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Jan 27, 2018

इस जहान में

इस जहान में
देवमणि पांडेय

परवाज़ की तलब है अगर आसमान में
ख़्वाबों को साथ लीजिए अपनी उड़ान में

मोबाइलों से खेलते बच्चों को क्या पता
बैठे हैं क्यूँ उदास खिलौने दुकान में

ये धूप चाहती है कि कुछ गुफ़्तगू करे
आने तो दीजिए उसे अपने मकान में

लफ़्ज़ों से आप लीजिए मत पत्थरों का काम
थोड़ी मिठास घोलिए अपनी ज़बान में

जो कुछ मुझे मिला है वो मेहनत से है मिला
मैं खुश बड़ा हूँ दोस्तो छोटे मकान में

हम सबके सामने जिसे अपना तो कह सकें
क्या हमको वो मिलेगा कभी इस जहान में

उससे बिछड़के ऐसा लगा जान ही गई
वो आया,जान आ गई है फिर से जान में

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