राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे और उन्हें जनमानस तक पहुँचाने का काम किया गोस्वामी
तुलसीदास ने। रामचरित मानस मूलत: धार्मिक ग्रंथ न होकर जन जन से जुड़ी जीवन संहिता
का संविधान है जिसमें हर एक के कर्तव्य तथा आदर्श कार्यकलाप का विषद वर्णन किया
गया है। पर जैसा कि अमूमन होता है नकारात्मक मानसिकता से ग्रस्त छिद्रान्वेषी लोग
अच्छे में भी बुराई को प्रस्थापित कर प्रचारित कर देते हैं। तो आइये आज चर्चा करें
एक ऐसे ही प्रसंग की।
संत तुलसी की एक चौपाई को बहुत प्रसारित कर सामाजिक विभाजन को
सुनिश्चित किया गया है जिसे नारी और शूद्र का अपमान बता कर समाज पर थोप दिया गया
है जो सर्वथा असत्य है। सकारात्मकता का पहला प्रसंग तो केवट का ही है जिसे राम ने
गले लगाया तथा जिसने राम को सरयू पार करवाया था। वह वर्णन कितना भावुक है भक्त और
भगवान या फिर राजा एवं प्रजा के बीच। केवट कुछ लेना नहीं चाहते और राम देना चाहते
हैं उतराई के एवज में आभार स्वरूप। अंतत: सीता प्रयास करतीं हैं अपनी मुद्रिका
केवट सम्मान के प्रति समर्पण कर, लेकिन उसे भी वह
स्वीकारता नहीं कर्तव्य परायणता के परिप्रेक्ष्य में।
दूसरा प्रसंग है वनवासिनी शबरी का जिसके जूठे बेरों का राम ने
प्रेमपूर्वक रसास्वादन किया वर्ण, वर्ग भेद त्यागकर।
सबसे बड़ी बात तो यह थी कि जो लाभ ऋषि मतंग को सुलभ नहीं हो पाया वह शबरी को सहज ही
मिल गया। भावुक बात यह भी कि राम अपने पैरों चलकर लक्ष्मण, सीता सहित स्वयं उसके द्वार पधारे।
यहीं एक बात और बड़ी मार्मिक है तथा वह यह कि जब शबरी ने राम से कहा
कि यदि रावण का संहार न करना होता तो आप यहाँ कैसे आते और मैं असहाय भीलनी कैसे
आपसे मिल पाती। तब राम ने जो कहा वह भारत को एकता में समाहित करने का सबसे सुंदर
सूत्र है। राम ने कहा – रावण से संग्राम तो मात्र एक बहाना
है। यह काम तो वीर हनुमान एक पल में कर सकने में समर्थ हैं। उसे धराशायी करने में
उन्हें एक पल भी नहीं लगेगा। मेरा उद्देश्य तो तुम और अपने अन्य बंधु बाँधवों से
मिलना था। यदि ऐसा न होता तो भला मैं क्यों अपने पैरों चलकर अपनी भारत एकता यात्रा
पर निकलता।
सो कुल मिलाकर बात का मन्तव्य स्पष्ट है। सुंदर कांड में वर्णित है
कि तीन दिन की प्रतीक्षा एवं विनय के बाद भी जब समुद्र ने राम को लंका अभियान हेतु
जल मार्ग की सुविधा नहीं प्रदान की तब राम को कहना ही पड़ा :
विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति
और तब भावी संकट के परिप्रेक्ष्य में समुद्र ने जो उद्गार व्यक्त
किये उन्हीं की व्याख्या मनमाने ढंग से करके पावन प्रसंग को कलुषित करने का
प्रयोजन किया गया। समुद्र द्वारा उल्लेखित शब्दों को शूद्र एवं नारी बताकर इतिहास
के साथ अपराध किया गया। एक पल के लिये उनकी बात को सत्य की कसौटी पर परखा जाए तो
सोचिये तुलसी स्वरचित 10,902 चौपाइयों में कहीं भी नहीं और
सिर्फ एक चौपाई में ही ऐसा क्यों लिखते। इस विषय में प्रकांड विद्वान रामानुरागी
राम भद्राचार्यजी ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए जो मूल चौपाई प्रस्तुत की है वह इस
प्रकार है
ढोल गँवार क्षुब्ध पशु, रारी
सकल ताड़ना के अधिकारी
इसका अर्थ है बेसुरा ढोल, गँवार व्यक्ति, क्षुब्ध या आवारा पशु जो लोगों
को कष्ट देते हैं तथा रारी अर्थात कलह करने वाले लोग जिस तरह दंड के अधिकारी हैं
उसी तरह मैं भी आपका मार्ग रोकने के कारण दंड दिये जाने के योग्य हूँ। कालांतर में
उसी क्षुब्ध को शूद्र तथा रारी को नारी में परिवर्तित कर समाज में विद्वेष फैलाने
एवं निहित स्वार्थों के लिए बाँटने का उपक्रम किया गया।
संदर्भ का समापन यह है कि तुलसी यदि दुर्भावना या पूर्वाग्रह से ग्रस्त
होते तो वह गलत बात रामायण में एक से अधिक बार झलकती, केवल एक ही बार क्यों। यह विचारणीय सत्य है जो स्वीकारने योग्य है और उसी
परिप्रेक्ष्य में इसे देखा जाना चाहिये। अवांछित भूल के सुधार स्वरूप। तो आइये आज
हम नकारात्मकता के दलदल से बाहर निकल सदाशयता व सद्भाव के साथ रामचरित मानस का पठन
पाठन करें एवं वास्तविक अर्थ का आनंद लें।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो.
09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
38 comments:
अति सुंदर वर्णन ।
हेमंत भाई, जय हो. आप बहुत गंभीर तथा त्वरित पाठक हैं. सदा मान बढ़ाते हैं. सस्नेह
यह विशेषण बहुत सटीक है"छिद्रान्वेषी " ऐसे लोगों के लिए गोस्वामीजी ने एक सटीक चौपाई लिखी है " जे परदोष लखहिं सहसाखी, परहित घृत जिनके मन माखी।" ऐसे दुष्टों की वंदना के पश्चात वे बड़े विश्वास के साथ कहते हैं " मैं अपनी दिशि कीन्ह निहोरा, ते निज ओर न लाउब भोरा।" सत्य उन्होंने अपनी ओर से कोई चूक नहीं की और अपनी विद्वेष पूर्ण कार्य में जुटे रहे। वे तो ऐसा करेंगें ही यह उनकी प्रकृति है। वास्तविक स्वरूप और भाव को सामने लाना ही सज्जन पुरुष का काम है, जो आपने पूरी निष्ठा और उत्तरदायित्व के साथ किया है। बहुत साधुवाद। बहुत बधाई। सादर प्रणाम।
अति सुन्दर रचना, अभी भी हमारे देश में बहुत सारे लोग नारी शक्ति का सम्मान नही करते आपने तुलसी दास जी के दोहे की सही विवेचना की है.
इस संदर्भ में मेरा मानना है कि तुलसी दास जी केवल यह संदेश देना चाहते थे कि यदि कोई कईं बार निवेदन करने के बाद भी जिद पर अड़ा रह तो उसे प्रताड़ित करने में कोई हानि नहीं है। नारी अपमान का तो उनके मन मे्ंं ख्याल आना भी असंभव है।
While reading your take and mention of Kewat and Sabari reminded me discourses of Late
Rajeswaranandji,also would articulate same way. A very well argued article.,बधाई
हार्दिक आभार. कहा गया है दुष्ट की दुष्टता से अधिक कष्टकारी है सज्जन की निष्क्रियता. यही हुआ हमारे धर्म ग्रंथों के साथ. कम से कम एक कोशिश तो की जाए. स्नेह के आभार. सादर
सही कहा और यह भी तब जब वर्ष में दो बार नव रात्रि पर नारी पूजी जाती है. सरस्वती विद्या की देवी है. यह हमारी दोहरी मानसिकता ही है जिसने हमारा नुकसान किया. हार्दिक धन्यवाद.
सही कहा आपने और संभवतया लोगों ने अर्थ का अनर्थ कर दिया. किसी दिन तो सब ठीक होगा. बीच में जब आपका मोबाइल खराब था एक शून्य सा उभर आया था. हार्दिक आभार सहित. सादर
Yes Sir we all miss RajeshwaranandJi. I had met Him in manas bhavan just a week before His MahaPrayan. We were the first to invite Him in Bhopal. Late Swami AtmabholanandJi did a lot for everyone in BHEL. Kind Regards
कई मित्रों ने भी इस चौपाई के लिए रार भी किया। सच में विद्वेष घर कर गया दोस्ती में। इस ज्ञानवर्धक लेख के लिए धन्यवाद सर। बहुत ही सरल एवं स्पष्ट शब्दों से उदाहरण दिया आपने। सही विश्लेषण। विशेषतः शबरी प्रसंग। धन्यवाद सर।
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रजनीकांत चौबे
पुरुषोत्तम तिवारी 'साहित्यार्थी' भोपाल
सर, पूज्यपाद श्री रामभद्राचार्य जी विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न और मूर्धन्य विद्वान हैं. शूद्र और नारी शब्द इस चौपाई में अकारण त्रुटिवश टंकित हो गए होंगे. भारतीय सन्त समाज को इधर देखकर एकमत से इसका संशोधन करना चाहिए. सुन्दर व्याख्या को आपने देश के समक्ष रखा है.इस हेतु आप को प्रणाम.
प्रिय रजनी, शबरी और केवट प्रसंग ही हमारी संस्कृति है भारत एकात्मकता अभियान. तुम्हारा मनोयोग से पढ़ना मुझे शक्ति व संबल प्रदान करता है. सस्नेह
प्रिय पुरुषोत्तम भाई, इतिहास संवारने और सुधारने का समय आ गया है. अभी नहीं तो कभी नहीं. अगली पीढ़ी को क्या मुंह दिखाएंगे. हार्दिक आभार. सादर
Yes, both were noble souls. Thanks to your initiative that we could know them.
बहुत ही सार्थक और सशक्त प्रयास। जिस प्रकार से टिप्पड़ियां आईं हैं। उसे देखकर एक नई आशा का संचार होता है।
सार्थक और सकारात्मक परिवर्तन के लिए सभी तैयार है। पहल भी हो गई है। क्रमशः समाजविरोधी अनावृत हो ही जायेंगे।
सर, सर्वथा उचित.
प्रिय मित्र,
बहुत-बहुत बधाई। परम पुज्य padma भूषण, अनंत bibhushit श्री राम bhadracharya जी ने लगभग 1 हज़ार corrections किये हैं
भगवान की महिमा का वर्णन हम जैसे लोग पूरी तरह से नहीं कर सकते
उनके चरित्र के एक अंश को याद करके आपने बहुत अच्छा किया। गलत लोगों की बेतुकी बातों को importance देने की जरूरत नहीं है। आधे अधूरे ज्ञानी so called intelectuals ने धर्म का मर्म न जानकर बहुत हानि की है। आपका प्रयास सराहनीय है। साधुवाद
आपका मित्र:श्रीकृष्ण अग्रवाल, Gwalior
Dear Sir, A very depthful and useful article..... excellent reference guide for intellectuals....��
आदरणीय sir
सादर अभिवादन
नीर-क्षीर विवेक युक्त आपकी लेखनी सदैव कबीर बनकर समाज को आईना दिखती है तथा उत्तम प्रसंगों रोचक उदाहरणों के माध्यम से जीवन दर्शन की सार्थक व्याख्या प्रस्तुत करती है। शब्द की शक्ति भी बहुत मारक होती है।शब्दों के फेर बदल से अर्थ का अनर्थ होना वाकई बड़ी बिडम्बना है।
अगुनहिं सगुनहिं नही कछू भेदा...... कहने वाले,समरसता का पाठ पढ़ाने वाले बाबा तुलसी भला ऐसा कैसे लिख सकते है? ये प्रश्न तो मन में उठता था लेकिन इसका ये रूप हो सकता है कभी सोचने में भी नहीं आया।
आपको कोटिशः साधुवाद जो आपने परम् पूज्य रामभद्राचार्य जी के संशोधित अंश से परिचय करवाकर चौपाई को नया आयाम दिया ।
शबरी और केवट प्रसंग के साथ सुंदरकांड में वर्णित चोपाई पर भी सुंदर ,सार्थक दृष्टांत मर्मस्पर्शी है।
आज सही में इतिहास संशोधन की आवश्यकता है।आप जैसे बुद्धिजीवी वर्ग से हम पाठकों की नित नई यही अपेक्षा है।
सादर प्रणाम।💐💐💐💐💐
माण्डवी सिंह भोपाल।
बहुत ही सुंदर वर्णन किया । मन आनन्दित हो गया।
प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जय।
आदरणीय जोशी जी का आभार।
हिंदुओं को हिंदुओं ने ही नीचा दिखाया है। गलत इतिहास लिखने वालों को पूजा। यही कुप्रयास किसी अन्य धर्मी के साथ करके दिखाइए। अब समय आ गया है कि सच को उजागर किया जाए बगैर डरे। वरना आगत पीढ़ी को क्या मुंह दिखाएंगे। उन्हें हम पर गर्व भले ही न हो पर शर्म तो न आये
राम का वन गमन तो भारत को एक सूत्र में बांधने का प्रयास था खास तौर पर कमजोर वर्ग को सशक्त बनाने का वचन। आपके शब्द मेरी शक्ति हैं। सो सादर नमन
प्रिय चंद्र, ऐसे ही दीये में तेल डालते रहे तो प्रकाश का प्रयास जारी रहेगा। सस्नेह
आप ऐसी सकारात्मक जानकारी समाज में साझा करते रहें। सत्य से साक्षात्कार समय की मांग है
सादर
So nice of you for liking contents। Thanks very much। मेरा पैगाम जहां तक पहुंचे
बहुत ही सटीक, एकदम सही विश्लेषण एवं ज्ञानवर्धक है
अभी तक तो सभी
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी
सभी ताड़ना के अधिकारी
ही कहते आये
सुनकर बहुत ही असभ्य लगता हैं
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सुमन शर्मा
महिलाएं तो स्वयं में संपूर्ण तथा साहसी होती हैं। उन्हें इस विचार का विरोध कर समाज को सबक सीखा देना चाहिये था अब तक। Never Mind। जब जागे तभी सवेरा। इसे अभी छोड़ेंगे नहीं। जन जागृति जरूरी है। सो यलगार। गीता प्रेस से साझा किया जा सकता है। आप नंबर पता कर बात कीजिये तथा मुझसे साझा कीजिये। आपके साहसी व्यक्तित्व से मैं परिचित हूं ही। सादर
रामचरितमानस ही नही हमारे इतिहास के साथ भी शब्दों का ऐरफेर करके अर्थ का अनर्थ किया गया है। अब आवश्यकता है पुनः अर्थ को स्थापित करने की ,शब्दों की सटीक व शुद्ध लिपि की। आदरणीय आप हमेशा नये विचारों को समाज के सामने रखते है,जिससे अनर्थ का शुद्धिकरण होता है।
सुनीता यादव भोपाल
एक बहुत बड़ा षड़यंत्र का हुआ और हमारा समाज फ्री बिजली फ्री पानी के लालच में देश धर्म विरोधी सरकारें बनवाता रहा. सोये को जगाया जा सकता है पर खुली आँखों सोने वालों को क्या कहा जाए. खैर कोई दिन तो आयेगा जब दुर्बुद्धियों को भी सदबुद्धि आयेगी. हार्दिक धन्यवाद
बहुत ही ज्ञानवर्धक और आंखे खोलने वाला लेख, सालो से हमे रामायण की इस चौपाई का नकारात्मक सोच वाले लोगो ने बहुत ही गलत और निकृष्ट अर्थ बताया है बार बार नारियों को नीचा दिखाने के लिए इसका उद्धरण दिया जाता था। हमारे विचारोत्तेजक मन मस्तिष्क में उद्वेलन होता था की तुलसीदास जी इतने महान और मर्यादित आचरण वाले व्यक्तित्व की गाथा लिखते लिखते ये कैसे लिख दिया।
ये तो सही में अर्थ का अनर्थ है जिसे नारी के अपमान के रूप में हमे सैकड़ों वर्षों से समझाया जा रहा है।
आदरणीय आपके आलेख में हमेशा एक नए विचार के साथ जन जागृति होती है इसकी अलख जगाए रखना है।
आपका बहुत बहुत अभिनंदन और आभार।
हिंदू बहुत अवसरवादी कौम है, स्वाभिमान शून्य. इसे दुश्मन ढूंढने की जरूरत ही नहीं. इसके अपने स्वार्थपरस्त लोग ही विनाश कर रहे हैं. धार्मिक आस्था देखनी हो तो दूसरों को देखिये. ये संत समाज ती जिम्मेदारी है, पर वे भी राजनैतिक खेमों में बंटे है. खैर हम अपना काम करते रहें. आवाज जन जन तक पहुंचाते रहें. उचित लगे तो ऐसी जानकारियाँ या लेख साझा कीजिये अनवरत. विचारपूरित योगदान के लिये हार्दिक आभार. सादर
हिंदू धर्म विश्व को एक सूत्र में बंध ने की अतभूत और असीम संभावनाएं हैं। वासुदेव कुटुंभ की विचार धारा हमे परिवार का बोध होता है। श्री विजय जोशी जी का लेख समाज में सौहार्द बनाए रखने में सहायक है। आपकेलेख प
Respected Sir, all of articles are really inspiring and full of wisdom: my take aways from above article:
1) People usually interpret things as per their benefit/convenience, rather going till the depth of facts.
2) Selfless love is the ultimate form of worship.
Dear Sorabh, You are right. Virasat or heritage is something to be preserved for GenNext. So honesty is a must for course correction, if something wrong comes to our notice.
Knowledge never goes waste. Rather increases day by day depending on our keenness to inculcate.
So never give up reading habit. It's best mental exercise.
हार्दिक धन्यवाद.
तथ्यों पर आधारित विवेचना आँख खोलने वाली है जो कि वर्तमान में समाज को निज हित में दलित व सवर्ण में बाँटने वाले स्वार्थी तत्वों के मुँह पर करारा तमाचा है। पूर्ण विश्वास है कि हिन्दू समाज इन तथ्यों को स्वीकार कर एक वर्ण व वर्ग विहीन समाज की स्थापना करेगा। आदरणीय जोशी जी को इस उत्कृष्ट आलेख हेतु हार्दिक बधाई व साधुवाद।
आ. सिंह सा.,
सही कहा आपने। ये एक बहुत बड़े षडयंत्र का हिस्सा है जिसके हिस्सेदार खुद हिंदू ही हैं। इस कौम को दुश्मनों की जरूरत ही नहीं है : रेशम के कीड़े के समान। ये तो फ्री पानी फ्री बिजली के लालच में सरकार बना देती है
गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त। क्या कहें। बस अलख जगाते रहें। अपनी आत्मा तो शुद्ध रहेगी। सादर
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