मिलना नहीं, मिलना केमिस्ट्री का
-विनोद साव
यह समझ में नहीं आ रहा है कि अपनी
केमेस्ट्री दूसरों से कैसे मिले। आखिर वह कौन सी केमेस्ट्री है जो दूसरों से जा
मिलती है और कितने ही लोग ऐसी केमेस्ट्री के धनी हैं पर मैं क्यों कंगाल हूँ! अपनी
केमेस्ट्री की मूल धातु में ऐसा क्या है जिसे दूसरे किसी से मिलाया जा सके। यह
कार्बनिक है कि अकार्बनिक है। मेरे भीतर जैव रसायन बह रहा है कि भौतिक रसायन। या
यह किसी विश्लेषणात्मक रसायन का हिस्सा है। इसी के विश्लेषण में खोया हुआ हूँ। जब
तब किसी भी अभिनेता का किसी अभिनेत्री से या किसी नेता का किसी नेत्री से
केमेस्ट्री मिल जाने का हल्ला सुनने में आता है तो और भी उलझन बढ़ जाती है कि उनके
पास रसायन भरा ऐसा कौन सा अस्त्र है या उनके रसायन की धार में ऐसा कौन सा जलजला
फूट रहा है जो उनकी केमेस्ट्री किसी न किसी से मिल जाती है और मेरी भौतिकी में किस
रसायन की कमी है जो आज तक मेरी केमेस्ट्री किसी से नहीं मिल पाई।
संभवत: यह चूक अपने छात्र जीवन में ही हो
गई थी जब मैं विज्ञान संकाय की कक्षा से बाहर निकलकर कला निकाय में जा बैठा था।
कला निकाय (आर्ट सेक्शन) में लड़कियाँ अधिक प्रवेश लेती थीं। साइंस सेक्शन में
केमेस्ट्री में अपना माथा खपाने से अच्छा सुन्दर किशोरियों के बीच बैठकर अपनी
केमेस्ट्री खपाना अधिक उपयुक्त लगा। खुदा ने उन्हें कला और सौंदर्य का ऐसा नायाब
नमूना बनाया था कि जब भी कोई नाभि-दर्शना हमारे गाँव की शाला में भरती होतीं तो वे
सीधे कला निकाय में ही आ बैठती थीं। गोया वे सब गाय हों और कला-निकाय
कांजीहाउस। साइंस से उनका कोई ताल्लुक न
हो। उस समय में स्कूल-कालेज में ये धारणा भी पुख्ता हुआ करती थी कि ‘आर्ट्स ग्रुप वाले सब
गधे होते हैं।’ जिन्हें साइंस और
कामर्स में इंट्री नहीं मिलती थी वे सब आर्ट्स में जा बैठते थे। हम सबका शरीर भले
ही विज्ञान के लिए चुनौती रहा हो पर दिमाग पूरी तरह अवैज्ञानिक था। इस
अवैज्ञानिकता के बावजूद अपने पाठ्यक्रम से बाहर जाकर और डाक्टर-इंजीनियर बनने का
सपना पाले मित्रों की संगत में रसायन विद्या की गूढ़ता को पकडऩे की हरदम कोशिश मैं
करता रहा, पर मित्रगण डाक्टर
इंजीनियर नहीं बन पाए और न किसी से मेरी केमेस्ट्री फिट हो पाई।
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे।। यहाँ बाबा
लोगों की केमेस्ट्री बॉबी से जुड़ जाती है। रसायन विद्या का इतिहास उतना ही पुराना
है जितना प्राचीन है मनुष्य का इतिहास। यह मनु और श्रद्धा की केमेस्ट्री मिल जाने
से जन्मा इतिहास है। इस इतिहास की निरंतरता को बनाए रखने के लिए मनु के जीवन में
फिर इड़ा को आना था। इन्होंने एक ऐसे फल को चख लिया था जिसके रसायन ने संतान
संख्या में वृद्धि की। मनु से पैदा हुई संतानें मनुष्य है। मनु की इस उन्मादक
भूमिका पर कालजयी कवि मुक्तिबोध फरमाते है-
'वस्तुत- मनु की प्रकृति ठीक उस पूंजीवादी व्यक्तिवादी की प्रकृति है जिसने कभी
जन्तान्त्रत्मकता का बहाना भी नहीं किया, केवल अपने मानसिक खेद, अंतर्विप्लव और निराशा से छुटकारा पाने तथा स्वस्थ शांत अनुभव करने के लिए
श्रद्धा और इड़ा के सामान अच्छी साथिनों का सहारा लिया जो उसके सौभाग्य से उसे
प्राप्त हुई।
‘और श्रद्धा क्या है?’
श्रद्धावाद घनघोर व्यक्तिवाद है-
ह्रासग्रस्त पूंजीवाद का, जनता को बरगलाने का जबरदस्त साधन है।
मनु चल पड़ते हैं ‘पुराने में अब मज़ाक नहीं रहा, इसलिए नया चाहिए’ इड़ा मिल जाती है। वह
कौन है?
मुक्तिबोध चेतावनी देते हैं, ‘ ध्यान रहे कि
ह्रासग्रस्त सभ्यता की उन्नायिका है- इड़ा।’
(मुक्तिबोध- ‘कामायिनी एक
पुनर्विचार’)
रसायन- इसका शाब्दिक विन्यास रस+अयन है
जिसका शाब्दिक अर्थ रसों (द्रवों) का अध्ययन है। रसायन विज्ञान, रसायनों के रहस्यों
को समझने की कला है। इस विज्ञान से विदित होता है कि पदार्थ किन-किन चीजों से बने
हैं, उनके क्या-क्या गुण
हैं और उनमें क्या-क्या परिवर्तन होते हैं। इस विद्या की थ्योरी को पकड़ते हुए भी
इसके प्रेक्टिकल में हमेशा कमजोर साबित होता रहा और प्रेम की किसी भी परीक्षा में
किसी नाभि-दर्शना से कोई नाभिकीय रसायन नहीं जोड़ पाया। माँ के हाथों से बने रसायन
कतरा (बेसन की सीरे वाली सब्जी) को बार- बार सुड़कने के बाद भी अपने भीतर वांछित
रसायन का अपेक्षित स्तर नहीं ला पाया। आखिरकार कला निकाय की एक सहपाठिनी ने कह भी
दिया कि ‘जब केमेस्ट्री का
मिलान करना था तो यहाँ क्यों आए विज्ञान में पड़े सड़ते रहते।।’ फिर ये भी कह दिया कि
‘तुम कहीं भी रहो
तुम्हारी केमेस्ट्री किसी से मिल नहीं सकती क्योंकि ‘अफेयर’ के लायक तुम आदमी
नहीं हो।’
कितना अच्छा लगता था जब साइंस की कक्षाओं
में फिजिक्स-केमेस्ट्री के नाम सुना करते थे। फिजिक्स यानी भौतिकीय में एक
मर्दानापन महसूस होता था और केमेस्ट्री अपनी रसायनीय तरलता से कमनीय हो उठती थी।
बिल्कुत वही आकर्षण जो ‘मेस्कुलाइन’ और ‘फेमिनाइन’ में होता है। जैसे
फिजिक्स उसे पुकार रहा हो ‘हाय केमि।। कम-ऑन डार्लिंग।’ दोनों एक दूजे के लिए बने हैं। एक के अभाव में दूसरा अधूरा है। जहाँ फिजिक्स
होगा वहाँ केमेस्ट्री होगी। जैसे फिल्मों में धर्मेन्दर-हेमामालिनी की जोड़ी।
दोनों के फीजिक की क्या केमेस्ट्री मिली रे बावा कि एक स्वप्न-सुन्दरी ने अपने से
बीस साल बड़े मर्द जो पहले ही चार बच्चों का बाप हो और उनकी माँ के साथ रहता हो
वहाँ जाकर सर्वांग सुन्दरी ने अपना सर्वांग निछावर कर दिया। इस तरह केमेस्ट्री का
मिल जाना अपने आप में एक भयानक दु:स्वप्न की तरह भी होता है। फिल्मों के इस स्वप्नलोक
में ऐसे दु:स्वप्न भी देखने में आते हैं। इस सिने संसार का पूरा अर्थशास्त्र ही
केमेस्ट्री की मिलान पर टिका हुआ है। नायक-नायिका की जोड़ी ज़मी तो मामला सुपर-डुपर हिट।। नई तो
करोड़ों अरबों का झटका लगा और सारी चकाचौंध चौराहे पर। इसी दुनिया में एक रचनात्मक
उदाहरण भी सुना करते थे कि ‘गाइड’ में देवानंद और वहीदा
की केमेस्ट्री कुछ इस कदर मिली कि गाइड एक क्लासिक कृति बन गई थी।
पर मेरी समस्या यह है कि आज तक मेरी
केमेस्ट्री किसी से नहीं मिली जिससे मैं कोई क्लासिक कृति आपको दे नहीं पा रहा
हूँ। इस बौद्धिक-वैचारिक उर्जा को प्राप्त करने के लिए गाँधीवादी जैनेन्द्र ने ‘पत्नी नहीं प्रेयसी
चाहिए’ का हल्ला बोल कर
केमेस्ट्री का एक नया सूत्र बताया ज़रूर था पर साहित्य समाज ने उसे असाहित्यिक
करार कर दिया। अब यह सूत्र ज्यादातर मंचीय कार्यक्रमों में आजमाया जा रहा है जहाँ
ग्लैमर की चकाचौंध है। मंच में कविता और रसायन की धारा साथ- साथ बह रह रही है ये
गाते हुए कि ‘तू गंगा की मौज मैं
जमुना की धारा।’
राजनीति में केमेस्ट्री मिलान को गठबंधन
कहा जाता है। आजकल कांग्रेस से किसी भी पार्टी की केमेस्ट्री नहीं बैठ रही है।
इसके भीतर जैसे तैसे सोनिया-मनमोहन की केमेस्ट्री ने पार्टी को दस साल खींच लिया
था फिर यू.पी.में सपा के साथ केमेस्ट्री मिलाने की जबरदस्त कोशिश जबरदस्ती कोशिश
साबित हुई और भाजपा विरोधी पूरा कुनबा डूब गया। प्रियंका की केमेस्ट्री भी काम
नहीं आई। यहाँ पहले भी मुलायम और मायावती की केमेस्ट्री नहीं ज़मी। देश के इस सबसे बड़े राज्य में एक ऐसी
पार्टी का राज आ गया जिसके प्रधान ने अपने दाम्पत्य जीवन में ही केमेस्ट्री मिलाना
ज़रूरी नहीं समझा और
पत्नी का त्याग कर देना ही श्रेयस्कर समझा। अब उनकी अर्धांगिनी स्मृति के गलियारे
में कहीं खो गई है। इतिहास गवाह है बहुतों ने इस चक्कर में अपने राजे-रजवाड़े
गँवाए हैं। बात जब निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। बड़े लोगों की बड़ी बातें उनका फिजिक्स
क्या और केमेस्ट्री क्या? उनकी केमेस्ट्री कहीं भी मिल जाए तो उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा। इसलिए बड़े
लोगों के पचड़े में ज्यादा पडऩा नई।
लेखक परिचय: विनोद साव- जन्म 20 सितंबर
1955 दुर्ग में, समाजशास्त्र विषय में एम.ए.। भिलाई
इस्पात संयंत्र के सी.एस.आर. विभाग में सहायक प्रबंधक पद से सेवानिवृत। व्यंग्य के
साथ साथ उपन्यास, कहानियाँ और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा
में। उनकी रचनाएँ हंस, पहल, अक्षरपर्व, वसुधा,
ज्ञानोदय, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य आदि में
प्रकाशित होती रही हैं। उपन्यास, व्यंग्य, संस्मरण व कहानियों के संग्रह सहित अब तक
कुल बारह किताबें प्रकाशित। सम्मान: वागीश्वरी और अट्टहास सम्मान सहित उपन्यास के
लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल सम्मान।
सम्पर्क: मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़- 491001, मो. 9009884014,
Email- vinod.sao1955@gmail.com
1 comment:
विनोद जी का विनोद-मंथन-जादू चौबारे चढ़ कर बोला, इसी केमिस्ट्री के अणु रिस्तो की गर्माहट से गर्भाधान में सज कर जीवन संचय के कालजयी प्रणेता बने |
साधुवाद
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