- लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
शहर में आ कर बस गया हूँ
यहाँ के मशीनी जीवन शैली में कस गया हूँ
यहाँ रहना जरूरी है
बच्चों को पढ़ाना जरूरी है
शहर में फैक्टरी कल कारखाने हैं
गाँव में जीवनयापन के न कोई बहाने हैं
पर अक़्सर याद आता है
अपना प्यारा -सा गाँव
वो माँ के ममता की छाँव
वहाँ तो सब थे अपने
कितना था अपनापन
पर यहाँ शहर में
अपने कभी न मिलते हैं सपने
यहाँ तो लोगों को मतलब की तलाश है
किसी से सहयोग की न रहती आस है
शहर में हर तरफ शोर है
मतलब व मौकापरस्ती का जोर है
शहर में इंसानों का रेला है
हर तरह छलावों का मेला है
गाँव के दो चार किलोमीटर के दायरे में
लोग मुझे जानते हैं
यहाँ शहर में पड़ोस के लोग भी
मुझे न पहचानते हैं
माँ का चूल्हा पर रोटी बनाना
हम भाई बहन का साथ साथ
पालथी मार बैठ कर खाना
याद आता है गाँव का बीता हुआ वो जमाना
कभी- कभी मन करता है गाँव लौट जाऊँ
खेतों में जाकर फसलों से बतियाऊँ
गाँव में चौराहों पर जाने पर
पूछते थे लोग हाल चाल
शहर में बड़े बड़े माल
कुशल क्षेम पूछने का
यहाँ न किसी की है मजाल
सड़क पर तड़पते बिलखते को
उठाने का न कोई है सवाल
यहाँ तो चारों ओर बस! चालाकी
होशियारी मूर्ख बनाने का
बिछा हुआ है कंटीला जाल
अगर बच गए तो भाग्य है
वरना फंस जाना आम बात है
शहर में होता यही दिन रात है...
सम्पर्कः ग्राम- कैतहा,पोस्ट- भवानीपुर, जिला- बस्ती, 272124 (उत्तर प्रदेश)
1 comment:
बिल्कुल सही कहा आपने. हार्दिक बधाई
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