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Oct 1, 2025

कविताः आत्मदीप

  - हरिवंश राय बच्चन







मुझे न अपने से कुछ प्यार,

मिट्टी का हूँ, छोटा दीपक,

ज्योति चाहती, दुनिया जब तक,

मेरी, जल-जल कर मैं उसको देने को तैयार ।


पर यदि मेरी लौ के द्वार,

दुनिया की आँखों को निद्रित,

चकाचौध करते हों छिद्रित

मुझे बुझा दे बुझ जाने से मुझे नहीं इंकार ।


केवल इतना ले वह जान

मिट्टी के दीपों के अंतर

मुझमें दिया प्रकृति ने है कर

मैं सजीव दीपक हूँ मुझ में भरा हुआ है मान ।


पहले कर ले खूब विचार

तब वह मुझ पर हाथ बढ़ाए

कहीं न पीछे से पछताए

बुझा मुझे फिर जला सकेगी नहीं दूसरी बार ।

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