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Jan 28, 2017

जल रहा अलाव

जल रहा अलाव 
- शशि पाधा
(वर्जिनियायू एस )

जल रहा अलाव आज
लोग भी होंगे वहीं
मन की पीर-भटकनें
झोंकते होंगे वहीं।

कहीं कोई सुना रहा
विषाद की व्यथा कथा
कोई काँधे हाथ धर
निभा रहा चिर प्रथा

उलझनों की गाँठ सब
खोलते होंगे वहीं।

गगन में जो चाँद था,
कल रा घट जाएगा
कुछ दिनों की बात है
आएगा, मुस्काएगा

एक भी तारा दिखे तो
और भी होंगे वहीं।

दिवस भर की विषमता
ओढ़ कोई सोता नहीं
अश्रुओं का भार कोई
रात भर ढोता नहीं

पलक धीर हो बँधा
स्वप्न भी होंगे वही।

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