चाहिए।वाकई किसी भी कवि के लिए ये बहुत बड़ी बात होती है जब प्रतिक्रिया उसके भावों के अनुरुप हो।बधाई आपको बहुत 2
सुन्दर मन की तरह
मित्रता शब्द भावनाओं का दरिया है,मित्रता कभी भी हो सकती है बहुत सारगर्भित लेखन मंजूषा जी,हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत बढ़िया...
हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर
सुन्दर मन की प्यारी बात
शुभकामनाएं
तुम्हारी कविताएं तुमहरी तरह खूबसूरत है ,सचमुच दिल को छू लेने वाळी ।
बहुत बहुत शुभकामनाये
आप मानवीय भावनाओं की पारखी हैंआपकी तारीफ़ में शब्द कम पड़ते हैं
अद्भुत अनुभव है यह।वास्तविक कविता की यही तो ताकत और पहचान है। वरना गद्य को कविता कहकर परोसने वाले तो कबका गीत को अपदस्थ घोषित कर चुके थे। यह तो गीत की ताकत है कि बार बार वह प्रमाणित करता रहा है कि वास्तविक कविता गीत ही है। बधाई आपको।
जी बहुत बहुत धन्यवाद निक्की जी
हार्दिक आभार गणतंत्र जी
जी भावना जी बिलकुल सही है मित्रता कब कैसे हो जाती है कहना कठिन है... बस सम्वेदनाएँ मिलनी चाहिए
हार्दिक आभार आपका माणिक जी
हार्दिक आभार आपका
हृदयतल से आभार प्रवेश जी
शुक्रिया सुधा... हमारी दोस्ती अनमोल है...
जी हार्दिक आभार आपका
जी आदरणीय... बिलकुल सही कहा आपने, सच है गीत कभी गुम नहीं हो सकता... और अपदस्थ तो कदापि नहीं
कविताएं होती ही ऐसी हैं कि मंत्रमुग्ध कर जाती है। और आपकी कविताएं हर बार दिल को भाटी हैं।
बेहतरीन अनुभव सुनाया आपने। वैसे आपकी तो हर बात हर पंक्ति बहुत कुछ दिल को छूने लगती है। इसलिए ऐसा होना स्वाभाविक है। आपको हार्दिक बधाई।
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