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Jan 1, 2025

दोहेः मन में रहे उजास...

  -  सुशीला शील स्वयंसिद्धा 

1. 

हमने तेरा ज़िंदगी, खूब किया शृंगार।

तेरा भी तो फ़र्ज है, तू भी मुझे सँवार।।

2. 

आते-जाते साल से, पूछूँ यही सवाल।

सीधी क्यों होती नहीं, टेढ़ी जग की चाल।।

3. 

बदल गया है साल जी, बदल गई तारीख।

पाठ पढ़ाए खूब ही, खूब सिखाई सीख।।

4.

छोड़ गया यह वर्ष कुछ, खट्टी-मीठी याद।

कुछ छीनीं कुछ दे गया, रिश्तों की बुनियाद।।

5.

 लाना नूतन वर्ष तुम, हर्ष और उल्लास।

 जीवन में शुचिता रहे, मन में रहे उजास।।

6.

पलक सजे सपने नए, बाँध नई उम्मीद।

नए साल तू सुन ज़रा, खुशियों की हो दीद।।

7.

नए साल से कर रहा, दिल इतना इसरार।

ग़ुल हों ग़ुल- सा साथ हो, चुभे न कोई खार।।

8.

जीवन हमने यूँ जिया, ज्यों नदिया के पाट।

कुछ कदमों की दूरियाँ, जीवन भर की बाट।।


4 comments:

Anonymous said...

शब्दों को सुंदर ढंग से पिरोकर रखने का आप का अंदाज़ कुछ निराला है, बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं, बस ऐसे ही जगमगाते रहो।

Anonymous said...

गागर में सागर भरते संदेशप्रद दोहे..कलम उत्त
रोत्तर प्रगति करे.. मंगल कामनाएं

Anonymous said...

सहजता लिए हुए बहुत सुंदर दोहे। हार्दिक बधाई सुशीला जी ।सुदर्शन रत्नाकर

व्यंकट सूर्यवंशी said...

हमने तेरा जिन्दगी खूब किया श्रृंगार....
यह मन के गहराई से निकलने वाली वो अनुभूति है, जो बता रही हैं की हमने जीवन में कितना संयम रखते हुए इस जीवन को संवारा। अब बारी है हमारे इसी जीवन की कि वो हमें संवारे। अब कल्पना कीजिए कि कवीके मन में क्या चल रहा है। पिडाएं भी हो सकती हैं, भरी-भरी खुशियां भी हो सकती हैं। यहां स्थितियों पे छोडा‌ जाता है कि समय कैसे किसी के मन को टटोलता है। कवी की पराकाष्ठा को दर्शाता एक बेहतरीन दोहा।