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Jan 1, 2025

जिन्हें हम भूल गएः दो जागरण गीत

 -  पं. वंशीधर शुक्ल

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी- अवधी सम्राट- पं. वंशीधर शुक्ल, जन्म- वसंत पंचमी, सन् 1904 ई., जन्म स्थान- ग्राम मन्यौरा, लखीमपुर, पिता- पं0.छेदीलाल, रचनाएँ -मेला घुमनी, चुगल चंडालिका,कृषक विलाप, मतवाली गज़ल, राष्ट्रीय गान आदि , उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा उनकी समग्र रचनाओं का संकलन ‘ वंशीधर शुक्ल रचनावली’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया है

1. सवेरा हुआ है,

                       उठो सोने वालों! सवेरा हुआ है;

                      वतन के फकीरों का फेरा हुआ है।

जगो अब निराशा- निशा खो रही है,

सुनहली- सी पूरब दिशा हो रही है;

ऊषा की किरण कालिमा धो रही है,

न अब  कौम कोई कहीं सो रही है;

             तुम्हे किसलिए मोह घेरा हुआ है।

              उठो सोने वालों! सबेरा हुआ है।

जवानों! जगो, कौम की जान जागो,

पड़े किसलिए देश की शान जागो;

गुलामी मिटे देश उत्थान जागो,

शहीदों की सच्ची सुसंतान जागो;

         हटा दूर आलस- अँधेरा हुआ है।

         उठो सोने वालो ! सवेरा हुआ है।

उठो देवियो ! वक्त खोने न देना,

  कहीं फूट के बीज बोने न देना;

जगें जो, उन्हें फिर से सोने न देना,

कभी राष्ट्र अपमान होने न देना;

        घड़ी शुभ मुहूरत का डेरा हुआ है।

         उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।

नई रोशनी मुल्क में उग रही है,

युगों बाद फिर हिन्द- माँ जग रही है;

खुमारी बचा प्राण को भग रही है,

दिलों में निराली लगन लग रही है;

            मुसीबत से अब तो निबेरा हुआ है।

             उठो सोने वालों सवेरा हुआ है।

हवा क्रान्ति की झूमती डाली- डाली,

बदल जाने वाली है शासन- प्रणाली;

जगो देख लो कैसी रौनक- निराली,

सितारे गए, आ गया अंशुमाली;

                 घरों में, दिलों में उजेरा हुआ है।

                  उठो सोने वालो! सवेरा हुआ है।

  ( 1930 ई.)

2. उठ जाग मुसाफिर

उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहा जो सोवत है
जो सोवत है सो खोवत है
जो जागत है सो पावत है
उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहा जो सोवत है
टुक नींद से अंखियाँ खोल जरा
पल अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीति नहीं
जग जागत है तू सोवत है
तू जाग जगत की देख उडन,
जग जागा तेरे बंद नयन
यह जन जाग्रति की बेला है
तू नींद की गठरी ढोवत है
लड़ना वीरों का पेशा है
इसमे कुछ भी न अंदेशा है
तू किस गफ़लत में पड़ा - पड़ा 
आलस में जीवन खोवत है
है आज़ादी ही लक्ष्य तेरा
उसमें अब देर लगा न जरा
जब सारी दुनिया जाग उठी
तू सिर खुजलावत रोवत है।

2 comments:

शिवजी श्रीवास्तव said...

कीर्तिशेष वंशीधर शुक्ल जी के दोनों ही गीत महत्त्वपूर्ण हैं, प्रायः इन गीतों को सुना जा सकता है किन्तु इनके रचनाकार के विषय में लोग अनभिज्ञ ही रहते हैं,इन्हे प्रकाशित करने हेतु आपको धन्यवाद

Anonymous said...

बचपन में ये गीत सुनते भी थे और गुनगुनाते भी थे। फिर समय की गर्त में कहीं खो गए। आज पढ़कर अच्छा लग रहा है। गीत प्सुरक करने के लिए धन्यवाद।दर्शन रत्नाकर