• हैंस क्रिश्चियन एंडरसन जब होटलों में ठहरते तो अपने साथ लंबी रस्सी ले कर जाते थे ताकि अगर कभी आग लग जाये तो उन्हें निकल भागने में आसानी हो।
• डी एच लारेंस के अंतिम संस्कार में केवल दस लोग मौजूद थे। उनमें से एक अल्डस हक्सले थे।
• मार्लोन ब्रेंडो टोनी मौरिसन के घनघोर प्रशंसक थे। वे अक्सर उन्हें फोन करते थे और उन्हीं की रचनाओं में से अपने पसंदीदा अंश सुनाया करते थे।
• डी एच लारेंस नंगे बदन शहतूत के पेड़ों पर चढ़ जाया करते थे। इससे उनकी कल्पना शक्ति को पंख लग जाते थे।
• अलेक्जेंडर ड्यूमा हर विधा के लिए अलग रंग के कागज इस्तेमाल करते थे। कागज का रंग बदलने से उन्हें लगता था कि उपन्यास के स्तर में फर्क आ गया है। वे अपना सारा लेखन घर की भागदौड़ के काम काज निपटाने और भोजन करने के बीच करते थे।
• सुप्रसिद्ध जेम्स बॉंड सीरीज़ के लेखक इयान फ्लेमिंग सोने के टाइप राइटर पर अपने उपन्यास टाइप करते थे।
• एडगर एलन पो अपने फाइनल ड्राफ्ट अलग अलग कागजों पर तैयार करते और बाद में उन्हें एक लंबे रोल के रूप में चिपका देते। उनके पास कैटरीना नाम की एक प्यारी सी बिल्ली थी। वे उसे अपनी साहित्यिक गुरु मानते थे। जब बिल्ली अँगड़ाई लेती, तो जनाब पो मान लेते कि मेरे शब्द बिल्ली मैडम ने एप्रूव कर दिये हैं।
• कुर्ट वोनेगट लिखने से पहले दंड बैठक लगाते थे।
क़ैफ़ी आज़मी |
• ज्यां पॉल सार्त्र की लिखने की बड़ी विचित्र शैली थी। औरों की तरह वे भी हाथ से लिखते थे; लेकिन जब लिखते- लिखते थक जाते, तो पैरों से लिखना शुरू कर देते।
• धर्मवीर भारती जब खाने के प्रति लापरवाह होने लगे और चाय ज्यादा माँगने लगें, तो पुष्पा जी समझ जाती थीं कि कोई रचना बाहर आने को है।
• वैलस स्टीवेंस चलते- चलते कागज की पर्चियों पर कविता लिखा करते थे। इस तरह से वे प्रेरणा पाते थे। बाद में ये पर्चियाँ सेक्रेटरी को टाइप करने के लिए दे दी जातीं।
• क़ैफ़ी आज़मी जब ठीकठाक कमाने लगे, तो मो ब्लांक पैन से लिखते थे। उनके पास इस कंपनी के 15 पैन थे।?
• चार्ल्स डिकेंस को नीली स्याही से मोह था। इसके पीछे कोई वहम नहीं था। उनका ये मानना था कि नीली स्याही जल्दी सूखती है और वे अपना लेखन और अपना पत्राचार स्याही सोख्ते का इस्तेमाल किया बिना आराम से कर सकते हैं।
• रूसी साहित्यकार चेखव को घड़ी सामने रखकर लिखने की आदत थी। हर वाक्य की समाप्ति पर उनकी निगाह घड़ी पर होती थी।
• जेम्स जॉयस भयंकर मूडी आदमी थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे डूबते हुए जहाज में ही लिख पाते थे। इस बात के कई प्रमाण हैं कि वे जहाजों के कप्तानों को मुँह माँगी रकम दिया करते थे कि वे अपने जहाज चट्टानों आदि से टकरा दें, ताकि जहाज डूबने लगे और वे लिख सकें।
• अमरीकी लेखक जॉन शीवर ने बहुत सी कहानियाँ केवल अंडरवियर पहने हुए लिखी थीं। उन दिनों उनके पास एक ही सूट हुआ करता था; इसलिए उसे बार- बार पहनकर उस पर झुर्रियाँ और शिकन लाकर उसे खराब करने में वे विश्वास नहीं रखते थे।
• जॉन स्टेनबैक अपनी रचनाओं के ड्राफ्ट पैंसिल से तैयार करते थे। उनकी मेज पर बेहतरीन तरीके से शॉर्प की गई गिनकर बारह पैंसिलें रखी रहतीं। अक्सर ये पैंसिलें षटकोणीय आकार में बनी होती थीं और इनसे स्टेनबैक के हाथों में गट्टे पड़ जाते थे, इससे बचने के लिए उनके संपादक उनके पास गोल वाली पैंसिलें भिजवा दिया करते थे।
विजयदान देथा बिज्जी |
• विजयदान देथा बिज्जी हरे रंग के काग़ज़ पर हरी स्याही से लिखते थे। लेखन-सामग्री के साथ उनका लगाव बच्चों जैसा हुआ करता था। जैसे पहले से एक ज्योमिट्री-बॉक्स होते हुए भी बच्चा हमेशा एक नया लेने को लालायित रहता है, वैसे ही वे हर बार नया पेन, मनपसंद हरे कागज, उम्दा किस्म की स्याही की दवातें आदि खरीदने को तैयार रहते। वे हमेशा मोटी निब वाले फाउंटेन-पेन से अक्षर जमा-जमाकर लिखने में ही आनंद अनुभव करते थे। वे दूसरों को भी ऐसे ही पेन से लिखने को प्रेरित करते थे और ऐसे पेन खरीद कर देते रहते थे।
• अमरीकी कथा लेखिका यूडोरा एलिस वेल्टी की लेखन शैली बड़ी विचित्र थी। वह लिखती जातीं और पन्ने एक के नीचे एक चिपकाती जातीं। इस तरह से एक लम्बी स्ट्रिप बन जाती। तब वे पूरी कथा को एक साथ एक नज़र में देख सकती थीं।
रांगेय राघव |
• थॉमस वुल्फ पैंसिल से पीले कागजों पर लिखते थे।
• ट्रूमेन कपोते भी पीले कागज पर लिखते थे।
• कवयित्री एमी लोवेल मर्दाने सूट और कमीजें पहनकर लिखती थीं। वे लिखते समय फीलिपीन्स के बने छोटे सिगार पीती थीं। 1915 में उन्हें लगा कि विश्व युद्ध के कारण कहीं सिगार की कमी न हो जाए, उन्होंने मनीला से अपने पसंदीदा 10,000 सिगार मँगवाए थे।
• ब्रिटिश प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल के प्रतिदिन की व्यवस्था में फेर बदल नहीं होता था। शाम 5 बजे वे सोडे के साथ थोड़ी व्हिस्की लेते थे। इसके बाद वह डेढ़ घंटे की नींद। इससे वे तरोताजा हो जाते थे। जब सोकर उठते ,तो वह नहाकर डिनर के लिए तैयार होते। शाम 8 बजे डिनर होता, जिसके बाद वे ड्रिंक्स लिया करते और सिगार पीते। ये सब देर रात तक चलता। अपनी नींद की गड़बड़़ी के कारण युद्ध के दिनों में वह अपनी युद्ध मंत्रिमंडल की बैठकें अपने बाथ-टब में बैठे हुए लिया करते थे।
• एकांतप्रिय कवयित्री एमिली डिकिन्सन अपने पूरे जीवन उसी घर में रहीं जहाँ उनका जन्म हुआ था। वे कहती थीं कि स्वर्ग खोजने उन्हें कहीं भी नहीं जाना पड़ा। वे घर भर में बिखरे कागजों पर, बनिये के बिलों के पीछे, लिफाफों पर लिखती थीं। उनके मरने पर उनकी ढेर सारी कविताएँ इसी तरह मिली थीं और वे उनकी मृत्यु के लगभग 70 बरस बाद 1955 में छपवाई जा सकी थीं। ■■ (क्रमशः)
1 comment:
अच्छा आलेख-बधाई।
मैं सिर्फ सुबह ही लिख पाता हूँ।
Post a Comment