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Jan 27, 2018

साहित्य -जगत् को अनुपम भेंट

साहित्य-जगत् को अनुपम भेंट
- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
पुस्तक- हिंदी हाइकु, ताँका, सेदोका की विकास– यात्रा एक परिशीलन: डॉ. सुधा गुप्ता, संयोजन– रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’; प्रथम संस्करण 2017, मूल्य: 500 रु.अयन प्रकाशन 1/20 महरौली, नई दिल्ली- 110030

हिन्दी साहित्य की सिद्ध साधिका डॉ. सुधा गुप्ता का रचना-संसार बहुत विस्तृत है।शोध-ग्रंथों से लेकर, आत्मकथा, सात कविता संग्रह, दो गीत संग्रह, तीनबालगीत संग्रह प्रकाशित हुए। जापानी विधाओं हाइकु,ताँका, सेदोका आदि की सुरम्य वादियों में भ्रमण करती कवयित्री की प्रकृति ऐसी रमी कि भारतीयता केरस-रंग-गंध में रची-बसी 21 पुस्तकों का शगुन इन विधाओं को भेंट कर दिया। प्रेम, प्रकृति, पर्यावरण, अध्यात्म, सामाजिकविसंगतियाँ प्रायः सभी सुधा जी की लेखनी का विषय बने। प्रेम, प्रकृति की ऐसी रागात्मक अभिव्यक्ति कि मन को अनुराग से भर दे तो पीड़ा का ऐसा गायन कि उसकी टीस में भी मन डूबा-डूबा जाए।
इन सबसे इतर प्रस्तुत ग्रन्थ ‘हिन्दी हाइकु, ताँका, सेदोकाकी विकास-यात्रा, एकपरिशीलन’ सुधा जी द्वारा इन्हीं विधाओं पर अन्य वरिष्ठ-कनिष्ठ रचनाकारों की कृतियों पर समीक्षात्मक, गवेषणात्मक आलेखों का संकलन है। ‘हाइकु कविता का परिदृश्य’ शीर्षक से सुधा जी ने भूमिका में हाइकु की विकास यात्रा पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। उपरान्त लगभग 35 हाइकु पुस्तकों की समीक्षाएँ, 18 पुस्तकों की भूमिकाएँ, 8 हाइकुकारों से सम्बद्ध आलेख हैं तथा ‘मेरी पसंद’ के अंतर्गत रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जीकी दस सेदोका रचनाओं की सरस, सारगर्भित व्याख्या है।
सुधा जी का सृजन जितना सरस, सुन्दर है समीक्षण कार्य उतना ही रोचक; किन्तु चुटीला। सन 1995-96 में प्रकाशित डॉ. लक्ष्मण प्रसाद नायक कृत ‘हाइकु का सफ़रनामा (उद्भव एवं विकास)’ से डॉ. कुँवर दिनेश सिंह रचित ‘जापान के चार हाइकु सिद्ध’ तकउनका एक-एक आलेख हाइकु शिक्षण की कार्यशाला है। हाइकु में सपाट बयानी, नीरसता, गद्यात्मकता पर सुधा जी हाइकुकार को सलीके से टहोकती हैं, तो सरस, सुन्दर-मनोहर कृति को जी भरकर सराहती हैं । डॉ. भगवत शरण अग्रवाल के हाइकु संग्रह ‘इन्द्रधनुष’ पर उनकी सम्मति किसी सरस कविता से कम नहीं –इस संग्रह को पढ़ना एक सुखद अनुभव है। जीवन के संघर्ष से हारे-थके आप किसी तपोवन में जा पहुँचे और कोई शांत कुटीर आपके लिए द्वार खोल दे ..कुछ पल वहाँ बिता कर आप साँस जुड़ा लें,श्रम परिहार कर लें ..और कभी अतीत के झरोखे में झाँक कर मुस्कुरा भी लें।
विविध हाइकु संग्रहों से चुन-चुनकर हाइकु रत्न उद्धृतकरती कवयित्री हाइकु पढ़ने का सलीका भी दे जाती हैं । डॉ. कुँवर दिनेश सिंह के ‘बारहमासा’ से उद्धृत करती हैं एक हाइकु-
देखो क्यारी में/ गुलाबों की वाहिनी / है तैयारी में ।(पृ-108 बारहमासा)
..और उसे स्पष्ट करती हैं –चैती गुलाब की सुषमा अनूठी है ,यह सर्व विदित है : किन्तु यहाँ हाइकुकार का ‘गुलाब की वाहिनी’ प्रयोग गूढ़ार्थ लिये है ,गुलाबों की सेना सज गई ! किसकी है यह सेना? ऋतुराज वसंत की ! किस पर विजय प्राप्त करने के लिए यह ‘तैयारी है? सम्पूर्ण चराचर जगत् पर ,फूल की पाँखुरी की भाँति धीरे-धीरे अर्थ खुलते चले जाते हैं और काव्यानन्द का चमत्कारी चरम आनन्द उपलब्ध होता है । साधारणतःहाइकुकार गुलाब के आधिक्य ,वर्ण आदि की सपाट बयानी करके छुट्टी पा लेगा। पुस्तक में ‘गिरते पत्ते’ ,‘मेघ सारथी’, जैसे अनुपम हाइकु और उनपर सुधा जी की समाख्या अभिभूत करती है।
पुस्तक में सुधा जी द्वारा लिखित 12 हाइकु एवं 4 ताँका,सेदोका पुस्तकों की भूमिकाएँ संग्रहों के हृदय को खोल कर पाठकों के लिए सहज बोधगम्य बनाती हैं। संकलित 8 आलेखों में व्यक्तिपरक आलेखों के साथ-साथ प्रकृति और पर्यावरण पर बेहद सारगर्भित आलेख हैं।पुस्तक के अंत में मेरी पसंद के अंतर्गत डॉ भगवत शरण अग्रवाल जी के हाइकु और  रामेश्वर काम्बोज‘हिमांशु’ जी के दस सेदोका पर सुधा जी का विवेचन है ,जैसे सोने में सुगन्ध!
निःसंदेह सुधा जी की लेखनी के विस्तार को सहेजने ,समेटकर प्रस्तुत करने का रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी का यह श्रम-साध्य, सफल प्रयास श्लाघनीय है , हिन्दी साहित्य जगत को अनुपम भेंट भी !
इस मणि-काञ्चन सहकार का हृदय से वंदन-अभिनन्दन करती हूँ !
सम्पर्कः एच- 604प्रमुख हिल्सछरवाडा रोड, वापी, जिला- वलसाड, गुजरात (भारत)Mo. 9824321053 

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