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Apr 1, 2025

कविताः इति आई !





- डॉ. सुरंगमा यादव

दीमकों ने खाई

सी नहीं पाई

पुरानी किताब

बड़े-बड़े जिल्दसाजों की

कला भी काम न आई

सहेजा बहुत

 सचेत हाथों ने

पीले पन्नों की टूटन

पर रुक न पाई

बेमन विसर्जन की बेला

अब लगता आई

हा! इति आई।

2 comments:

Anonymous said...

सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ।

Sonneteer Anima Das said...

वाह्ह... अद्भुत बिंब से अलंकृत यह कविता शरीर से आत्मा को पृथक करती है।