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Apr 21, 2012

लो आई भोर

 लो आई भोर
- ज्योत्स्ना शर्मा
1
भोर का तारा
निशा संग जाए ना
देखे आकाश।
2
उजाला हुआ
चहकती चिडिय़ाँ
बजे संगीत।
3
बादल धुआँ
घुटती -सी साँसें हैं
व्याकुल धरा।
4
न घोलो विष
जल, जीव व्याकुल
तृषित धरा।
5
व्यथा कथाएँ
धरा जब सुनाए
सिन्धु उन्मन!
6
लो आई भोर
झाँक रहा सूरज
पूर्व की ओर।
7
जादुई पल
किरनों ने छू दिया
खिले कँवल।
8
पत्ता जो गिरा
मुस्कुराकर बोला-
फिर आऊँगा!
9
धानी चूनर
सतरंगी कर दी
भागा सूरज।
10
सिन्धु छुपाए
रंग लाल गहरा
घुल ही गया।
11
खिली धूप- सी
खुशियाँ और उमंग
बौराया मन।
12
मधुरा गिरा
भरे रस -कलश
रहे अक्षया!

   संपर्क- मकान नं 604, प्रमुख हिल्स, छरवडा रोड,
    वापी, जिला वलसाड ( गुजरात) -पिन-396191
    Email- jyotsna.asharma@yahoo.co.in


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