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Jan 31, 2012

किसानों के हितैशी जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के सौ साल


1904 के पहले देश के किसानों को साहूकारों तथा जमींदारों पर ऋणों के लिए निर्भर रहना पड़ता था क्योंकि लगातार दुर्भीक्ष के कारण ऋण लेना उनकी मजबूरी थी। छत्तीसगढ़ के किसानों की स्थिति इससे अलग नहीं थी इसी बीच पुराने रायपुर जिले के स्व. वामन बलीराम लाखे किसानों के हमदर्द के रूप में आए, वे किसानों के दुखदर्द के समझते थे, वे स्वयं पलारी जनपद के अंतर्गत कोसमंदी ग्राम के किसान थे उनके द्वारा स्थापित जिला सहकारी बैंक 2 जनवरी 2012 अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है।
विश्व में सहकारिता आंदोलन का इतिहास देखें तो पता चलता है कि सहकारिता आंदोलन का पर्दापण अलग- अलग देशों में अलग- अलग कारणों से हुआ है जैसे यूरोप के देशों में उपभोक्ता व्यवसाय के कारण स्वीडन, नार्वे और डेनमार्क डेयरी डेवलपमेंट के नाम से तो कुछ एशियाई देशों में सहकारी खेती के नाम पर सहकारिता आंदोलन का प्रार्दुभाव हुआ। ठीक इसी प्रकार भारत में यह आंदोलन साख के नाम पर आया। 1904 के पहले देश के किसानों को साहूकारों तथा जमींदारों पर ऋणों के लिए निर्भर रहना पड़ता था क्योंकि लगातार दुर्भीक्ष के कारण ऋण लेना उनकी मजबूरी थी। छत्तीसगढ़ के किसानों की स्थिति इससे अलग नहीं थी इसी बीच पुराने रायपुर जिले के स्व. वामन बलीराम लाखे किसानों के हमदर्द के रूप में आए, वे किसानों के दुखदर्द को समझते थे, वे स्वयं पलारी जनपद के अंतर्गत कोसमंदी ग्राम के किसान थे उनके द्वारा स्थापित जिला सहकारी बैंक 2 जनवरी 2012 अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है। यह मध्यप्रदेश के जमाने से लेकर नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे बड़ा सहकारी बैंक यहां तक कि छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक से भी बड़े बैंक के रूप में उभरा है। आज इस बैंक की गणना देश के गिने- चुने जिला सहकारी बैंकों में हो रही है।
अतीत के झरोखों से
रायपुर जिला जो आज पांच जिलों (रायपुर, धमतरी, महासमुंद, बलौदाबाजार और गरियाबंद) में विभक्त है, का सहकारी आंदोलन, सहकारिता के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। इसके भू- भाग में पहले सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं थे। एक मात्र माड़मसिल्ली बांध से सिंचाई होती थी। इसी प्रकार रुद्री से भी कुछ स्थानों में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो पाता था। जिले के बहुत बड़े भू- भाग की फसल, पानी से वंचित रह जाती थी, परिणामस्वरूप पानी के अभाव तथा मानसून की अनिश्चितता के कारण यहां प्रत्येक वर्ष अकाल की स्थिति बनी रहती थी जिसके चलते किसानों को साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता था। साहूकार बहुत ही ऊंची दर पर उन्हें साख उपलब्ध कराते थे इस कारण कई बार किसानों को अपनी जमीन से हाथ भी धोना पड़ता था।
सन् 1912 के अक्टूबर माह की एक शाम राय बहादुर बंशीलाल अबीरचंद की सदर बाजार रायपुर स्थित दुकान में रोज की तरह राय साहब जे एन सरकार, राय साहब नथमल, वामन बलीराम लाखे, रतनचंद बागड़ी तथा बाबूराम दानी बैठे थे। श्री लाखे उसी दिन अपने गांव कोसमंदी से लौटे थे। उपस्थित लोगों ने श्री लाखे जी से खेती के संबंध में पूछा तो श्री लाखे जी ने कहा कि कृषकों की स्थिति ईश्वर ही सुधार सकता है। कृषकों का कोई संगठन नहीं है, उनकी आर्थिक क्षमता समाप्त हो चुकी है, ब्रिटिश शासन लूटखसोट में पूंजीपतियों और जमींदारों के साथ हैं और जनता मूकदर्शक बनी हुई है। बस बैठक का दौर कृषकों की समस्याओं की ओर मुड़ गया। श्री लाखे जी के इस कथन पर राय साहब जे एन सरकार ने कहा कि यदि यहां एक सहकारी बैंक की स्थापना हो जाए तो कृषकों को उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है। इस विषय को लेकर उनकी बैठकों में यह विषय केंद्र बिन्दु बन गया। इस तरह एक सहकारी बैंक की स्थापना के लिए सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी मिलकर धन संग्रह पर विचार करने लगे। अंत में यही निर्णय लिया गया कि पहले एक सहकारी बैंक का पंजीयन कराया जाए।
बैंक पंजीयन की पहल
बैंक के इतिहास में 12 दिसंबर 1912 स्वर्णिम दिवस था जिस दिन रायपुर को-आपरेटिव सेंट्रल बैंक के नाम से पंजीयन के लिए पंजीयक सहकारी संस्थाएं सी.पी.एंड बरार को डिप्टी कमीशनर रायपुर के माध्यम से आवेदन पत्र जबलपुर प्रेषित किया गया जिसे स्वीकार करते हुए दिनांक 2 जनवरी 1913 को पंजीयक द्वारा पंजीयन क्रमांक 01 प्रदान किया गया।
पंजीयन में अगुवाई
जिनकी अगुवाई में पंजीयन की कार्यवाही हुई और जिन्होंने आवेदन पत्र पर हस्ताक्षर किए वे इस प्रकार है राय साहब, जे एन सरकार, युसूफ खान, राय साहब सेठ नथमल, राय बहादुर बंशीलाल अबीरचंद, रतनचंद बागड़ी, फाम जी. डी. पोचा, रामदास दानी, सुंदर दास दम्मानी, आर बैरामजी, वामन बलीराम लाखे, रामगोपाल, राय साहब ठक्कर बार एट ला, गिरधारी लाल पुरोहित, बाबूराम दानी, रामरतन तिवारी और बद्रीप्रसाद।
विभूतियों का सानिध्य
उपरोक्त विभूतियों के अतिरिक्त जिन महानुभावों ने किसी न किसी रूप से चाहे अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष की हैसियत से अथवा अवैतनिक सचिव या संचालक के रूप से बैंक के संचालन एवं विकास में सहयोग दिया है वे हैं पंडित रविशंकर शुक्ल, महंत लक्ष्मीनारायण दास, आर एन मोकासदार, कृष्णकुमार चौबे, पी.एम. देवस्थले, गोविन्दलाल गुप्ता, राजेन्द्र कुमार चौबे, मुन्नालाल शुक्ल, बृजलाल वर्मा, सुरेन्द्र दास, सोमप्रकाश गिरी, शिवाजी राव क्रिदत्त, बृजलाल शर्मा, राखी साहू, कवल सिंह, पुरुषोत्तम लाल कौशिक, रामलाल चंद्राकर, विशनलाल चंद्राकर, मोहनलाल चौधरी, महेन्द्र बहादुर सिंह, राधेश्याम शर्मा, सत्यनारायण शर्मा एवं मोहम्मद अकबर। वर्तमान में योगेश चंद्राकर एवं उनके संचालक मंडल के नेतृत्व में बैंक का संचालन हो रहा है।
कार्यशील पूंजी
बैंक के पंजीयन के पश्चात इसकी कार्यशील पूंजी में अभिवृद्धि की ओर ध्यान दिया जाने लगा। प्रारंभ में रुपए 43735 की कार्यशील पूंजी थी। शनै: शनै: उसमें वृद्धि होती गई। जनप्रतिनिधियों का समय- समय पर मार्गदर्शन और कर्मचारियों तथा अधिकारियों की कठोर मेहनत से स्व. लाखेजी का रोपा हुआ पौधा एक विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है, फलस्वरूप आज इसकी कार्यशील पूंजी लगभग 17 अरब के जादुई आंकड़ों को छूने लगी है।
सदस्यता एवं ऋण वितरण
बैंक के अंतर्गत जिन उद्देश्यों को लेकर सहकारिता आंदोलन का प्रार्दुभाव हुआ उसको ध्यान में रखकर गांव- गांव आंदोलन का विस्तार होने लगा। ग्राम स्तर पर सहकारी साख समितियां गठित की जाने लगी और उन्हीं संस्थाओं के माध्यम से कृषकों को साख उपलब्ध किए जाने लगा। सहकारी समिति के संगठन का कार्य 4 मई 1913 के पश्चात ही प्रारंभ हुआ। प्रथम वर्ष 72 लाख सहकारी संस्थानों का गठन हुआ जिसके 1019 कृषक सदस्यों को रुपए 27013 का ऋण वितरण किया गया। धीरे- धीरे प्रतिवर्ष साख सहकारी संस्थाओं की संख्या बढ़ती गई। सन् 1920 में इसकी संख्या 289, 1935 में 359, 1940 में 527 और 1971 में 953 हो गई। इसी बीच सहकारी संस्थाओं को आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाने के उद्देश्य से राज्य शासन द्वारा इन सहकारी संस्थाओं को पुर्नगठित किया गया फलस्वरूप सहकारी संस्थाओं की संख्या 340 हो गई। बैंक के कार्य क्षेत्र में सभी पांचों जिले के राजस्व ग्राम 3986 आते हैं जिसके 612651 कृषक तथा अकृषक सदस्य हैं। 30 नवम्बर 2011 की स्थिति में रुपए 627.65 करोड़ का ऋण वितरण किया गया है।
लाभांश वितरण
यह बैंक प्रारंभ से ही अनुभवी लोगों के मार्गदर्शन में रहा है इसलिए प्रतिवर्ष यह लाभ की स्थिति में रहा है तथा अपनी सदस्य संस्थाओं को लाभांश का वितरण किया है। सन् 1914 में इस बैंक ने 5.50 प्रतिशत लाभांश का वितरण किया था। लाभांश की दर प्राप्त शुद्ध लाभ के आधार पर घटते- बढ़ते रहा है किन्तु प्रतिवर्ष लाभांश की घोषणा होती रही है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली
पूरे देश में उचित मूल्य पर उपभोक्ताओं को सहकारिता के माध्यम से खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की चर्चा सारे देश में है। कई राज्य की सरकारों ने इसे खूब सराहा है तथा यहां के सिस्टम को अनुकरणीय बताया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सफल संचालन में इस बैंक का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वर्ष 2011-12 के लिए इस कार्य के लिए 1382 उचित मूल्य की दुकानों के लिए 340 सहकारी संस्थाओं को 7.53 करोड़ की साख सीमा भी स्वीकृत की गई है।
राज्य शासन के साथ सहयोग
चाहे कृषकों को तीन प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने की बात हो अथवा छात्रों को छात्रवृत्ति वितरण करने की बात हो अथवा मनरेगा योजना के क्रियान्वयन की बात हो बैंक का सहयोग शासन के साथ सदा रहा है साथ ही छत्तीसगढ़ शासन का कुशल मार्गदर्शन एवं नेतृत्व इस बैंक को मिलता रहा है।
समर्थन मूल्य पर धान खरीदी
इस क्षेत्र की मुख्य फसल धान है। कृषकों को धान का लाभकारी मूल्य मिले, कोई बिचौलिया उसका शोषण न कर सके इस उद्देश्य को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों के धान का दाना- दाना समर्थन मूल्य के अंतर्गत विगत वर्षों से खरीदा जा रहा है। बैंक द्वारा पूरी निष्ठा, लगन और मेहनत से इस कार्य को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। इसके लिए 506 धान खरीदी केंद्रों के माध्यम से विगत वर्ष 19.62 लाख मेट्रिक टन धान खरीदा गया है जो कि राज्य की कुल धान उपार्जन का 40 प्रतिशत है।
छत्तीसगढ़ राज्य पुरस्कार
सहकारिता के क्षेत्र में अत्यंत सुखद अवसर उस समय आया जब वर्ष 2009 में राज्योत्सव के अवसर पर छत्तीसगढ़ के महामहिम राज्यपाल द्वारा राज्य के यशस्वी मुख्यमंत्री की उपस्थिति में ठाकुर प्यारेलाल सम्मान (सहकारिता सम्मान) इस बैंक को प्राप्त हुआ। नि:संदेह यह बैंक इस सम्मान का हकदार था।
2 जनवरी 2012 को शताब्दी वर्ष में इस बैंक का मंगल प्रवेश प्रदेश की सहकारिता क्षेत्र के गौरव की बात है। सम्पूर्ण भारत के जिला सहकारी बैंकों में इसका सातवां स्थान है। नि:संदेह यह बैंक आने वाले वर्षों में पूरे देश में सहकारिता के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान बनाएगा।

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