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Oct 15, 2008

कलात्मक और सुरुचिपूर्ण

कलात्मक और सुरुचिपूर्ण

उदंती.com का पहला अंक देख कर तबियत खुश हो गई। कलात्मकता और रचनात्मकता का अनुकरणीय समन्वय इसे संग्रहणीय बनाता है। आपने लिखा है कि पत्रिका का प्रकाशन कई वर्षों से आपका सपना था। आपने अपने सपने को बहुत ही मनमोहक ढंग से साकार करने के साथ- साथ यह भी प्रमाणित किया है कि यदि सच्ची लगन हो तो सपने साकार भी होते हैं। रचनातमक और कलात्मक प्रतिभा के लिए सपने पोषक तत्व होते हैं। विनोद साव और हरिहर वैष्णव के आलेख तथा सूरज प्रकाश का संस्मरण अच्छे लगे। सुरुचिपूर्ण संपादन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

-प्रताप सिंह राठौर, अहमदाबाद से

नदी की तरह प्रवाहमान हो

यह पत्रिकाओं की बाढ़ के बीच भी अच्छी पत्रिकाओं की आवश्क्यकता बराबर बनी हुई है, आशा है उदंती इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी, प्रारूप देखकर उम्मीद जगती है, आपने विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत विषय संयोजन बेहद उपयोगी ढंग से किया है, पत्रिका के प्रथम सार्थक अंक के लिए बधाई, और भाविष्य के लिए शुभकामनाएं

-अजय, शिलांग से

आखिर काहे की कमी है

छत्तीसगढ़ के पास आखिर काहे की कमी है। समंदर नहीं है लेकिन समंदर जैसी विशालकाय नदियां हैं, हिमालय नहीं हैं लेकिन उतने ही खूबसूरत और ऊंचे पाट हैं। शिमला नहीं है लेकिन शिमला से ज़्यादा ठंडी हो जाने वाली चिल्पी घाटी है, बदरी केदार नहीं हैं लेकिन मंदिरों की भला कहां कमी हैं। नदियां हैं, पहाड़ हैं, पठार हैं, सैकड़ों साल पुराने मंदिर हैं, जंगल हैं जानवर हैं, छलकपट से दूर आदिवासी हैं और सबसे बड़ी बात यहां की हवा में ऑक्सीजन है। बस नहीं है तो सरकार के पास छत्तीसगढ़ को दुनिया के सामने तरीके से पेश करने की इच्छाशक्ति।
- अजय शर्मा, नई दिल्ली से
अगस्त अंक में विनोद साव के पर्यटन नीति संबंधित लेख देश के नक्शे पर छत्तीसगढ़ कहां के संदर्भ में


नदी की तरह प्रवाहमान हो

यह पत्रिका उदंति नदी की तरह प्रवाहमान हो। हिंदी की सेवा के लिए अभी बहुत जगह खाली है। निश्चित ही इस पत्रिका के लिए हिंदी-जगत में बहुत स्थान है और वह सफलता के बहाव में बहेगी। शुभकामनाएं।
- चंद्रमौलेश्वर प्रसाद, हैदराबाद से


दो हाथो से लिखना कठिन

कहा जाता है दो पैरो से चलना आसान होता है पर दो हाथो से लिखना कठिन। मानव मन को समझने के इस प्रयास का हृदय से स्वागत है।
- दीपक, कुवैत से


माटी की गंध का अहसास

उदंती.com का पहला अंक देख कर अच्छा लगा। अपनों से दूर रहते हुए भी इसे पढ़ते हुए अपनी धरती की माटी की गंध का अहसास हुआ। रचनाओं के बेहतर समायोजन और खूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई।
-प्रियंका स्याल, मैकल्सफील्ड, यू. के. से

1 comment:

Rajendra Singh Kunwar Fariyadhi said...

udanti.com per ati uttam samagari padane ko mili, iska abhari hun,
Dhanyabad,
Rahendra Singh Kunwar 'Fariydhi'
village- sirsed ( Karakot)
post- Kafana,
Distt- Tehri Garhwal,
Via- Kriti Nagar,
Tahasil- Devparyag,
Uttranchal-249161
E-mail:fariyadhi2000@rediffmail.com