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Oct 1, 2025

नज़्में: दीवाली के दीप जले

  - फ़िराक़ गोरखपुरी





नई हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले

शाम सुहानी रात सुहानी दीवाली के दीप जले


धरती का रस डोल रहा है दूर-दूर तक खेतों के

लहराए वो आँचल धानी दीवाली के दीप जले


नर्म लबों ने ज़बानें खोलीं फिर दुनिया से कहन को

बेवतनों की राम कहानी दीवाली के दीप जले


लाखों-लाखों दीपशिखाएँ देती हैं चुपचाप आवाज़ें

लाख फ़साने एक कहानी दीवाली के दीप जले


लाखों आँसू में डूबा हुआ खुशहाली का त्योहार

कहता है दुःखभरी कहानी दीवाली के दीप जले


कितनी मँहगी हैं सब चीज़ें कितने सस्ते हैं आँसू

उफ़ ये गरानी ये अरजानी दीवाली के दीप जले


मेरे अँधेरे सूने दिल का ऐसे में कुछ हाल न पूछो

आज सखी दुनिया दीवानी दीवाली के दीप जले


जुग-जुग से इस दुःखी देश में बन जाता है हर त्योहार

रंजोख़ुशी की खींचा-तानी दीवाली के दीप जले


रात गये जब इक-इक करके जलते दीये दम तोड़ेंगे

चमकेगी तेरे ग़म की निशानी दीवाली के दीप जले


जलते दीयों ने मचा रखा है आज की रात ऐसा अँधेर

चमक उठी दिल की वीरानी दीवाली के दीप जले


कितनी उमंगों का सीने में वक़्त ने पत्ता काट दिया

हाय ज़माने हाय जवानी दीवाली के दीप जले


लाखों चराग़ों से सुनकर भी आह ये रात अमावस की

तूने पराई पीर न जानी दीवाली के दीप जले


लाखों नयन-दीप जलते हैं तेरे मनाने को इस रात

ऐ किस्मत की रूठी रानी दीवाली के दीप जले


ख़ुशहाली है शर्ते ज़िंदगी फिर क्यों दुनिया कहती है

धन-दौलत है आनी-जानी दीवाली के दीप जले


बरस-बरस के दिन भी कोई अशुभ बात करता है सखी

आँखों ने मेरी एक न मानी दीवाली के दीप जले


छेड़ के साज़े निशाते चिराग़ां आज 'फ़िराक़' सुनाता है

ग़म की कथा ख़ुशी की ज़बानी दीवाली के दीप जले


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