उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Mar 10, 2013

व्यंग्य


सोशल मीडियाई और गॅजेटियाई होली

- रवि रतलामी

दद्दू यादों में खोए थे और अपने पोते मुन्नू को, जो अपने नए नवेले, एकदम ताज़ातरीन स्मार्टफ़ोन, ब्लैकबेरीएक्स 01 को हैक कर उसमें कस्टम रोमइंस्टाल करने की बेतरह कोशिश कर रहा था, अपने बचपन के दिनों में खेली गई होली के बारे में बता रहे थे...
आह! बेटा! वो दिन भी क्या दिन थे! आई मीन, वो होली के दिन भी क्या दिन थे, और क्या रंगीन दिन थे.
महीनों से होली की हुलक मन में रहती थी, और पखवाड़े भर पहले से फाग मंडली के साथ गाने और होली के लिए लकड़ी का जुगाड़ लगाने के साथ अर्धरात्रि जागरण का प्रकल्प पूरा करते फिरते थे. पड़ोसी की परछत्ती और बरसाती से पुराने फर्नीचर को होली की लकड़ी के नाम पर चुराने का अपना मजा रहता था. ये तुम फ्लैट और कवर्डकैंपस में रहने वाले क्या जानो! और, होली जल जाने के बाद भी उसकी आग हफ्तों तक चले ऐसा जुगत लगाते फिरते थे और मन में ये संताप भी यदा कदा आ जाता था कि बाजू मोहल्ले की होली में इस बार जलाया गया लट्ठ बड़ा भारी है जो पंद्रह दिन तक तो सुलगता रहेगा.
और, बेटा! धुलेंडी की तो बात ही मत पूछो. अपने राम को रत्ती भर रंग न लगे, मगर सामने वाले को भीतर तक रंग देने के तमाम मंसूबे हफ़्तों पहले से बनाते थे और उस हिसाब से तैयारी भी पूरे तन-मन-धन, होशो-हवास और जोश-उल्लास से करते थे. ऐसे भरपूर रंगने वालों की सूची में कई दोस्त भी शामिल रहते थे तो कई दुश्मन भी. मिठाई और नमकीन में भाँग मिलाकर खिलाने और फिर उसके मजे लेने के तो मजे ही मजे रहते थे. बेटा! तुम्हें उन दिनों के किस्से डिटेल में सुनाने जाएँ, तो हर होली के किस्से तीन सौ पन्नों में भी न निपटे....
और इधर दद्दू की बात सुनी-अनसुनी करते हुए मुन्नू अपने मोबाइल में कस्टम रोमइंस्टाल करने में सफल हो गया था और अपने दोस्तों को एसएमएस करने तथा फ़ेसबुक में स्टेटस चेंपने के साथ-साथ वो दद्दू की बात काटते हुए बोला -
अरे,दद्दू, रहने भी दो. हमारे भी दिन हैं और क्या रंगीन दिन हैं!
होली की हुलक हमें भी महीनों पहले से होने लगती है.होली के महीने भर पहले से होलियाना कविताओं का दौर तमाम फ़ोरमों और समूहों में चलने लगता है उसका मजा आपके सैकड़ों घंटों के फाग से कई गुना अधिक होता है, उसे आप क्या जानो! ब्लॉग और ट्विटर पर होली-होली खेलने का अपना अलग मज़ा है. फ़ेसबुक-मित्रों, ब्लॉग-प्रशंसकों, ट्विटर-फ़ॉलोअरों के सैकड़ों-हजारों स्टेटस-अपडेटों, ब्लॉगों और ट्वीटों में छपे तमाम अगले-पिछले वर्षों के होली के फोटू और वीडियो देख-देख अपनी होली और रंगीन हो जाती है – ऐसी रंगीन कि सैमसुंग गैलेक्सी के 64 मिलियन कलर भी शरमाजाएँ!.
होली के चार दिन पहले से चार दिन बाद तक ईमेल और एसएमएस-एमएमएस से होली के सैकड़ों-हजारों बधाई संदेश और शुभकामना के संदेश तो दद्दू तुम्हें क्या मिले होंगे कभी. होली के दिन, दिन भर में कभी दस पाँच दोस्तों और उनकी मंडली के बीच होली खेल-खाल लिया होगा, गले-वले मिल लिये होगे, रंग-वंग लगा लिया होगा और बहुत हुआ तो अपने ऑफ़िस या व्यवसाय की बिरादरी में बीस-पच्चीस के साथ हुल्लड़ मस्ती कर ली होगी बस्स. इधर देखो– हम तो होली का ईमेल  संदेश फारवर्ड ही तीन हजार को मारने जा रहे हैं, और फ़ेसबुक में तो हम अपने पूरे पाँच हज्जार फ्रेंड को स्टेटस टिकाएँगे कि देखो हम्मारी होली! ट्विटर में होली-ट्वीट मारेंगे तो बारह हज्जार फ़ॉलोअर हमारे संग ट्विटरियाना होली खेलेंगे. और अभी तो मोबाइल एसएमएस की शुरूआत ही नहीं हुई है. हमने तो इस दफ़ा होली के लिए अनलिमिटेड फ्री टाकटाइम और एसएमएस का प्लान लिया है. बैलेंस खत्म होने की चिंता ही नहीं रहेगी.
और, आप और आपके समय का समाज तो वातावरण, पर्यावरण की चिंता ही नहीं करता था. सैकड़ों टन लकड़ी फालतू आग के हवाले कर देते थे. करोड़ों लीटर पानी रंग में बहा देते थे, जिसे बदन से हटाने के लिए अरबों लीटर पानी की जरूरत होती थी. ऊपर से रंगों की वजह से स्किन की समस्या अलग होती थी. हमें देखो– होली में पूरे दिन अपने बेडरूम में जमे रहकर हम अपने कंप्यूटर और मोबाइल के जरिए अपने मित्रों के फोटुओं में रंग लगाते हैं और शेयर करते हैं. होली का एनीमेटेड फ्लैश वीडियो बना कर और उसे मित्र मंडली में साझा करके प्रतीकात्मक होली जलाते हैं. और, मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट से चिपके रहने, फ़ेसबुक में जमे रहने के जैसा नशा तो भाँग की दस गोलियों से भी नहीं आ सकता! और अगर हम भी अपनी पिछली होली की डिटेल बताने लगें तो कंप्यूटर के दस डिस्क भर जाएँ!
मुन्नू की बहुत सी बातें दद्दू के पल्ले नहीं पड़ीं. जैसे दद्दू कला के विद्यार्थी हों और गलती से मुन्नू के विज्ञान की कक्षा में आ गए हों, और इसीलिए झपकियाँ मारने लगे थे.
बहरहाल, यदि आपको ये होलियाना किस्सा पढ़कर झपकी नहीं आई हो तो कृपया बताएं कि दद्दू की होली भली थी कि मुन्नू की है, और, इस बार की आपकी अपनी होली कैसी रहेगी–दद्दूटाइप या मुन्नू टाइप?
संपर्क: रविशंकर श्रीवास्तव, 101, आदित्य एवेन्यू, एयरपोर्ट रोड, भोपाल मप्र 462032,
 E-mail- raviratlami@gmail.com