इस बार पूरा अप्रैल माह बरसाती फुहारों के कारण आषाढ़ सा भरमाता रहा, तपती धरती पर टप टपा टप कर पड़ती बूँदों का संगीत, उनकी सौंधी गंध सबका मन भी जैसे भीगा-भीगा- सा हो जाता है । ऐसे ही एक दिन बहुत अच्छी बारिश के बाद मैं अपनी छत पर खड़ी पीछे एक निर्माणाधीन मकान में चौकीदार के बच्चों को खेलता देख रही थी, कॉलम के बड़े गड्ढों में भरे पानी में गिट्टी फेंकते खुश होते उन भाई बहन को देखते-देखते अचानक मैं सोचने लगी कि अगर द्रोणिका के असर से बारिश न हुई होती, तो रायपुर तो अब तक कैसा तप रहा होता। प्रकृति ने भी वर्षा नामक कैसा सुंदर उपहार दिया है। बारिश के पानी से भरे गड्ढों को देखकर एक बात और याद आ गई। बात नब्बे के दशक की है- बेमेतरा में नल से आने वाले पीने के पानी से दाल नहीं गलती थी। हमारे हैंडपम्प का पानी सूख चुका था, सो हम पड़ोस के बोर से पानी लाकर काम चलाते थे। उन्हीं दिनों जब बारिश होती, तो माँ झट किसी बर्तन-भगोने में वो पानी इकट्ठा कर लेती ओर जब तक बारिश से सहेजा हुआ पानी हमारे पास होता, हम अमीर होते, पड़ोस में माँगने जो नहीं जाना पड़ता।
सचमुच अगर बारिश से मिलने वाला अधिकांश पानी हम सहेज लें, तो पानी की समस्या ही न रहे। अखबार में आए दिन पानी की किल्लत की खबरों को पढ़कर आज से अधिक आने वाले कल की चिंता सताती है। हम मैदानी भागों में बसे लोग प्राकृतिक आपदाओं से परे, सुविधाओं में रहने वाले प्राकृतिक संसाधनों जैसे पानी का दुरुपयोग कुछ अधिक ही कर जाते है ।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का भूजल स्तर साल दर साल घट रहा है. केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक रायपुर में पिछले 10 सालों के दौरान भूजल स्तर तेजी से नीचे गिरा है. हर साल रायपुर का औसत जल स्तर 1 मीटर नीचे जा रहा है, जो राजधानी में रहने वालों के लिए अलार्म की स्थिति है. अगर यही हालात रहे, तो आने वाले दिनों में लोगों को ग्राउंड वाटर नसीब नहीं होगा. राजधानी की बढ़ती आबादी ने जमीन के भीतर के पानी को भी नहीं बख्शा। हालात ये है कि धीरे-धीरे भूजल स्तर नीचे चला जा रहा है और रायपुर सीमेंट और कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया है। यहाँ के तालाब सिकुड़कर गड्ढों में तब्दील हो गए हैं और अधिकतर कुओं को पाट दिया गया। किसी समय तीन सौ तालाब वाली राजधानी अब पानी के लिए त्राहि- त्राहि कर रही है। नतीजा यह हुआ कि इसका सीधा प्रभाव धरती की जल अवशोषण- क्षमता पर पड़ा और बीते 10 सालों में हर साल एक से डेढ़ मीटर वॉटर लेवल नीचे जाता जा रहा है। क्या यह केवल रायपुर के संबंध में है? भू जल स्तर को लेकर पूरे देश का यही हाल होता जा रहा है। देश का भविष्य पूरी तरह से पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता पर टिका हुआ है, फिर भी हम हैं कि अब तक नींद से नहीं जागे। जिसे पानी मिल रहा है, उसके लिए सब ठीक है। बाकी किसकी प्यास बुझ रही है, किसकी नहीं, इससे किसी का कोई लेना देना नहीं। महानगरों में हालात बहुत मुश्किल होते जा रहे हैं। दिन-ब-दिन पानी की समस्या गरीब जनता को शहर छोड़ने पर मजबूर कर रही है। ये अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले 5 सालों में पानी की समस्या एक विकराल रूप ले लेगी। सवा सौ अरब की आबादी वाले देश में पानी की किल्लत किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर देती है और पीने के पानी की बात करें, तो लगभग हर शहर में पानी के टैंकर के पीछे बाल्टी और ड्रम लिये लोगों की लंबी कतारें लगती हैं। बीते सालों की तरह इस साल भी सामान्य से कम बारिश का अनुमान लगाया जा रहा है। देश के लगभग सभी इलाकों में ठीक-ठाक बारिश होती है। इसके बावजूद देश में हर जगह का जलस्तर काफी तेजी से नीचे गिर रहा है। फिर हम पानी को बचाने के लिए गंभीर क्यों नहीं हैं? हम पानी के लिए पारंपरिक जल स्रोतों से अलग नए विकल्पों के बारे में क्यों नहीं सोचते?
कौन बनेगा करोड़पति के कर्मवीर विशेष एपिसोड में बैंगलोर निवासी ए आर शिवकुमार से मिलवाया था जो लगभग 22 वर्षों से केवल वर्षाजल संग्रह कर उसी का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं। विजयनगर बेंगलुरु में निर्मित उनका घर ‘सौरभ’ 1994 से पानी के लिए केवल वर्षा के संगृहीत जल पर ही निर्भर है
असल में शिवकुमार जी का पूरा जीवन पर्यावरण के मामले में बहुत ही प्रेरक है। आइए एक नजर उनके काम पर डालते हैं। सन्1994 -95 के दौरान जब वे अपना घर बना रहे थे, तब उनके दिमाग में यह खयाल आया कि बारिश का पानी हम बेकार क्यों होने देंते हैं? उन्होंने सोचा कि कोई ऐसा उपाय खोजा जाए कि जिससे बारिश का पानी बेकार न जाए और उनके काम में लाया जा सके। इसके लिए उन्होंने खूब माथापच्ची की। सबसे पहले उन्होंने यह पता लगाने की कोशिश की कि एक साधारण परिवार में कितने पानी की आवश्यकता होती है? जब वे जानकारियाँ जुटा रहे थे, तो उन्हें पता चला कि एक औसत परिवार की लगभग सभी जरूरतें 500 लीटर पानी में पूरी हो जाती हैं। WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन का डेटा भी यही कहता है। फिर उन्होंने गणित लगाना शुरू किया कि पिछले सौ सालों में बेंगलुरु शहर में कितनी बारिश हुई है। उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि बुरे से बुरे मॉनसून से पानी की सभी जरूरतें पूरी की जा सकती हैं। बस फिर क्या था शिवकुमार ने ठान लिया कि वे अपने घर में भी RWH (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) सिस्टम लगवाएँगे और बारिश के पानी से ही अपनी जरूरतें पूरी करेंगे। शिवकुमार कहते हैं, 'मैंने थोड़ी सी कैलकुलेशन की, तो मुझे पता चला कि साल में लगभग 90 से 100 दिनों की बारिश होती है। तो इससे मैं लगभग 45,000 लीटर पानी तो इकट्ठा ही कर लूँगा। यदि मैं जमीन के नीचे टैंक बनवाता, तो मुझे मोटर की जरूरत पड़ती और उसके लिए अलग से बिजली का खर्च आता।' बिजली के खर्च से बचने के लिए शिवकुमार ने ज़मीन के नीचे टैंक बनवाने की बजाय छत पर ही टैंक बनवाये हैं। उन्होंने हर टैंक में वॉटर फिल्टर लगा रखा है, जिससे पानी साफ होकर उन तक पहुँचता है। ये फिल्टर उन्होंने खुद बनाए हैं और इसका पेटेंट भी उनके पास है। पानी की एक-एक बूँद की अहमियत समझने वाले शिवकुमार के घर में एक रिचार्ज पिट भी है, जिसमें इस्तेमाल हो चुका पानी पहुँचता है और जमीन का वॉटर लेवल भी सुधरता है। आप जानकर शायद चौंक जाएँ, लेकिन यह सच है कि सिर्फ एक साल के भीतर उनके घर के आसपास का जलस्तर 200 फुट से उठकर 40 फुट तक आ गया है। उन्होंने अपने घर में मोटर भी लगवा रखी है। बारिश के पानी से जमीन का पानी रिचार्ज होता है और वे मोटर के सहारे पानी खींचकर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं।
ऐसा ही एक और उदाहरण है, जिन्होंने माइक्रो लेवल पर इसका समाधान निकाल लिया, जिसके बाद ना सिर्फ उनकी सिंचाई की जरूरत पूरी हुई; बल्कि अन्य ग्रामीण भी इसका अनुसरण कर रहे हैं। नैनीताल जिले में ग्रामीणों के समूह जनमैत्री संगठन से जल- संरक्षण का अनोखा तरीका निकाला। ड्राप पर क्रॉप की मुहिम को जनमैत्री संगठन आगे बढ़ा रहा है। जनमैत्री संगठन जल संरक्षण को लेकर अनूठी पहल कर रहा है। संगठन ने अपने क्षेत्र में बारिश के पानी के संरक्षण के लिए 10 से 30 हजार लीटर के 700 जल-संग्रह टैंक बनाए हैं। इस अभियान के तहत ग्रामीण अपनी जमीन पर गड्ढा खोदते हैं और उन्हें पॉलीथिन शीट उपलब्ध कराने का कार्य संगठन करता है। यह संगठन 2010 से जल संरक्षण की मुहिम में जुटा है। नदी के जलागम क्षेत्र को संरक्षित करने, चाल खाल खोदने, स्रोतों की सफाई करने के साथ ही जल संरक्षण को लेकर जनजागरूकता यात्राएँ और गाँवों में बैठकें भी आयोजित की जा रही हैं। शासन या सरकार अपने स्तर पर इन मुद्दों पर काम कर रहे हैं । हमें भी शिवकुमार जी की तरह निजी तौर पर कोशिश करनी चाहिए।कुछ प्राचीन उदाहरण हमें अपने पूर्वजों की दूरदर्शिता और उनके ज्ञान को लेकर गर्व का अनुभव कराते हैं, उनमें से एक है-
भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अधीन संरक्षित रायसेन किले का निर्माण तीसरी शताब्दी में हुआ था। निर्माण कराने वाले राजा रायसिंह ने राजशाही परिवार के लोगों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए छत से वर्षा जल-संग्रहण प्रणाली बनवाई। इस जल- संग्रह प्रणाली के तहत भूमि पर 50 फीट लंबा, 30 फीट चौड़ा और 20 फीट गहरा टैंक बना है। इस टैंक में करीब 30 हजार लीटर वर्षा जल एकत्र किया जा सकता है। किले की छत से वर्षा जल को टैंक तक पहुँचाने के लिए नालियाँ बनी हैं। छत से लेकर भूमिगत जल-संग्रहण टैंक की सतह तक का सम्पूर्ण निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। टैंक से ओवरफ्लो होने पर पानी करीब 500 मीटर दूर बने तालाब में पहुँचता है। यानी अतिरिक्त जल को भी यहां व्यर्थ नहीं जाने दिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि यह प्राचीन रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अब भी सफलतापूर्वक काम कर रहा है। दूसरा है- गुजरात का धौलावीरा नगर, जो वर्षा जल- संग्रहण के दृष्टिकोण से आधुनिक युग के इंजीनियरों के लिए प्रेरणास्रोत है।
क्या आपको अपने दादा, नाना की बातें याद हैं, जो कहते थे पेड़ लगाना पुण्य का काम है, कुएँ या तालाब खुदवाना पुण्य का काम है खैर पाप-पुण्य से परे अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो ये सारे काम अगली पीढ़ी के लिए प्रकृति के इन उपहारों को सँजो लेने भर का सुंदर सराहनीय प्रयास है।
माता- पिता अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए पैसे जमा करते है। वर्तमान की दशा से अनुमान लगाया जा सकता है कि एक-एक साँस और एक -एक बूँद कितनी कीमती है और हो जाएगी क्या हम कभी इतने रुपये, धन- संपत्ति जोड़ पाएँगे, जो हमारी अगली पीढ़ी का जीवन सुरक्षित कर पाए? अगर उत्तर हाँ में बदलना है, तो हमें प्राकृतिक संसाधनों को अपनी संपदा मानकर उनकी सुरक्षा उनके संरक्षण की तरफ ध्यान देना होगा। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि जो हमें प्रकृति से मिलाकर उसे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बचाकर रखा जाए । कोरोना काल के दौरान हर एक व्यक्ति इतना समझ चुका है कि पैसों से सब कुछ, नही खरीदा जा सकता। घर-घर RWH (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) का अमल इसी प्रयास की ओर एक कदम होगा तो आइए हम सब एक कदम बढ़ाएँ।
सम्पर्कः रोहिणीपुरम रायपुर
1 comment:
बेहद ज्ञानवर्धक तथा संदर्भित उदाहरणों के साथ लिखा गया महत्वपूर्ण आलेख।आपको हार्दिक बधाई दीपाली जी।
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