- अमृता अग्रवाल
हाथ में चाय का कप,
और
तेरा फोन आना,
मुस्कुराकर पूछना -कैसी हो?
मेरा खिलखिलाना
हँसकर बोल पड़ना,
तुम्हारे जैसी हूँ।
उस पर एक और हँसी
आकाश को अपनी लालिमा में,
समेटता सूरज
मुझसे कह रहा हो, देख!
मैं भी शामिल हूँ तेरे वार्तालाप में,
गवाह बनकर खड़ी है,
चिड़ियों की चहचहाहट,
कौओं का बिजली के तार पर झूलना।
साथ ही,
मेरा नंगे पाँव छत पर टहलना,
तेरी बातों को गौर से सुनना,
कहीं -कहीं बीच में मेरा टोकना
और,
तेरा हँस देना।
दोस्त, तेरी दोस्ती को,
मेरा हार्दिक अभिनंदन।
सम्पर्कः नेपाल (जिला: सर्लाही) amrita93agrawal@gmail.com
2 comments:
मन को छूती बहुत सुंदर रचना।बधाई अमृता अग्रवाल जी
वाआआआआआह
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