मकर संक्रांति से शिवरात्रि तक
प्रयागराज में प्रतिवर्ष चलने वाले कुंभ मेले में 6 प्रमुख स्नान तिथियाँ होती हैं, जो मकर संक्रांति से लेकर महा शिवरात्रि तक चलती हैं। कुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन पहले स्नान से होती है। इसे शाही स्नान और राजयोगी स्नान भी कहा जाता है। इस दिन संगम, प्रयागराज पर विभिन्न अखाड़ों के संत की पहले शोभा यात्रा निकलती है और फिर स्नान। माघ महीने के इस पहले दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इस दिन को मकर संक्राति भी कहते हैं। लोग इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ दान भी करते हैं।
मान्यताओं के अनुसार पौष महीने की 15वीं तिथि को पौष पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन चाँद पूरा निकलता है. इस पूर्णिमा के बाद ही माघ महीने की शुरुआत होती है।
माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्ण तरीके से सुबह स्नान करता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। वहीं, इस दूसरे स्नान से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत कर दी जाती है। वहीं, इस दिन संगम पर सुबह स्नान के बाद कुंभ की अनौपचारिक शुरुआत हो जाती है। इस दिन से कल्पवास भी आरंभ हो जाता है।
कुंभ मेले में तीसरा स्नान मौनी अमावस्या के दिन किया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन कुंभ के पहले तीर्थाकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में स्नान किया था। मौनी अमावस्या के दिन कुंभ मेले में बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।
पंचाग के अनुसार बसंत पंचमी माघ महीने की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु शुरू हो जाती है। कड़कड़ाती ठंड के सुस्त मौसम के बाद बसंत पंचमी से ही प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। वहीं, हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। पवित्र नदियों में इस चौथे स्नान का विशेष महत्त्व है। पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है।
बसंत पंचमी के बाद कुंभ मेले में पांचवाँ स्नान माघी पूर्णिमा को होता है। मान्यता है कि इस दिन सभी हिन्दू देवता स्वर्ग से संगम पधारे थे। वहीं, माघ महीने की पूर्णिमा (माघी पूर्णिमा) को कल्पवास की पूर्णता का पर्व भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन माघी पूर्णिमा समाप्त हो जाती है। इस दिन संगम के तट पर कठिन कल्पवास व्रतधारी स्नान कर उत्साह मनाते हैं। इस दिन गुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है।
कुंभ मेले का आखिरी स्नान महा शिवरात्रि के दिन होता है। इस दिन सभी कल्पवासी अंतिम स्नान कर अपने घरों को लौट जाते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के इस पावन पर्व पर कुंभ में आए सभी भक्त संगम में डुबकी जरूर लगाते हैं। मान्यता है कि इस पर्व का देवलोक में भी इंतज़ार रहता है।
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