ममता, दया और करुणा की प्रतिमूर्तिः
मिनीमाता
-प्रो. अश्विनी
केशरवानी
छत्तीसगढ़ में अनेक
महान लोगों ने जन्म लेकर ऐसे सत्कार्य किया, जिसके कारण आज भी उन्हें श्रद्धा से
स्मरण किया जाता है। पंडित सुंदरलाल शर्मा,
डॉ.
खूबचंद बघेल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह
और क्रांतिकुमार भारती जैसे महान क्रांतिकारी,
पंडित
रविशंकर शुक्ल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और छत्तीसगढ़ प्रदेश हित साधकों के साथ
ममतामयी, सहृदय, दया और करुणामयी मिनीमाता भी एक थी।
मिनीमाता का जन्म असम के नुवागाँव जिले के जमुनामुख में 15.03.1916 को ऐसे समय में
हुआ जब छत्तीसगढ़ में भीषण अकाल के कारण ऐसे अनेक परिवार जीविका की तलाश में मजदूरी
करने असम गए और अनेक प्रकार के कष्टों के बीच मजदूरी करते जीवनयापन कर रहे थे।
उनकी माता का नाम देवमती और पिता का नाम बुधारी महंत था। वास्तव में उनका परिवार
मूलतः अविभाजित बिलासपुर जिले (अब कबीरधाम जिला) के पंडरिया जमींदारी के अंतर्गत
सगोना का निवासी था। सन् 1901 से 1910 के बीच जब छत्तीसगढ़ में भीषण अकाल पड़ा, जिससे बहुत से गरीब
परिवार जीविका की तलाश में छत्तीसगढ़ छोड़कर असम के चाय बागान में काम करने चले गये।
मिनीमाता के नाना का
परिवार छत्तीसगढ़ में अकाल के दौरान असम के चाय बगान कैसे पहुँचा इसका मार्मिक
चित्रण लोकप्रिय साहित्यकार डॉ. परदेशीराम वर्मा ने किया है। उनके अनुसार सगोना का
मालगुजार परिवार इस अकाल से त्रस्त होकर जीविका के लिए अपनी पत्नी और तीन बेटियों
के साथ असम के चाय बगानों में काम की तलाश के लिए बिलासपुर आ गया। यहाँ के रेल्वे
स्टेशन में सरकारी किचन से उन्हें खाना मिला। खाना खाकर वे वहीं सुस्ता रहे थे कि
मजदूर ले जाने वाले ठेकेदार ने उन्हें मजदूरों के साथ असम ले जाने के लिए साथ में
ले लिया। ट्रेन कलकत्ता भी नहीं पहुँची थी कि उनकी एक बेटी की मृत्यु हो गई। अकाल
से पीड़ित परिवार में पति पत्नी के अलावा ये तीन बेटियाँ ही थीं, जिनमें से एक बेटी
ने मृत्यु का वरण कर लिया था। उन्हें ढाढस बँधाने वाला भी कोई नहीं था। माँ-बाप ने
तय किया कि सामने वाली गंगामाई को चलती ट्रेन से प्रणाम कर माटी के चोला को सौंप
देंगे। गंगा नदी का चौड़ा पाट देर से दिखा। थरथराते हाथों से बच्ची के शव को पिता
ने विलाप करते हुए चलती ट्रेन से गंगा को सौंप दिया ... ‘मिला लेबे महतारी।‘ गुरु घासीदास का संदेश- ‘माटी के चोला, माटी के काया, के दिन रहिबे, बता दे मोला ...।‘ रेल के डिब्बे में बैठे लोग भी इस दृश्य
को देखकर हिल गए थे। बच्ची की माँ बेसुध होकर पड़ी थी। लेकिन सब कुछ सामान्य था।
कलकत्ता पहुँचकर सबने ट्रेन बदली और चल पड़े असम की ओर...। पद्मा नदी पास आ रही थी
और पहली बेटी की तरह दूसरी बेटी ने भी साथ छोड़ दिया ... और पहली बेटी की तरह पिता
ने उन्हें भी काँपते हाथों से रोते- बिलखते पद्मा नदी को सौंप दिया। कबीर की वह
व्यवस्था भी नहीं बन सकी जो आखरी बिदाई के संदर्भ में प्रचलित है –
‘चार हाथ चरगज्जी मँगाए,
चढ़े काठ के घोड़ा, अऊ घोड़ा जी,
चार संत तोहे बोहिके
लेंगे .......।‘
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ
दोनों बेटी के लिए, न चरगज्जी मँगाई जा
सकी, न काठ के घोड़े में
बिटिया को चढ़ाया जा सका और न ही चार संत मिले जो उन्हें कंधे में लेकर श्मशान तक
जाते। डॉ. वर्मा जी आगे लिखते हैं, सत्य मार्ग के पथिक
पिता ने गुरुजी से संबल माँगा-
‘सत्य में हे धरती, सत्य में अकास हो,
सत्य में हे चंदा, सत्य
में परकास हो।
सत्य में तर जाही
संसार,
अमरित धार बोहाई दे,
होई जाही बेड़ा पार,
सतगुरू महिमा दिखाई
दे....।’
अब उनकी गोद में केवल
एक बेटी, छह वर्षीया बेटी ‘देवमती‘।
संयोग देखिए कि आसाम पहुँचकर देवमती के माता- पिता भी ज्यादा दिन जीवित नहीं रहे
और परलोक सिधार गए। भरे पूरे संसार में तब देवमती को एक नए परिवार का साथ मिला।
चाय के बागान में काम करते देवमती ने एक साथी मजदूर बुधारी को जीवन साथी बनाया और
उन्हीं की बिटिया थी मिनीमाता। होलिका दहन के दिन 15 मार्च 1916 को एक बच्ची ने
जन्म लिया जिन्हें सबने छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान के लिए जीवन समर्पित करने वाली
मिनीमाता के रूप में जाना। उनका वास्तविक नाम ‘मीनाक्षी’ था।
जमुनामुख में ही मीनाक्षी ने शिक्षा में प्राप्त की। एक दिन सतनाम पंथ के गुरु
अगमदास उनके घर पहुँचे। पूरा परिवार गुरु के आगमन से खुश हो उठा-
‘मोरे फूटे करम आज जागे हो साहेब।
मेरे अंगना म आइके
बिराजे हो साहेब।।’
गुरुजी के साथ
राजमहंत, सेवादार सिपाही भी
थे। गुरुजी का कोई पुत्र नहीं था। गद्दी के अधिकारी की चिंता गुरुजी को थी।
उन्होंने अपनी चिंता मीनाक्षी की माँ को बताया। गुरुजी के संकेत के महत्त्व को
समझते हुए माँ ने स्वीकृति दे दी। यह एक विलक्षण और इतिहास रचने वाला क्षण था।
छत्तीसगढ़ के भाग्य को सँवारने के लिए एक माँ ने अपनी बेटी की यात्रा सही दिशा में
मोड़ रही थी। ये वही माँ थी जो अपने पिता के साथ छत्तीसगढ़ छोड़कर क्या आई कि सब कुछ
छूट सा गया मगर गुरुजी के आदेश से फिर उसी धरती की ओर उनकी यात्रा मुड़ गई थी।
परिवार सहित मीनाक्षी देवी छत्तीसगढ़ आ गई मिनीमाता के रूप में गुरुमाता बनकर। उनका
छत्तीसगढ़ आगमन ऐसे दौर में हुआ जब पूरा देश स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था। गुरु
अगमदास जी का घर स्वतंत्रता सेनानियों से भरा रहता था। रायपुर का वह घर स्वतंत्रता
का अलख जगाने वाले सेनानियों का ऐसा किला था जहाँ रसद और अन्य सुविधा पर्याप्त
मात्रा में थी। उनके बीच मीनाक्षी को ऐसा संस्कार मिला कि उन्होंने आजीवन खादी
पहनने का व्रत ले लिया और उनके साथ इस आंदोलन में कूद पड़ी। गुरु परिवार की उदार
परम्परा के अनुरूप निराश्रित और जरूरतमंदों को निरंतर संरक्षण देती रही। यहाँ के
हर गाँव को गुरु अगमदास अपना गाँव मानते थे। मिनीमाता ने छत्तीसगढ़ में आकर उनकी
सहृदयता, सरलता, निष्कपटता और समर्पण भावना को गहराई से
समझा। सन् 1951 में गुरु अगमदास परलोक सिधार गए। उस समय वे सांसद थे। गुरू गद्दी
और अवयस्क पुत्र विजयकुमार गुरु के साथ ही मिनीमाता को छत्तीसगढ़ की चिंता व्यथित
कर रही थी। बहुत सी चुनौतियों को झेलते हुए गुरुजी के कामों को आगे बढ़ाने का निश्चय
किया। उन्हें असमिया, बांगला, अंग्रेजी, हिन्दी
और छत्तीसगढ़ी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान था। उन्होंने न केवल सतनामी समाज का
परिपोषण और संरक्षण नहीं किया बल्कि अन्य लोगों, श्रीकांत
वर्मा जैसे साहित्यकार, कामरेड मुश्ताक, कवि मैथ्यू जहानी जर्जर, भँवरसिंह पोर्ते जैसे राजनेता और
चंदूलाल चंद्राकर जैसे पत्रकार पर समान स्नेह रखती थी। उनकी ममता, दया और स्नेह जग जाहिर था। उनका द्वार
सबके लिए खुला था। वे छत्तीसगढ़ की उदार और दिव्य मातृ परंपरा की पूँजी लेकर
राजनीति में आई और सबकी लाडली बन गई।
सन् 1952 में वे
सांसद बनकर दिल्ली पहुँची। वे 1952 से 1972 तक सारंगढ़, जांजगीर और महासमुंद लोकसभा क्षेत्र की
सांसद रहीं। पंडित रविशंकर शुक्ल, महंत लक्ष्मीनारायण
दास आदि प्रदेश के प्रथम पंक्ति के नेताओं के साथ काम किया। मिनीमाता ने बाबा
साहेब अम्बेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा दी गई जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।
छुआछूत मिटाने तथा अधिकार विहीन दलितों-पिछड़ों के हितों के लिए मिनीमाता ने एक ऐसा
आंदोलन छेड़ा कि वे देश और प्रदेश में पूजनीय हो गई। देशी-विदेशी, स्वजातीय, ऊँच-नीच, धनी-गरीब सब पर एक समान व्यवहार करने
वाली मिनीमाता के चमत्कारिक व्यक्तित्व से इंदिरा जी बेहद प्रभावित हुई। उनकी
तेजस्विता तब सामने आई जब मुंगेली क्षेत्र के निरपराध सतनामियों की हत्या हो गई। करुणा
और दया की प्रतिमूर्ति मिनीमाता उस दौर में ऐसा सिंहनाद किया कि दरिंदे भी काँप
उठे। इस घटना के बाद उनकी सक्रियता और बढ़ गई। हर सताया हुआ समाज, दबा हुआ व्यक्ति और शोषित समुदाय
मिनीमाता के आँचल की छाँव चाहने लगा था। प्रसिद्ध पत्रकार राजनारायण मिश्र, राजनेता और साहित्यकार केयूर भूषण और
पंथी कलाकार देवदास बंजारे मिनीमाता की सहृदयता, दूर
दृष्टि और सहयोग की तारीफ करते थकते नहीं थे।
वास्तव में मिनीमाता
समाज की गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ापन
दूर करने में पूरा जीवन समर्पित कर दिया। मजदूर हितों और नारी शिक्षा के प्रति
हमेशा जागरूक रहीं। बाल विवाह और दहेज प्रथा दूर करने के लिए समाज से संसद तक आवाज
बुलंद किया। छत्तीसगढ़ में कृषि तथा सिंचाई के लिए हसदेव बांगों परियोजना उनकी दूर
दृष्टि का परिचायक है। शासन उनके नाम पर इस परियोजना को ‘मिनीमाता हसदेव बांगों परियोजना‘ किया। उन्होंने भिलाई इस्पात संयंत्र
में स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए भरपूर प्रयास किया। यही नहीं बल्कि एक
बार अपने रायपुर स्थित निवास में मजदूरों से पथराव कराकर शासन को स्थानीय लोगों को
रोजगार देने के लिए बाध्य किया था। उनकी सक्रियता और समझाईश से धर्मान्तरण पर भी
प्रभाव पड़ा। अपने जीवन काल में उन्होंने हजारों लड़कियों को साहस के साथ अपना जीवन
गढ़ने का मंत्र दिया। 11 अगस्त 1972 को एक हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
उनके निधन से बेसहारा लोगों ने अपना मसीहा और प्रदेश ने एक सजग प्रहरी खो दिया।
छत्तीसगढ़ शासन उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए कोरबा में शासकीय मिनीमाता
कन्या महाविद्यालय, बलौदाबाजार में
शासकीय मिनीमाता कन्या महाविद्यालय, राजनांदगाँव में
मिनीमाता शासकीय कन्या पॉलिटेकनिक महाविद्यालय,
लोरमी
में ममतामयी मिनीमाता कला एवं विज्ञान महाविद्यालय और बाल्को के कन्या स्कूल का
नामकरण भी उनके नाम पर किया गया है। जांजगीर-बिलासपुर मार्ग में अकलतरा मोड़ में
मिनीमाता की मूर्ति स्थापित कर मिनीमाता चौंक नाम रखा गया है। यही नहीं बल्कि
महिला उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए मिनीमाता सम्मान छत्तीसगढ़
शासन के द्वारा दिया जाता है। रामधारी सिंह दिनकर ने ठीक ही कहा है:
‘तुमने दिया राष्ट्र को जीवन,
देश तुम्हें क्या
देगा।
अपनी आग तेज रखने को,
तुम्हारा नाम लेगा।'
सम्पर्कः 'राघव' डागा कालोनी, चाम्पा-495671 (छत्तीसगढ़), Mo- 9425223213,
Email-
ashwinikesharwani@gmail.com,
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