- हरभगवान चावला
नदी अभी बच्ची थी
हठी थी
पहाड़ पिता की गोद छोड़
निकल गई टहलने अकेली
फिर वह रास्ता भटक गई
उसने न कोई शहर देखा था
न रेलवे स्टेशन
न राजमार्ग
न कोई अमूल्य ऐतिहासिक धरोहर
न किसी से उसकी पहचान ही थी
वह कभी अपने घर नहीं लौटी
ओ मनुष्यो!
ओ पशुओ!
ओ पक्षियो!
ओ वनस्पतियो!
उस ज़िद को शुक्रिया कहो
जिसने नदी को पिता की गोद से उतारा
उस पल को भी शुक्रिया कहो
जब नदी भूली अपना रास्ता।
सम्पर्कः 406, सेक्टर- 20, सिरसा, 125055, (हरियाणा)
1 comment:
बहुत सुन्दर कविता, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
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