उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Oct 23, 2010

अहसास

अहसास
- मुकुंद कौशल 

उसकी उंगली थामो जिसको चलने का अभ्यास न हो।
उसके आंसू पोंछो जिसका साया उसके पास न हो।।

ये महलों में रहने वाले घर का मतलब क्या जानें,
उनसे पूछो, जिसका अपना कोई भी आवास न हो।।

लोग जिये जाते हैं लेिकन ये जीना भी क्या जीना,
अर्थ नहीं जीने का जब तक मक्सद कोई खास न हो।

यह बेहोश युवक तो शायद पढऩे- लिखने वाला है,
अच्छी तरह टटोलो इनकी जेबों में सल्$फास न हो।

ऐसी भी तो हो सकता है आसमान छूने वालों,
बौने लोगों की ऊंचाई का तुमको अहसास न हो।

बिन 'कौशल' के कुरुक्षेत्र का चक्रव्यूह तोड़ेगा कौन
राम नहीं होगा वह जिसके जीवन में वनवास न हो।

पता- एम-516, पद्नाभपुर (दुर्ग) 491 001, mobile: 93294 16167
--------------------------------------------------------------------------
तुक्तक कथा
- गिरीश बख्शी 
नेताजी की सलाह
उस दिन
न मालूम,
ऐसी क्या बात हो गई
कि शान्त सुशील किशोर
एक दम चिढ़ गया।
और एक नेताजी से
भिड़ गया।
किशोर बोला- 'देखिए!
यदि प्रतिबंध लगाना हो
तो भ्रष्टाचार पर लगाइए।'
नेताजी मुसकुराये,
बोले- भ्रष्टाचार कहां है,
पहले हमें तो दिखाइए!
किशोर कड़वी हंसी हंस उठा
आप? और पूछते हैं,
भ्रष्टाचार कहां हैं?
भ्रष्टाचार हर कहीं है।
आपके साथ खड़ा ये यहां है।
'पलक झपकते वह लड़का,
नौकरी पा गया,
और हमें
नौकरी ढूंढ़ते- ढूंढ़ते
रोना आ गया।'
नेताजी ने बड़े स्नेह से
उसके कंधे पर हाथ रखा,
फिर कहा-
'किशोर!
देखो, मेरी ओर!
इस उमर में तुम्हें
यूं नहीं रोना चाहिए!
तुम्हें भी किसी नेता का
भतीजा होना चाहिए!'
पता: ब्राह्मण पारा, राजनांदगांव (छ.ग.) 491 441

No comments: