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Oct 20, 2014

परंपरा

छत्तीसगढ़ का पारंपरिक जसगीत 
                   - संजीव तिवारी


छत्तीसगढ़ में पारंपरिक रूप में गाये जाने वाले लोकगीतों में जसगीत का अहम स्थान है। छत्तीसगढ़ का यह लोकगीत मुख्यत-  क्वाँर व चैत्र नवरात में नौ दिन तक गाया जाता है। प्राचीन काल में जब चेचक एक महामारी के रूप में पूरे गाँव में छा जाता था तब गाँवों में चेचक प्रभावित व्यक्ति के घरों में इसे गाया जाता था । आल्हा उदल के शौर्य गाथाओं एवं माता के शृंगार व माता की महिमा पर आधारित छत्तीसगढ़ के जसगीतों में अब नित नये अभिनव प्रयोग हो रहे हैं, हिंगलाज, मैहर, रतनपुर व डोंगरगढ, कोण्डागाँव एवं अन्य स्थानीय देवियों का वर्णन एवं अन्य धार्मिक प्रसंगों को इसमें जोड़ा जा रहा है, नये गायक गायिकाओं, संगीत वाद्यों को शामिल कर इसका नया प्रयोग अनावरत चालू है।
पारंपरिक रूप से माँदर, झांझ व मंजिरे के साथ गाये जाने वाला यह गीत अपने स्वरों के ऊतार चढ़ाव में ऐसी भक्ति की मादकता जगाता है जिससे सुनने वाले का रोम -रोम माता के भक्ति में विभोर हो उठता है । छत्तीसगढ़ के शौर्य का प्रतीक एवं माँ आदिशक्ति के प्रति असीम श्रद्धा को प्रदर्शित करता यह लोकगीत नसों में बहते रक्त को खौला देता है, यह आध्यात्मिक आनंद कीसी अलौकिक ऊर्जा तनमन में जगाता है ,जिससे छत्तीसगढ़ के सीधे- साधे सरल व्यक्ति की रग-रग में ओज उमड़ पडता है एवं माता के सम्मान में इस गीत के रस में लीन भक्त लोहे के बने नुकीले लम्बे तारों, त्रिशूलों से अपने जीभ, गाल व हाथों को छेद लेते हैं व जसगीत की स्वर लहरियों में थिरकते हुए 'बोलबम’ 'बोलबमकहते हुए माता के प्रति अपनी श्रद्धा प्रदर्शित करते हुए 'बाना चढ़ातेहैं वहीं गाँव के महामाया का पुजारी 'बैइगाआनंद से अभिभूत हो 'माता चढ़ेबम- बम बोलते लोगों को बगई के रस्सी से बने मोटे रस्से से पूरी ताकत से मारता है, शरीर में सोटे के निशान उभर पड़ते हैं पर भक्त बम बम कहते हुए आनंद में और डूबता जाता है और सोंटे का प्रहार माँदर के थाप के साथ ही गहराते जाता है ।
छत्तीसगढ़ के हर गाँव में ग्राम्या देवी के रूप में महामाया, शीतला माँ, मातादेवाला का एक नियत स्थान होता है जहाँ इन दोनों नवरात्रियों में जँवारा बोया जाता है एवं नौ दिन तक अखण्ड ज्योति जला जाती है, रात को गाँव के पुरूष एक जगह एकत्र होकर माँदर के थापों के साथ जसगीत गाते हुए महामाया, शीतला, माता देवाला मंदिर की ओर निकलते हैं -

अलिन गलिन मैं तो खोजेंव, मइया ओ मोर खोजेंव
सेऊक नइ तो पाएव, मइया ओ मोर मालनिया
मइया ओ मोर भोजलिया.........
रास्ते में माता सेवा जसगीत गाने वाले गीत के साथ जुड़ते जाते हैं, जसगीत गाने वालों का कारवाँ जस गीत गाते हुए महामाया मंदिर की ओर बढ़ता चला जाता है। शुरूआत में यह गीत मध्यम स्वर में गाया जाता है गीतों के विषय भक्तिपरक होते हैं, प्रश्नोत्तर के रूप में गीत के बोल मुखरित होते हैं -
कउने भिँगोवय मइया गेहूँवा के बिहरी
कउने जगावय नवराते हो माय......
सेऊक भिँगोवय मइया गेहूँवा के बिहरी
लंगुरे जगावय नवराते हो माय......
जसगीत के साथ दल महामाया मन्दिर पहुँचता है वहाँ माता की पूजा अर्चना की जाती हैं फिर विभिन्न गाँवों में अलग अलग प्रचलित गीतों के अनुसार पारंपरिक छत्तीसगढ़ी आरती गाई जाती है -
महामाय लेलो आरती हो माय
गढ़ हींगलाज में गढ़े हिंडोलना लख आवय लख जाय
माता लख आवय लख जाय
एक नहीं आवय लाल लंगुरवा जियरा के प्राण आधार......
जसगीत में लाल लँगुरवा यानी हनुमान जी सातो बहनिया माँ आदिशक्ति के सात रूपों के परमप्रिय भाई के रूप में जगह जगह प्रदर्शित होते हैं जहाँ माता आदि शक्ति लँगुरवा के भ्रातृ प्रेम व उसके बाल हठ को पूरा करने के लि दिल्ली के राजा जयचंद से भी युद्ध कर उसे परास्त करने का वर्णन गीतों में आता है। जसगीतों में दिल्ली व हिंगलाज के भवनों की भव्यता का भी वर्णन आता है-
कउन बसावय मइया दिल्ली ओ शहर ला, कउन बसावय हिंगलाजे हो माय
राजा जयचंद बसावय दिल्ली शहर ला, माता वो भवानी हिंगलाजे हो माय
कउने बरन हे दिल्ली वो शहर हा, कउने बरन हिंगलाजे हो माय
चंदन बरन मइया दिल्ली वो शहर हा, बंदन बरन हिंगलाजे हो माय
आरती के बाद महामाया मंदिर प्राँगण में सभी भक्त बैठकर माता का सेवा गीतों में प्रस्तुत करते हैं । सभी देवी देवताओं को आव्हान करते हुए गाते हैं - -
पहिली मय सुमरेव भइया चँदा- सुरूज ला
दुसरे में सुमरेंव आकाश हो माय......
सुमरने व न्यौता देने का यह क्रम लम्बा चलता है ज्ञात अज्ञात देवी देवताओं का आह्वान गीतों के द्वारा होता है । गीतों में ऐसे भी वाक्यों का उल्लेख आता है जब गाँवों के सभी देवी- देवताओं को सुमरने के बाद भी यदि भूल से किसी देवी को बुलाना छूट गया रहता है तो वह नाराज होती है गीतों में तीखें सवाल जवाब जाग उठते हैं - -
अरे बेंदरा बेंदरा झन कह बराइन मैं हनुमंता बीरा
मैं हनुमंता बीरा ग देव मोर मैं हनुमंता बीरा
जब सरिस के सोन के तोर गढ लंका
कलसा ला तोर फोर हॉं, समुंद्र में डुबोवैं,
कलसा ला तोरे फोर हाँ .......
भक्त अपनी श्रद्धा के फूलों से एवं भक्ति भाव से मानस पूजा प्रस्तुत करते हैं, गीतों में माता का शृंगार करते हैं ,मालिन से फूल गजरा रखवाते हैं । सातो रंगों से माता का शृंगार करते हैं - 
मइया सातो रंग सोला हो शृंगार हो माय.....
लाल लाल तोरे चुनरी महामाय लालै चोला तुम्हारे हो माय......
लाल हावै तोर माथे की टिकली लाल ध्वजा तुम्हारे हो माय....
खात पान मुख लाल बाल है सिर के सेंदूर लाल हो माय.....
मइया सातो रंग....
पुष्प की माला में मोंगरा फूल माता को अतिप्रिय है। भक्त सेउक गाता है-
हो माय के फूल गजरा, गूथौ हो मालिन के धियरी फूल गजरा
कउने माय बर गजरा कउने माय बर हार, कउने भाई बर माथ मटुकिया
सोला हो शृंगार....
बूढ़ी माय बर गजरा धनईया माय बर हार, लंगुरे भाई बर माथ मटुकिया
सोला हो शृंगार......
माता का मानसिक शृंगार व पूजा के गीतों के बाद सेऊक जसगीत के अन्य पहलुओं में रम जाते हैं तब जसगीत अपने चढ़ाव पर आता है माँदर के थाप उत्तेजित घ्वनि में बारंबारता बढ़ाते हैं गीत के बोल में तेजी और उत्तेजना छा जाता हैं -
अगिन शेत मुख भारत भारेव, भारेव लखन कुमारा
चंदा सुरूज दोन्नो ला भारेव, हूँ ला मैं भारे हौं हाँ
मोर लाल बराईन, तहूं ला मैं भरे हंव हाँ ....
गीतों में मस्त सेऊक भक्ति भाव में लीन हो, वाद्य यंत्रों की धुनों व गीतों में ऐसा रमता है कि वह बम- बम के घोष के साथ थिरकने लगता है, क्षेत्र में इसे देवता चना कहते हैं अर्थात् देवी स्वरूप इन पर आ जाता है । दरअसल यह ब्रह्मान्द जैसी स्थिति है ;  जहाँ भक्त माता में पूर्णतया लीन होकर नृत्य करने लगता है सेऊक ऐसी स्थिति में कई बार अपना उग्र रूप भी दिखाने लगता है तब महामाई का पुजारी सोंटे से व कोमल बाँस से बने बेंत से उन्हें पीटता है एवं माता के सामने 'हूम देवाताहै ।
भक्ति की यह रसधारा अविरल तब तक बहती है जब तक भगत थककर चूर नहीं हो जाते। सेवा समाप्ति के बाद अर्धरात्रि को जब सेऊक अपने अपने घर को जाते हैं तो माता को सोने के लि भी गीत गाते हैं -
पउढौ पउढौ मईयाँ अपने भुवन में, सेउक बिदा दे घर जाही बूढ़ी माया मोर
दसो अंगुरी से मईया बिनती करत हौं, डंडा ओ शरण लागौं पायें हो माय ......
आठ दिन की सेवा के बाद अष्टमी को संध्या 'आठेमें 'हूम हवनव पूजा अर्चना पंडित के .द्धारा विधि विधान के साथ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती के मंत्र गूँजते हैं और जस गीत की मधुर धुन वातावरण को भक्तिमय बना देती है। नवें दिन प्रात-  इसी प्रकार से तीव्र चढ़ाव जस गीत गाए जाते हैं ;जिससे कि कई भगत मगन होकर बाना, सांग चढ़ाते हैं एवं मगन होकर नाचते हैं। मंदिर से जवाँरा एवं जोत को सर पर ठाए महिलाएँ पंक्तिबद्ध होकर निकलती हैं।गाना चलते रहता है । अखण्ड ज्योति की रक्षा करने का भार बइगा का रहता है; क्योंकि पाशविक शक्ति उसे बुझाने के लि अपनी शक्ति का प्रयोग करती है ; जिसे परास्त करने के लिये बईगा बम -बम के भयंकर गर्जना के साथ नींबू चावल को मंत्रों से अभिमंत्रित कर ज्योति व जवाँरा को सिर पर लिये पंक्तिबद्ध महिलाओं के ऊपर हवा में फेंकता है व उस प्रभाव को दूर भगाता है। गीत में मस्त नाचता गाता भक्तों का कारवाँ नदी पहुँचता है ;जहाँ ज्योति व जवाँरा को विसर्जित किया जाता है । पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ सभी माता को प्रणाम कर अपने गाँव की सुख समृद्धि का वरदान माँगते हैं, सेऊक माता के बिदाई की गीत गाते हैं -
 सरा मोर सत्ती माय ओ छोड़ी के चले हो बन जाए

सरा मोर सत्ती माय वो .....

सम्पर्क:- 40, खण्डेलवाल कालोनी, दुर्ग (छ.ग.), मो. 09926615707

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