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Aug 1, 2023

सॉनेटः श्रावण की शुष्कता


 





-   प्रो. विनीत मोहन औदिच्य

नैराश्य की हाला अंतस में जब प्राणों तक भर जाती है

श्रावण की शुष्कता उदासीन चंचल मन को भरमाती है

जिससे चाहा सुख अंजुरि भर उसने क्यों कर यूँ  ठुकराया

घनघोर उपेक्षा से आहत पागल मनवा ये भरपाया।


है उथल-पुथल इस जीवन में है ग्रस्त व्याधियों से ये तन

और व्यथा की सरिता में डूबा रहता है मेरा भावुक मन

भोगी मैंने पीड़ा अनंत पर मौन सदा को साध लिया

कड़वाहट को नित पी- पीकर जीवन कैसा भरपूर जिया?


हँस हँस कर जीना सीख लिया अब तो मुझको विश्रांति मिले

क्या समय कभी वो आएगा जब आशा का कोई पुष्प खिले?

कब होगा पुण्य उदय मेरा, सोया सा भाग्य मुस्काएगा ?

कोई  मेरा प्रियतम बनकर , आ मुझको गले लगाएगा ?


हो घना तमस जब चहुँ दिस में तब लगे शून्यता ही प्रियकर

किस किस का मैं प्रतिकार करूँ अब तुम्ही बता दो हे प्रियवर!

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(विभागाध्यक्ष, अंग्रेजी ), ग़ज़लकार एवं सॉनेटियर, सागर, मध्यप्रदेश

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