लिफ़ाफ़ा देखकर मजमून भाँपना
- डॉ. डी बालसुब्रमण्यन
अक्सर लोग पहली बार मिलने पर ही
व्यक्ति के बारे में उसकी शक्ल-सूरत के आधार पर राय कायम कर लेते हैं। यह वैसे ही
है जैसे किसी किताब के कवर को देखकर राय कायम कर ली जाए। अक्सर हम किसी व्यक्ति का
चेहरा देखकर उसे ईमानदार और भरोसेमंद (या
गैर-भरोसेमंद) मान लेते हैं। मेरी पत्नी शक्ति के पास यह शक्ति है और आम तौर पर वह
सही भी होती है। तो क्या किसी व्यक्ति का चेहरा उसके चरित्र का आइना होता है? मनोवैज्ञानिक पिछले कई सालों से इस
पहलू का अध्ययन कर रहे हैं और चेहरे की विश्वसनीयता पर कई पर्चे भी प्रकाशित किए
गए हैं।
आम सहमति यह दिखाई देती है कि शायद
व्यक्ति का चेहरा उसके भरोसेमंद होने का सूचक होता है। इस तरह का एक हालिया अध्ययन
चीन के वेन्ज़ाऊ मेडिकल युनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने किया है। उनका शोध पत्र “बच्चों द्वारा चेहरे के आधार पर
विश्वसनीयता का निर्णय: चेहरे के आकर्षण के साथ संगति और सम्बंध” फ्रंटियर्स इन साइकॉलॉजी के 15 जून
के अंक में प्रकाशित हुआ था।
इस मुद्दे पर पहले किए गए अध्ययन
यह बताते हैं कि वयस्क लोग किसी अनजान व्यक्ति का चेहरा देखकर सेकंड के एक अंश में
ही उस व्यक्ति की विश्वसनीयता को लेकर निर्णय कर लेते हैं। यह भी जानी-मानी बात है
कि शिशु भी ऐसा करते हैं, वे किसी व्यक्ति के चेहरे को देखकर
या तो चुप रहते हैं या रोने की प्रतिक्रिया देते हैं। तो क्या यह निर्णय की
प्रक्रिया शैशवावस्था से ही शुरु हो जाती है और युवावस्था तक बनी रहती है? क्या यह उम्र और अनुभवों के साथ
मज़बूत होती जाती है या इसमें कोई परिवर्तन होता है? यह सवाल है जिसे वेन्ज़ाऊ के शोधकर्ताओं ने संबोधित किया था।
उन्होंने 8, 10 और 12 साल की उम्र के 101
लड़के-लड़कियों के साथ यह शोध किया। साथ ही उन्होंने 20 साल की उम्र के 37
विद्यार्थियों का एक तुलनात्मक समूह भी बनाया था।
यह प्रयोग दो चरणों में किया गया
था। पहले चरण में 200 चेहरे दिखाए गए जिनके हाव-भाव उदासीन थे। प्रतिभागियों से
पूछा गया कि क्या इनमें से प्रत्येक चेहरा विश्वसनीय था, इसके लिए तीन विकल्पों -
विश्वसनीय/कुछ कहा नहीं जा सकता/अविश्वसनीय - में से किसी एक बटन को दबाना था। वे
अपना निर्णय 0 से 3 रेटिंग स्केल पर भी दे सकते थे। जब प्रतिभागी इस प्रक्रिया से
परिचित हो गए तब उनका औपचारिक टेस्ट लिया गया और उनसे प्राप्त स्कोरों का विश्लेषण
किया गया। कुछ समय के अंतराल के बाद इन्हीं बच्चों पर दूसरा टेस्ट किया गया। इस
बार स्क्रीन पर 200 चेहरे देखने के बाद सहभागियों को निम्नलिखित 3 विकल्पों में से
एक चुनना था: “आकर्षक/कुछ कहा नहीं जा
सकता/अनाकर्षक”।
जब इन दोनों टेस्ट के रिज़ल्ट का
विश्लेषण किया गया तो वैज्ञानिकों ने विश्वसनीयता और आकर्षण के बीच ठोस सम्बंध
पाया - विश्वसनीय चेहरा आकर्षक होता है, या यों भी कह सकते हैं कि आकर्षक चेहरा विश्वसनीय होना चाहिए।
और इन दोनों के बीच सह-सम्बंध उम्र के साथ बढ़ता जाता है। साथ ही विश्वसनीयता और
आकर्षण के बीच का यह सह-सम्बंध लड़कियों के मामले में ज़्यादा देखा गया बनिस्बत
लड़कों के।
हालांकि इस प्रयोग में पूर्वी
एशियाई चेहरों का उपयोग किया गया था मगर अन्य स्थानों पर किए गए अध्ययन बताते हैं
कि इस तरह के सह-सम्बंधों पर नस्ल या लिंग का बहुत असर नहीं होता। गलत हो या सही, आकर्षकता विश्वसनीयता का
विश्वव्यापी संकेत लगता है। रूढ़ विचार यही लगता है कि “सुंदरता अच्छाई है”।
यह सह-सम्बंध मात्र विश्वसनीयता से
आगे जा सकता है और यहाँ तक कि व्यक्ति की अन्य चारित्रिक विशेषताओं पर भी लागू
किया जा सकता है जिसे भारत में सामुद्रिका लक्षणम कहते हैं। सिद्ध लोगों ने कहानियाँ-
कविताएँ लिखी हैं (देखें siththarkal.com)। वे इस आकर्षक-विश्वसनीय
सह-सम्बंध के परे गए थे और कुछ रचनाओं के बीच सह-सम्बंध बताए थे: जैसे मछली जैसी
आंखों वाला मुक्त विचारक होगा, मोटे
बालों वाला विलासिता पसंद करेगा, या
सुंदर मुख वाला गुस्सा नहीं करेगा।
निश्चित रूप से कई पाठकों को चिंता
होगी कि कहीं इस तरह के सह-सम्बंध बहुत सरलीकृत या भ्रामक न हों क्योंकि (1) इनमें
मस्तिष्क और गहरे संज्ञान को नज़रअंदाज़ किया गया है, (2) हो सकता है कि अनाकर्षक चेहरे वाला व्यक्ति विश्वसनीय हो और
(3) क्या किसी का चेहरा दुर्घटना में विकृत हो जाए तो वह अचानक अविश्वसनीय हो जाता
है? सुंदरता की रूढ़ छवि (ज़्यादा आकर्षक
लोग होशियार, मिलनसार और सफल होते हैं) को आइना
दिखाने वाला मुहावरा है कि ‘सुंदरता
तो बस सतही होती है’। वास्तविक महत्व तो दिमाग का है।
और क्या यही वह चीज़ नहीं है जो हमें पूर्वाग्रहों, भेदभाव और असमानता की ओर ले जाती है? किसी भी जीव वैज्ञानिक सह-सम्बंध
को सामाजिक कारक के साथ रखकर देखना ज़रूरी है। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो अपनी
मानसिक उम्र में हम अभी तक बच्चे ही बने हुए हैं। या जैसा कि कहा जाता है सुंदरता
वही है जो सुंदर काम करे।
हम क्या करते हैं, उसी से हम सुंदर बनते हैं, मात्र सतही शक्ल-सूरत से नहीं।
सच्ची खूबसूरती केवल यह नहीं होती कि चेहरा सुंदर है या शरीर सुंदर है, बल्कि इससे परिभाषित होती है कि आप
दूसरों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं। (स्रोत फीचर्स)
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