अब मनुष्य के विलुप्त होने की सम्भावना
- डॉ. ओ.पी.जोशी
वर्ष 2017 में पर्यावरण से
सम्बंधित कई घटनाएँ घटीं (विशेषकर विनाशकारी) एवं बिगड़ते पर्यावरण पर चेतावनी
स्वरूप कई रिपोर्ट्स भी जारी की गई। प्रस्तुत है कुछ प्रमुख घटनाएँ एवं रिपोर्ट्स।
- अमेरिका का लगभग 1000 वर्ष
पुराना टनेल-ट्री (सिकोइया प्रजाति) 15 जनवरी को आए तूफान में धराशायी हो गया।
लगभग 250 फीट ऊंचाई के इस पेड़ के तने को काटकर 137 वर्ष पूर्व इसमें एक सुरंग बनाई
गई थी जिसमें से कार निकल जाती थी। सुरंग को लोग पायोनियर केबिन भी कहते थे। इस
सुरंग के कारण लोगों का दो किलोमीटर का चक्कर बच जाता था। कैलिफोर्निया के कुछ
लकड़ी तस्करों ने कुछ पुराने रेड वुड के वृक्ष भी काटे।
- अंटार्कटिका में हिम चट्टान (आइस
शेल्फ) लार्सेन सी का एक बड़ा हिस्सा 10 से 12 जुलाई के मध्य टूटकर अलग हो गया
जिससे लार्सेन सी का आकार 12 प्रतिशत कम हो गया। टूटकर अलग हुआ भाग लंदन के
क्षेत्रफल से चार गुना बड़ा था (लगभग 5800 वर्ग किलोमीटर)। लार्र्सेन सी में पिछले
कई वर्षों से 200 कि.मी. लम्बी दरार देखी जा रही थी। पर्यावरणविदों ने इसका कारण
बढ़ता तापमान मानते हुए इसे भविष्य के लिए खतरनाक बताया है।
- विश्व में सम्भवत: पहली बार
न्यूज़ीलैंड की सरकार ने मार्च में वहाँ की 150 कि.मी. लम्बी वांगजुई नदी को सजीव
इंसान मानकर मानव अधिकार प्रदान किए। नदी को दिए अधिकारों के तहत् प्रदूषण, अतिक्रमण व अत्यधिक दोहन पर
न्यायालय में मुकदमा करके दंड का प्रावधान किया गया है। न्यायालयीन प्रकरणों में
नदी का पक्ष कोई शासकीय वकील तथा माओरी समाज के प्रतिनिधि करेंगे। यहां की माओरी
जनजाति पिछले 150 वर्षों से इस नदी को बचाने की लड़ाई लड़ रही थी।
- वर्ष 2016 में हुए पेरिस जलवायु
परिवर्तन सम्मेलन के समझौते से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मार्च में
अलग होने की घोषणा की। ट्रंप प्रशासन इसे अमेरिकी लोगों पर आर्थिक बोझ मानता है।
वर्तमान यूएस सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की स्वच्छ ऊर्जा योजना को रद्द करके
यू.एन. ग्रीन क्लाईमेट फंड को दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर भी रोक लगा दी।
पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी (इ.पी.ए.) के बजट में एक तिहाई की कटौती की गई।
- पोलैण्ड की सरकार ने एक पर्यावरण
कानून पारित कर निजी ज़मीन पर मनचाही संख्या में पेड़ों को बगैर अनुमति काटने का
प्रावधान किया। पर्यावरण प्रेमियों तथा मानव अधिकार समूहों ने इसका विरोध किया है।
वैको शहर में महिलाओं ने ‘पोलिश मदर्स ऑन ट्री स्टंप्स’ नाम से एक समूह गठित करके इस कानून
का विरोध शु डिग्री किया है। विरोध प्रदर्शन में महिलाएँ कटे वृक्षों के ठूंठों पर
बैठकर बच्चों को स्तनपान कराती है। वे दर्शाना चाहती हैं कि पेड़ भी पर्यावरण का
पोषण एक माता के सामान करते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया के बुद्धिजीवियों
तथा खिलाड़ियों ने क्वीसलैंड में अडाणी समूह के चेयरमैन को कोयला खनन परियोजना वापस
लेने के लिए एक खुला पत्र लिखा। इस परियोजना से विश्व प्रसिद्ध ग्रेट बैरीयर रीफ
को खतरा बताया गया है। ग्लोबल वार्मिंग तथा भूजल स्तर के लिए भी इसे उचित नहीं
बताया गया। 60 वर्षों तक चलने वाली यह परियोजना लगभग एक लाख करोड़ रुपए की है। 90
जाने-माने लोगों द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि यदि परियोजना आगे बढ़ी तो
दोनों देशों (भारत व ऑस्ट्रेलिया) के बीच सम्बंधों पर बुरा प्रभाव होगा एवं
क्रिकेट तथा अन्य खेल भी प्रभावित होंगे। पत्र लिखने वालों में विश्व प्रसिद्ध
क्रिकेटर इयान तथा ग्रेग चेपल भी शामिल हैं।
- पेरिस जलवायु सम्मेलन के समझौते
पर नियम कानून बनाने हेतु जर्मनी के बॉन शहर में नवम्बर में एक सम्मेलन हुआ जिसमें
197 देश के लगभग 25 हज़ार प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन के आयोजन की सारी
व्यवस्थाएँ (ई-बस व सायकल का उपयोग, चाय-पानी के लिए मिट्टी के कप, कागज़ का उपयोग नहीं, कोई प्रेस नोट का वितरण न हो तथा राश्न नदी के किनारे तम्बुओं
में कार्य) तो पर्यावरण हितैषी रहे परंतु अन्य सम्मेलनों के समान यहां भी कोई ठोस
निर्णय नहीं हो पाया। विकासशील देशों से कई गुना अधिक कार्बन का उत्सर्जन करने
वाले विकसित देश इसी ज़िद पर अड़े रहे कि उत्सर्जन कम करने में सभी को साझा प्रयास
करने चाहिए। अमेरिका के कम प्रतिनिधित्व के बावजूद जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के
लिए भागीदार देशों की एकता व प्रयास सराहनीय रहे।
- ब्राज़ील के एक न्यायालय ने
राष्ट्रपति के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसके तहत विश्व प्रसिद्ध अमेज़न के वर्षा
वनों के एक बड़े संरक्षित अभयारण्य में खनन कार्य की अनुमति प्रदान की गई थी।
राष्ट्रपति का यह मानना था कि खनन कार्य से देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी परंतु
न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण को ज़्यादा महत्व दिया।
- संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग से
किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले चार दशकों से दुनिया की एक
तिहाई भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो गई है। कई कारणों से मैग्नीशियम, सोडियम तथा पौटेशियम की मात्रा के
बढ़ने से यह परिणाम हुआ है। मिट्टी की सेहत बिगड़ने की दर उर्वरा शक्ति के निर्माण
से लगभग सौ गुना अधिक है। यह आशंका व्यक्त की गई है कि वर्ष 2050 तक दक्षिण एशिया, उत्तर-पूर्वी व मध्य अफ्रीका इससे
ज़्यादा प्रभावित होंगे। अफ्रीका महाद्वीप के कई देशों में तो पिछले कई वर्षों से
भूमि सुधार के कोई कार्य हो नहीं पाए हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा
युनीसेफ द्वारा तैयार एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 60 प्रतिशत आबादी शौच
व्यवस्था के अभाव में जीवनयापन कर रही है तथा 30 प्रतिशत लोगों को साफ पेयजल
उपलब्ध नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने रिपोर्ट में कहा है कि शौच
व्यवस्था, साफ पेयजल तथा स्वास्थ्य सेवाएँ
मूलभूत आवश्यकताएँ है जो सभी की पहुँच में होना ज़रूरी है तभी पर्यावरण साफ-सुथरा
रहेगा।
- अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पीएनएएस
जर्नल में प्रकाशित एक लेख में चेतावनी दी है कि भारत के 90 प्रतिशत समुद्री
पक्षियों के पेट में किसी न किसी तरह प्लास्टिक पहुंच गया है। वर्ष 2050 तक यह
प्रतिशत 99 की सीमा पार कर जाएगा। 1960 के दशक में केवल 5 प्रतिशत समुद्री पक्षी
प्लास्टिक से प्रभावित थे। जॉर्जिया विश्वविद्यालय का अध्ययन दर्शाता है कि यदि वर्तमान
गति से समुद्रों में प्लास्टिक फेंका जाता रहा तो 2050 में मछलियों से ज़्यादा
प्लास्टिक होगा।
- नेचर में प्रकाशित विश्व
स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट अनुसार विश्व में घर से बाहर के वायु प्रदूषण के
कारण प्रति वर्ष 35 लाख लोगों की मौत होती है एवं 2050 तक यह 66 लाख होने की
सम्भावना है। विश्व के सर्वाधिक 20 प्रदूषित शहरों में आधे से ज़्यादा भारतीय शहर
बताए गए हैं।
- ग्लोबल विटनेस तथा गार्जियन ने
एक संयुक्त रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2017 में पर्यावरण सुरक्षा से जुड़े 170
लोगों को मार दिया गया। इनमें अधिकांश घटनाएँ खनन, वन्यजीव संरक्षण तथा उद्योग के क्षेत्र से सम्बंधित थीं और
ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादा हुई। रिपोर्ट में भारत का नाम भी शामिल है।
- यूएस की नेशनल एकेडमी ऑफ सांइसेज़
की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार हमारी पृथ्वी जीवों के महाविनाश के छठे दौर में
प्रवेश कर चुकी है। पृथ्वी के लगभग 4.5 अरब वर्ष के इतिहास में अब तक पाँच बार ऐसा
हुआ है जब सबसे ज़्यादा फैली प्रजाति विलुप्त हो गई। पाँचवे दौर में विशालकाय
डायनासौर समाप्त हुए थे। कुछ वैज्ञानिक इस छठे महाविनाश को वैश्विक महामारी भी कह
रहे हैं।
वैश्विक पर्यावरण से जुड़ी ये
प्रमुख घटनाएँ तथा रिपोर्ट्स यही दर्शाती हैं कि पर्यावरण बेहद खराब स्थिति में
पहुँच चुका है। यदि ऐसी ही परिस्थितियाँ जारी रहीं तो प्रजातियों के आसन्न छठे
महाविनाश में होमो सेपिएन्स प्रजाति (मनुष्य) की विलुप्ति की सम्भावना से एकदम
इन्कार नहीं किया जा सकता। (स्रोत फीचर्स)
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