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Aug 1, 2024

तीन लघुकथाएँ

  -  अनूप मणि त्रिपाठी

1- नारे

दो लाशें पोस्टमार्टम के लिए रखी गई थीं।

“तुम यहाँ कैसे आईं!”

“भीड़ ने घेर लिया था और तुम!”

“मैं भी भीड़ में फँस गई थी!”

“तुमने उन्हें कुछ कहा नहीं!”

“कहा न! और तुमने!”

“कहा! कसके कहा!”

“क्या कहा!”

“लोकतंत्र! और तुमने!”

“संविधान!”

2- कलाकार

मैं एक सभागार में हूँ। देख रहा हूँ कि एक शेर मंच की ओर बढ़ रहा है। उसे उसके लेखन हेतु पुरस्कार मिल रहा है। वह  बहुत ठसक से मंच की ओर बढ़ रहा है। मुझे उम्मीद थी कि शेर है,  सिंहावलोकन अवश्य करेगा। मगर वह नहीं करता है। अब शेर मंचासीन है। पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्र, प्रतीक चिह्न, चेक वगैरह मिल जाने और फोटो उतर जाने के बाद संचालक शेर से दो शब्द बोलने का अनुरोध करता है। शेर माइक के पास आता है। अपना बड़ा-सा  मुँह खोलता है और शेर के मुँह से निकलता है म्याऊँ। सब ताली बजाने लगते हैं, मगर मेरी हँसी छूट जाती है।

शेर लपककर मेरे पास आता है। मुझसे कहता है, “तुमने अभी मेरी दहाड़ नहीं सुनी!”

मैं हँसते हुए कहता हूँ, “अभी सुनी न!” वह कुछ झेंपता है।

वह विनम्र बनने की कोशिश करता है और कहता है,  “तुम गलत समझ रहे हो! मैं मिमिक्री कर रहा था!”

मैं अपनी हँसी रोककर कहता हूँ, “गलत तो तुम समझ रहे हो दोस्त! अब तक जो तुम कर रहे थे, दरअस्ल वह मिमिक्री थी।”

3- लॉ  और ऑर्डर

लॉ और ऑर्डर बैठे टीवी देख रहे हैं। दोनों अक्सर टीवी देखते हुए पाए जाते हैं। इन्हें न्यूज एंकर से ही पता चलता कि उन्हें क्या करना है।  तो इस वक़्त भी दोनों टीवी देख रहे हैं ।  

“कानून सबके लिए बराबर है!”  कैमरों से घिरा,  खच! खच! फोटो खिंचवाता एक बड़ा नेता बोलता है।

“सुन लिये गुरु!” लॉ बोला।

“बरसों से सुन रहे हैं! कानूनी छाँट रहे हैं!” ऑर्डर ने जवाब दिया।

“अगर कानून सबके लिए बराबर होता, तो सबसे पहले ये नेता जी ही गिरफ्तार होते!”  लॉ गुस्से से बोला।

“काहे बे!” ऑर्डर ने चौंकते हुए पूछा।

“अफवाह फैलाने के जुर्म में!  औऊर का!”  लॉ ने जवाब दिया।

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