रंगीन
होती 31 दिसम्बर
की रात
- डॉ. महेश
परिमल
क्या कोई
मान सकता है कि न कोई मूर्ति, न कोई
आरती, न कोई
गीत, न कोई
तस्वीर, न कोई
सरकारी छुट्टी, इसके बाद
भी 31 दिसम्बर
की रात लोग झूम पड़ते हैं। डांस करते हैं, अपने
उत्साह को दोगुना करते हैं। आखिर इस 31 दिसम्बर
की रात में ऐसा क्या है, जिसने
युवाओं को इतना अधिक दीवाना बना रखा है। इस तरह से देखा जाए, आगामी वर्षों में 31
दिसम्बर
की रात और भी ज्यादा रंगीन होती जाएगी। समाज सुधारकों के लिए यह एक खतरे की घंटी
हो सकती है। इतना छलकता उत्साह तो हमारे धार्मिक त्योहारों में भी नहीं देखा जाता।
इस रात को होने वाले आयोजनों में भी अब लगातार वृद्धि होती जा रही है। युवाओं को
डांस करने का बहाना चाहिए, तो 31 दिसम्बर की रात को यह बहाना मिल जाता है। इस दौरान ऐसा
बहुत कुछ हो जाता है, जिसे
रेखांकित किया जाए, तो समाज
की एक दूसरी ही तस्वीर सामने आएगी।
भारतीय
त्योहारों में यदि दीवाली को शामिल किया जाए, तो इस
त्योहार में भी आधी रात के बाद जोश कम हो जाता है। सुबह तक दीवाली की यादें ही
बाकी रह जाती हैं। पर नए साल की अगवानी में किए जाने वाले आयोजनों में सबसे अधिक
हावी होता है विदेशी कल्चर। विदेशी संस्कृति की देखा-देखी में लोगों ने विदेशी
बाजार के साथ मिलकर एक ऐसा भारतीय
समाज बनाया जा रहा है, जो न तो
पूरी तरह से भारतीय है और न ही विदेशी। प्रसार माध्यमों ने इसे और भी बढ़ावा दिया
है। टीवी जैसे माध्यम ने 31 दिसम्बर
की रात को और अधिक रंगीन बना दिया है। गिरते मानव मूल्यों के बीच यह एक सोची-समझी
साजिश के तहत पूरे भारतीय समाज को एक नई दुनिया में ले जाने की एक कोशिश ही है।
कुछ लोग इसे अतिआधुनिकता मान सकते हैं, पर यह
पाश्चात्य देश के अनुकरण की दिशा में उठाया गया एक दिशाहीन कदम ही है।
हमारे
देश में आधी रात के बाद जन्माष्टमी मनाई जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के अवसर
पर लोग आधी रात तक जागरण कर उनका जन्मदिन मनाते हैं। देश की जेलों में भी यह पर्व
धूमधाम के साथ मनाया जाता है। क्योंकि कृष्ण का जन्म जेल में ही हुआ था। इसलिए
कैदियों के लिए कृष्ण बहुत ही पूजनीय हैं। देश भर के मंदिरों में कृष्ण जन्माष्टमी
की धूमधाम से तैयारी की जाती है, कृष्ण
मंदिरों की तो बात ही न पूछो, यहां तो
एक मेला जैसा दृश्य दिखाई देता है। यह त्योहार भी सुबह चार बजे तक अपनी समाप्ति की
ओर होता है। लेकिन 31 दिसम्बर
की रात को युवाओं का छलकते जोश देखने लायक होता है। इस रात पुलिस का चुस्त इंतजाम
दिखाई देता है। पर जन्माष्टमी में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं की जाती। इसका आशय
स्पष्ट है कि 31 जनवरी की
रता को युवा वह करते हैं, जो
जन्माष्टमी पर नहीं करते। क्या करते हैं और क्या नहीं करते हैं, यही समाज सुधारकों को सोचना है।
इस देश
का हर नागरिक देश के कानून से जुड़ा है। कानून यानी संविधान। संविधान का दिन यानी 26 जनवरी। इस दिन भी कहीं भी किसी भी तरह का कोई उत्साह
देखने को नहीं मिलता। शालाओं में बच्चों को केवल उपस्थिति दर्शाने के लिए बुलाया
जाता है। झंडावंदन तक लोग इसमें दिलचस्पी दिखाते हैं, उसके बाद घर जाकर छुट्टी मनाते हैं। अधिक दूर जाने
की आवश्यकता नहीं है, स्वतंत्रता
दिवस को भी लोग एक छुट्टी के दिन से अधिक महत्व नहीं देते। पर 31 दिसम्बर की रात को युवाओं में जो जोश दिखाई देता है, वह अन्य किसी त्योहार में नहीं दिखता। यह उत्साह
केवल देश के बड़े शहरों में ही दिखाई देता है। छोटे शहरों एवं कस्बों-गांवों में
लोग रात भर टीवी के प्रोग्राम देखकर नए साल की अगवानी करते हैं। 31 दिसम्बर की रात को टीवी पर कई ऐसे कार्यक्रम आते हैं, जिसका लोग अनुशरण करते हैं। पहले से ही तैयार इस शो
में विभिन्न कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। अपने मनपसंद कलाकारों को
देखकर लोगों का प्रभावित होना लाजिमी है।
31 दिसम्बर की रात को थिरकते युवाओं को देखकर ऐसा लगता है
कि आखिर ये किसकी खुशी मना रहे हैं। कैलेंडर का एक पेज ही तो बदला है। बीते हुए
साल से क्या सीखा और आने वाले साल से क्या सीखना है,
उसकी
क्या योजना है, इस पर
कोई नहीं सोचता। दिन-रात तो एक ही तरह से होते हैं,
इसमें
कैसा आयोजन और कैसी मस्ती? यही एक
ऐसी रात होती है, जिसमें
हर कोई नाचता ही दिखाई देता है। स्थान सड़क हो या फिर कोई क्लब, होटल, पार्टी।
कड़कड़ाती ठंड भी इन युवाओं को रोक नहीं पाती। यह एक ऐसा स्वयंभू उत्सव है, जिसमें किसी भी तरह से किसी को आमंत्रित नहीं किया
जाता। लोग खुद होकर इसमें शामिल होते हैं। नाचते-गाते हैं। ऐसा क्या है इस रात में
कि युवा खो जाते हैं, नए साल
के स्वागत में। वास्तव में इसके पीछे वह गुप्त मार्केटिंग है, जो विदेशी कल्चर की तरफ आकर्षित करता है। हमें विदेश
की बनी हर चीज से आकर्षित होते आए हैं, बस इसी
का फायदा उठाया रहा है। युवाओं के अंतर्मन में यही बात है, जो उसे उत्सव प्रिय तो बनाती है, पर केवल विदेशी उत्सव के प्रति ही उसका लगाव दिखता
है।
किसी भी
सरकार में यह दम नहीं है कि इस प्रकार के उत्सवों पर रोक लगाए। पर क्या सरकार
सरकारी आयोजनों के लिए किसी तरह की मार्केटिंग नहीं कर सकती, जिसमें अधिक से अधिक युवा शामिल हो, उस उत्सव में शामिल होकर युवा स्वयं को
गौरवान्वितकरें। शहीद दिवस पर शहीदों को अंजलि देकर हमें गौरवान्वित होना चाहिए, पर हम हो नहीं पाते। उस समय हम केवल सरकार की नाकामी
का नगाड़ा ही पीटते रहते हैं। कोसते रहते हैं सरकारी नीतियों को। इससे शायद हमें
आत्मिक सुख मिलता है। पर हम यह भूल जाते हैं कि सीमा पर किसी जवान ने अपनी जान
देकर हमारी जान बचाई है। आज हम चैन की नींद ले रहे हैं, तो उसके पीछे हमारों जवानों की कुर्बानियाँ हैं।
हमारा परिवार सुरक्षित है, तो वह
हमारे जवानों की निष्ठा के कारण ही है। मेरा तो मानना है कि जितना जोश-जुनून हम 31 दिसम्बर की रात को दिखाते हैं, उतना ही जुनून हममें 26
जनवरी, 15 अगस्त आदि सरकारी त्योहारों में भी दिखाई देना
चाहिए। इन त्योहारों को मनाकर हम गर्व का अनुभव करें। शायद तभी हम एक सच्चे भारतीय
बन पाएँगे।
सम्पर्क:
403, भवानी
परिसर, इंद्रपुरी
भेल, भोपाल.
462022, Email- parimalmahesh@gmail.com
No comments:
Post a Comment