- डॉ. सुरंगमा यादव
दीमकों ने खाई
सी नहीं पाई
पुरानी किताब
बड़े-बड़े जिल्दसाजों की
कला भी काम न आई
सहेजा बहुत
सचेत हाथों ने
पीले पन्नों की टूटन
पर रुक न पाई
बेमन विसर्जन की बेला
अब लगता आई
हा! इति आई।
सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ।
वाह्ह... अद्भुत बिंब से अलंकृत यह कविता शरीर से आत्मा को पृथक करती है।
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सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ।
वाह्ह... अद्भुत बिंब से अलंकृत यह कविता शरीर से आत्मा को पृथक करती है।
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