- रवीन्द्रनाथ टैगोर
अरे भीरु, कुछ तेरे ऊपर, नहीं भुवन का भार
अरे भीरु, कुछ तेरे ऊपर, नहीं भुवन का भार
इस नैया का और खिवैया, वही करेगा पार ।
आया है तूफ़ान अगर तो भला तुझे क्या आर
चिन्ता का क्या काम चैन से देख तरंग-विहार ।
गहन रात आई, आने दे, होने दे अंधियार–
इस नैया का और खिवैया वही करेगा पार ।
पश्चिम में तू देख रहा है मेघावृत्त आकाश
अरे पूर्व में देख न उज्ज्वल ताराओं का हास ।
साथी ये रे, हैं सब “तेरे”, इसीलिए, अनजान
समझ रहा क्या पायेंगे ये तेरे ही बल त्राण ।
वह प्रचण्ड अंधड़ आयेगा,
काँपेगा दिल, मच जाएगा भीषण हाहाकार–
इस नैया का और खिवैया यही करेगा पार ।
1 comment:
रवींद्रनाथ टैगोर जी की महत्त्वपूर्ण ,प्रेरक कविता
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