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Oct 1, 2025

कविताः क्या रखा है अब इन बातों में

  -डॉ. कविता भट्ट शैलपुत्री






थी अव्यक्त- सी, कुछ पीड़ाएँ
जीवन- रथ सी कुछ उपमाएँ
गत  जीवन के मौन मुखर हो
प्रायः  मुझे जगाते हैं रातों में
 
माँ! तुम मुझसे क्यों कहती हो-
क्या रखा है अब इन बातों में।
 
जो कुछ अपने थे या सपने थे
जिया विकल क्यों उन्हें पुकारे
निशा का ये जाने कौन प्रहर हो
बालू का घर न टूटे बरसातों में।
 
माँ! तुम मुझसे क्यों कहती हो
क्या रखा है अब इन बातों में।
 
प्रेम से प्रतिक्षण उसे बिठाया
प्यार से सिर भी था सहलाया
पग पखारे, टीका भोग लगाया
फिर क्रूर घड़ी क्यों आघातों में।
 
माँ! तुम मुझसे क्यों कहती हो
क्या रखा है अब इन बातों में।
 
क्यों मुझे निरंतर छेड़ रही हैं
गवाक्षों से ये कुटिल वेदनाएँ
द्वार खड़ी ये मुझे ही पुकारें
प्राण पखेरू भौंरे -से पातों में
 
माँ! तुम मुझसे क्यों कहती हो
क्या रखा है अब इन बातों में ।

16 comments:

  1. Anonymous06 October

    बहुत सुंदर कविता । सुदर्शन रत्नाकर

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  2. मार्मिक कविता। हार्दिक बधाई

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  3. ज्योत्स्ना प्रदीप29 October

    बहुत खूब!

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  4. डॉ सुनीता वर्मा29 October

    मॉं के द्वारा जाने दो, कहना कवयित्री की आध्यात्मिक गहराई को प्रदर्शित करती है। आख़िर यह जीवन भी तों चले जाने वाला है चाहे जैसा भी हो।

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति 💝

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  6. बहुत सही ....आज का सच ...

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  7. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  8. Mrs Sushila Rana29 October

    बहुत ही मार्मिक कविता। माँ हमारी सोच, हमारे विचार, संवेदनाओं और संस्कारों में जीती है जीवन भर।
    हृदय स्पर्शी कविता के लिए बधाई डॉक्टर कविता🌹💐

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  9. हृदयस्पर्शी कविता

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  10. Anonymous29 October

    बहुत सुंदर रचना

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  11. डॉ मीनू खरे29 October

    बहुत सुंदर रचना

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  12. डॉ. कनक लता29 October

    बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण कविता..

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  13. हृदयस्पर्शी, मनोरम रचना!

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  14. बालू का घर न टूटे बरसातों में।

    मन को छू गई

    कितनी सुंदर भावनाएं अभिव्यक्त हुई हैं, बहुत सुंदर कविता, कविता जी। हार्दिक बधाई।

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  15. निर्देश निधि01 November

    बहुत सुन्दर रचना
    शुभकामनायें

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  16. बहुत मर्मस्पर्शी कविता

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